स्वामी दयानंद और हिन्दू समाज
स्वामी दयानन्द पर कुछ अज्ञानी लोग यह कहकर आक्षेप लगा
देते हैं कि स्वामीजी ने हिन्दू समाज को संकीर्ण बना दिया।
स्वामी जी पर यह आक्षेप निराधार है क्योंकि हिन्दू समाज
तो पहले से ही इतना संकीर्ण हो चुका था कि उसमें और अधिक
संकीर्णता लाने का स्थान ही नहीं रहा था। सनातन धर्म के
प्रसिद्ध पंडित नेकीराम शर्मा ने तेज अख़बार 17 फरवरी 1926
को इस आशय की कुछ ऐसे स्वीकार किया था- ‘जो धर्म कभी
समस्त संसार का अद्वितीय और असीम धर्म था, आज वह
सिकुड़ते सिकुड़ते कितने छोटे घेरे में परिमित कर दिया गया है।Ó
इसके विपरीत स्वामी दयानंद ने हिन्दू समाज की संकीर्णता
को दूर करने का जीवन भर प्रयास किया जो वेदों के ज्ञान को
न जानने से और अन्धविश्वास और अज्ञान को मानने से हिन्दू
समाज में समाहित हो गई थी। स्वामी जी ने किस प्रकार
भागीरथ प्रयास कर हिन्दू समाज में नवजाग्रति लाने का
प्रयास किया, आईये, इस पर एक संक्षिप्त दृष्टि डालें।
1- हिन्दू समाज ने शूद्रों को शिक्षा देने और वेद का सन्देश
सुनाने का भी कड़ा निषेध कर दिया था। आधुनिक भारत में
स्वामी दयानंद ही प्रथम ऐसे उपदेशक हैं जिन्होंने शूद्रों को न
केवल शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार दिलवाया, अपितु
द्विजों के समान वेद को भी पढऩे का अधिकार दिला कर
हिन्दू समाज की संकीर्णता को दूर किया।
2- हिन्दू समाज शूद्रों के समान स्त्री जाति को भी शिक्षा
से विमुख रखता था और उन्हें केवल गृह कार्यए संतान उत्पत्ति और
चूल्हे चोके तक सीमित रखता था। स्वामी दयानंद ने न केवल
प्राचीन विदुषीया जैसे गार्गी और मैत्रयी आदि का उदाहरण
देकर नारी जाति को शिक्षा का अधिकार दिलवाया अपितु
उन्हें मातृ शक्ति के रूप में उचित सम्मान भी दिलवाया जिससे
हिन्दू समाज की संकीर्णता दूर हुई।
3- हिन्दूसमाज में बाल विवाह, वृद्ध विवाह, बहु विवाह और
मिथ्या जाति-पांति के छोटे घेरे में विवाह करने की प्रथा थी।
स्वामी दयानंद ने ब्रह्मचर्यपूर्वक लड़का-लड़की का गुण-कर्म
अनुसार, विस्तृत मानव समाज में सर्व विवाह और एक पति पत्नी
व्रत का विधान करके हिन्दू समाज की संकीर्णता को दूर
किया।
4- हिन्दू समाज में निर्दोष और अबोध बालविधवाओं को जन्म
भर वैध्य के महा कष्ट प्रद जीवन में जबरदस्ती रखा जाता था।
स्वामी दयानंद के विधवा विवाह की शास्त्र और युक्ति के
अनुसार सिद्ध करके इस वंश नाशक कुप्रथा को जड़ से उखाड़
दिया
जिससे हिन्दू समाज की संकीर्णता दूर हुई।
5-हिन्दू समाज में जन्म मूलक या अनुवांशिक उच्चता के
वृथाभिमान से वंशानुगत वर्ण-व्यवस्था मानी जाने लगी थी।
स्वामी दयानंद ने मनुष्य मात्र को गुण-कर्म के अनुकूल वर्ण
प्राप्ति का अधिकारी सिद्ध किया, जिससे हिन्दू समाज
की संकीर्णता दूर हुई।
6 हिन्दू समाज में संगठन के विरोधीए मिथ्या जाती.पाती और
छुआछुत के बंधन इतने दृड़ और भयानक हो चुके थे ए जिन पर चलकर
