*|७९| ऋषि सन्देश |७९|*
“चाहै सौ वर्ष का भी हो परन्तु *जो विद्या, विज्ञानरहित है, वह बालक* और *जो विद्याविज्ञान का दाता है, उस बालक को भी वृध्द मानना* चाहिए | क्योंकि सब शास्त्र, आप्त विद्वान् *अज्ञानी को ‘बालक’ और ज्ञानी को 'पिता’* कहते हैं ||
__[]__ स्वामी दयानन्द सरस्वती [सत्यार्थ प्रकाश समु० १० (मनुस्मृति २/१५३)]
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