ओइम् परमात्मने नम:. *******************हम हिन्दूओं मे अधिकतर यह पृथा है,कि जब काेई मरने वाला हाेता है, अथवा मर चुका हाेता है, तो उस मृत व्यक्ति के लिये गीता , अथवा गरूण पुराण का पाठ कराते है । अक्सर यह भी देखा जाता है,कि मरने वाले का अंतिम दीवा वट करते समय, अर्थात अंतिम चिराग जलाते समय इसकी पीठ के नीचे, गेहूं अथवा जाै की ढेरी रख देते है? कहेगे कि यह स्वर्ग लाेक की नाैका का भाडा है? इस पर वेदाें एंवम उपनिषदाें की क्या मंत्रणा है ? *******************मरते समय मनुष्य, के मन , ओर बुद्धि दाेनाे अपने सही हैसियत मे आकर अर्थात नाैकर की स्थति मे, प्राण निकलने पहले प्राणी के जीवन भर का कर्माे का , उसकी आत्मा काे ब्याैरा देते है । वैसे मन ओर बुद्धि दाेनाे ने जीवन भर आत्मा काे गुलाम बना कर रखा था ? अंत समय मे , ये दाेनाे ने साफ बात कह कर बता दिया ? हे महाराज हम तो नाैकर थे आप के ? इस रथ का हिसाब-किताब अभी लाे ? सारे काम पाप ही पाप है ? सारी जुम्मेदारी तो महाराज आप ( आत्मा) की थी ? आत्मा राेता है? उस समय भाेतिक शरीर की सुध किसे रहती है ? जी का जंजाल बना रहता है ? पाप कर्म करने वाले मनुष्य की आत्मा जब शरीर त्यागती है, तब एक लाख बिछ्छू मानाें डंक मार रहे हाेते है । अब बताओ भाईयो? गीता , गरूण पुराण सुध किसे रहती है? मृत्यु का भय तो बडे बडे याेद्धाओं ओर बलवानाे काे भी कम्पायमान कर देता है । फिर साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या करना ? मरना काेई नही चाहता ? जहां इतना बडा संकट हाे? भगवद भजन की रूची कैसे हाे सकती है? हां अच्छी कर्म करने वाले के साथ ऐसा नही हाेता । मनुष्य की जन्म –जन्मान्तरों की सत्संग वृति , निष्काम भाव से सेवा आदि ही काम आती है ।
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