हर व्यक्ति के जीवन में अपने इष्ट जनों से मिलन व वियोग दोनों घटनायें घटित होती हैं दोनों में सम रहना चाहिए न हर्ष न शोक यही तो योग का सार है हर काम करते हुए ईश्वर का स्मरण बना रहे निष्कामता बनी रहे राग द्वेष रहित होकर सबके प्रति दया करूणा प्रेम सहयोग व परोपकार की भावना हो तथा ईश्वर ही दिनचर्या में प्रमुख हो ईश्वर की ओर बढ़ना बढाना ही जीवन का उद्देश्य हो तो आनंद ही आनंद मिलता रहेगा
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