Friday, July 15, 2016

२ श्रावण               16  जुलाई 16 😶 “यज्ञमयी नौका ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् पृथक् प्रायन्...

२ श्रावण               16  जुलाई 16


😶 “यज्ञमयी नौका ! ” 🌞


🔥🔥 ओ३म् पृथक् प्रायन् देवहूतयोअकृण्वत श्रवस्यानि दुष्टरा।  🔥🔥 

🍃🍂 न ये शेकुर्यज्ञियां नावमारुहमीर्मैव ते न्यविशन्त केपय:।।  🍂🍃

                              ऋ० १० । ४४ । ६ ;अथर्व० २० । ९४ । ६


शब्दार्थ:- जो प्रथम प्रकार के या विस्तृत ज्ञानी देवों अर्थात् दिव्य गुणों का आह्वान करने वाले मनुष्य होते हैं वे जुदा ही प्रकृष्ट मार्ग से अपने-अपने लोकों को पहुँचते हैं। बड़े दुस्तर ज्ञानैश्वर्यों को, श्रवणीय यशों को प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु जो इस यज्ञमयी नाव पर चढ़ने में समर्थ नहीं होते वे कुत्सित, अपवित्र आचरण वाले होकर यहीं इस लोक में नीचे-नीचे जाते हैं।

विनय:- इस संसार सागर से हमें तरा सकनेवाली नौका यज्ञमयी ही है। हम यदि यज्ञकर्म नहीं करेंगे तो हम न केवल मनुष्यत्व से ऊपर नहीं उठ सकेंगे अपितु मनुष्यत्व को भी कायम नहीं रख सकेंगे, तब हमें नीचे पशुत्व में अध:पतित होना पड़ेगा। बहुत से ‘देव-हूति’ पुरुष उन देवलोक, पितृलोक, ब्रह्मलोक आदि दुष्प्राय यशोमय उच्च लोकों को पहुँच गये हैं। ये लोग यज्ञिय नाव पर चढ़कर ही वहाँ पहुँचे हैं। दूसरी ओर वे दुर्भागे मनुष्य हैं जोकि थोड़ा-सा स्वार्थत्याग न कर सकने के कारण, अयज्ञिय हो ऋणबद्ध रहने के कारण, उस नाव का आश्रय नहीं पा सके हैं, अत: यहीं बँधे पड़े रह गये हैं। अतः आओ, मनुष्य-योनि पाकर हम कुछ-न-कुछ तो स्वार्थत्याग करें, इतना यज्ञ-कर्म तो करें कि ऋणबद्ध न बने रहें। हम पर जो माता, पिता, गुरु, समाज, राष्ट्र, मनुष्यता और परमेश्वर आदि के ऋण हैं, उन्हें उतारने के लिए तो

अपने स्वार्थ का नित्य हवन किया करें। भाइयो! यज्ञमयी नौका खड़ी है। हम चाहें तो देवहुति होकर, दिव्यस्वभाव, धर्मशील होकर, यज्ञमयी नौका द्वारा इस दुस्तर सागर को तरकर ज्ञानैश्वर्यमय उच्च-से-उच्च लोकों तक पहुँच सकते हैं नहीं तो फिर यदि हम इस नौका में स्थान न पा सके तो हम ऐसी खराब परिस्थिति में आ पड़ेंगे और वहाँ ऐसे निर्लज्ज बन जाएँगे कि हम कुत्सित, अपवित्र कर्मों के करने में ही सुख पाएँगे और नीचे-ही-नीचे गिरते जाएँगे, फिर हमारे उद्धार का दूसरा अवसर कितने काल बाद आवेगा यह कौन जानता है?

ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩

                                       ……………..ऊँचा रहे


🐚🐚🐚       वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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