हिन्दू जाति अपने ही धर्म को मानने वालो हिन्दू भाइयों से
पशु से भी बूरा व्यवहार करती हुई दिन.प्रतिदिन मिटटी जा
रही थीए स्वामी दयानंद ने झूठी जाति-पाति और छुआ-छूत के
मानसिक रोग को वैदिक ज्ञान की औषधि से दूर करके उन्हें
संगठित होने की शिक्षा दी जिससे हिन्दू समाज की
संकीर्णता दूर हुई।
7- हिन्दू समाज ने भूल से वैदिक सार्वभौम धर्म का द्वार वैदिक
धर्म से पतित हुए मनुष्यों तथा अहिंदुओं के लिए एकदम बंद करके
अपने को तथा अपने धर्म को एक छोटे घेरे में सीमित कर दिया
था। स्वामी दयानंद ने देश सम्प्रदाय और वंश के बिना भेद भाव
के प्रत्येक मनुष्य को उसका अधिकारी बतलाकर और सर्व
साधारण को उसमें सम्मिलित होने का निमंत्रण देकर हिन्दू
समाज की संकीर्णता को दूर किया।
8- हिन्दू समाज ने ज्ञान शून्य व्यर्थ कृपा कलापों और
विश्वासों को ही धर्म समझा जाता था और अपने गुरुओं की
कृपा से ही मुक्ति का मिलना मानकर अपने आपको विवशता
और दासता के जीवन में रखा जाता था। स्वामी दयानंद ने
मनुष्य मात्र के विचार और आचार की जन्मसिद्ध स्वतंत्रता की
घोषणा करके सदाचार से आत्मज्ञान प्राप्ति के द्वारा मोक्ष
का मिलना बतलाकर दासता के संकुचित जीवन से हिन्दू समाज
को छुड़वाया।
9- हिन्दू समाज में वेद विरुद्ध यज्ञों और कल्पित देवताओं के नाम
पर पशु.बलिएमाँस.भक्षण और मद्य आदि काए धर्म समझकर
उपयोग होने लग गया था। स्वामी दयानंद ने वैदिक विधि का
प्रचार करके प्राणी मात्र से अहिंसा पूर्वक वर्तने और स्वास्थ्य
वह बुद्धि के नाशक नशो के भयानक दोषों को दूर करने का
प्रयास किया जिससे हिन्दू समाज की संकीर्णता दूर हुई।
10- हिन्दू समाज में एक ईश्वर के स्थान पर अवतारए गुरुए पीर व
पैगम्बर आदि की अनीश्वर तथा अनेक ईश्वर पूजा के रूप में मनुष्य
पूजा का प्रचार हो गया था। स्वामी दयानंद ने अवतार आदि
उनकी मर्यादा के भीतर और अनेक ईश्वर के स्थान पर एक सच्चे
सर्वव्यापक परमात्मा की सच्ची पूजा करनी सिखलाई जिससे
हिन्दू समाज की संकीर्णता दूर हुई।
11- हिन्दू समाज में पारस्परिक घृणा फैलाने वाली छुआ छुत के
कारन एक साथ बैठ कर न खानाए एक दूसरे के हाथ का न खाना
आदि का झमेला आरंभ हो गया था। स्वामी दयानंद चारों
वर्णों को सुद्ध विधि से बने हुए भोजन के एक साथ बैठकर खाने
का उपदेश देकर इस भ्रम की मिटाया जिससे हिन्दू समाज की
संकीर्णता दूर हुई।
सारांश यह हैं कि जो हिन्दूपन अपने आधुनिक मार्गदर्शकों की
संकीर्णता और अदूरदर्शिता से आत्मावलम्बन, आत्मरक्षा,
सामाजिक संगठन, स्वतंत्रता, देश भक्ति और स्वराज्य आदि
मानुषिक और जातीय श्रेष्ठ गुणों की अनुभूति खोकर मुर्दा के
समान हो चुका था, वह स्वामी दयानंद की जीवन प्रद शिक्षा
से फि र से जीवित हो चुका है।
क्या यही संकीर्णता हैं, जिसे स्वामी दयानंद ने हिन्दू समाज में
पैदा कर दिया हैं, तब तो हमें ऐसी संकीर्णता पर अभिमान है।
ओ३म् नमस्ते मित्रो
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