कोठरी मन की सदा रख साफ़ बन्दे ,
कौन जाने कब स्वयं प्रभु आन बैठे ,
तुम बुलाते हो यदि उन्हें भावना से ,
कौन जाने कब निमंत्रण मान बैठे ,
दर्द यदि कभी उभरे मन में तुम्हारे ,
खर्च मत करना बिना सोचे विचारे ,
दर्द से रिश्ता सदा प्रभु का रहा है ,
नाम करुणा सिंधु ही उसका रहा है ,
एक भी आँसू ना कर बर्बाद बन्दे ,
कौन जाने कब समुन्दर मांग बैठे ।
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