ओइम् परमात्मने नम:. उपनिषदाें मे बृह्म विद्धया का विस्तार से. वर्णन है ।मह्र्षि व्यास जी ने इन्ही उपनिषदाें की संगति लगाने के लिये ही वेदान्त शाष्त्र की रचना की थी । इसी लिये स्वामी दयानंद सरस्सवती जी ने वेदान्त सूत्राें पहले उपनिषदाें के अध्ययन की सलाह दी थी । इनके अध्ययन के पश्चात वेदान्त सूत्र अच्छी पर्कार समझ मे आने लगते है । एक ओर मजेदार बात ? इस काे पढने बाद व्यक्ति खुद समझ जायेगा कि अठारह पुराणाें के रचियता व्यास महर्षि नही हाे सकते ? जैसा कि कुछ मूढ ओर अज्ञानी लाेग समाज मे भृम फैला रहे है । ओर अपने समर्थन मे यह श्लाेक पढकर सुनाते है ? अष्टादश: पुराणेषु व्यास्सय: वचनम द्वयम । पराेपकाराय पुण्याय: ****“आदि- आदि ।
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