शांति कीजिए प्रभु त्रिभुवन मे (2 बार)
जल में थल में और गगन मेl
अंतरिक्ष में अग्नि पवन मे। औषधी वनस्पति वन उपवन में।
सकल विश्व में जड़ चेतन में।
शांति कीजिए प्रभु त्रिभुवन मे ।(2 बार)
ब्राह्मण के उपदेश वचन में।
क्षत्रिय के द्वारा हो रण में। वैश्य जनों के होवे धन में। और शुद्र के हो तन-तन में।
शांति कीजिए प्रभु त्रिभुवन मे।(2 बार)
शांति राष्ट्र निर्माण सृजन में।
नगर ग्राम में और भवन में।
जीव मात्र के तन में मन में।
और प्रकृति के हो कण कण में।
शांति कीजिए प्रभु त्रिभुवन मे ।(3 बार)
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