कंद-मूल खाने वालों से मांसाहारी डरते थे।
पोरस जैसे शूर-वीर को नमन सिकंदर करते थे॥
चौदह वर्षों तक खूंखारी वन में जिसका धाम था।
राक्षसों का वध करने वाला शाकाहारी राम था॥
चाहते तो खा सकते थे वो मांस पशु के ढेरो में।
लेकिन उनको प्यार मिला शबरी के जूठे बेरो में॥
चक्र सुदर्शन धारी थे हर दुर्जन पर भारी थे।
वैदिक धर्म पालन करने वाले कृष्ण शाकाहारी थे॥
शाकाहार के मन्त्र को महाराणा ने मन में ध्याया था।
जंगल जाकर प्रताप ने घास की रोटी को खाया था॥
सपने जिसने देखे थे वैदिक धर्म के प्रचार के।
दयानंद जैसे महामानव थे वाचक शाकाहार के॥
उठो जरा तुम पढ़ कर देखो अपने गौरवमयी इतिहास को।
क्यों तुमने अपना लिया ईसा मूसा के खाने खास को ?
दया की आँखे खोल कर देखो निरीह पशु के करुण क्रंदन को।
इंसानों का जिस्म बना है शाकाहारी भोजन को॥
अंग लाश के खा जाए क्या फ़िर भी वो इंसान है?
पेट तुम्हारा मुर्दाघर है या कोई कब्रिस्तान है?
आँखे कितना रोती हैं जब उंगली अपनी जलती है।
सोचो उस तड़पन की हद जब जिस्म पे आरी चलती है॥
बेबसता तुम पशु की देखो बचने के आसार नही।
जीते जी तन काटा जाए उस पीडा का पार नही॥
खाने से पहले बिरयानी चीख जीव की सुन लेते।
करुणा के वश होकर तुम भी गिरी गिरनार को चुन लेते॥
मांसाहार त्यागो … शाकाहारी बनो !
from Tumblr http://ift.tt/2coqRlH
via IFTTT
No comments:
Post a Comment