सोमनाथ मन्दिर की लूट पर स्वामी दयानंद की प्रेरक शिक्षा👉👉👉👉सत्यार्थ प्रकाश में महर्षि दयानन्द ने प्रश्नोत्तर शैली में सोमनाथ मन्दिर के विषय में अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। प्रश्न करते हुए वह लिखते हैं कि देखो ! मसोमनाथ जी (भगवान) पृथिवी के ऊपर रहता था और उनका बड़ा चमत्कार था, क्या यह भी मिथ्या बात है? इसका उत्तर देते हुए वह बताते हैं कि हां यह बात मिथ्या है। सुनो ! मूर्ति के ऊपर नीचे चुम्बक पाषाण लगा रक्खे थे। इसके आकर्षण से वह मूर्ति अधर में खड़ी थी। जब ‘महमूद गजनवी’ आकर लड़ा तब यह चमत्कार हुआ कि उस का मन्दिर
तोड़ा गया और पुजारी भक्तों की
दुर्दशा हो गई और लाखों फौज दश
सहस्र फौज से भाग गई। जो पोप पुजारी पूजा, पुरश्चरण, स्तुति, प्रार्थना करते थे कि ‘हे महादेव ! इस म्लेच्छ को तू मार डाल, हमारी रक्षा कर, और वे अपने चेले राजाओं को समझाते थे ‘कि आप निश्चिन्त
रहिये। महादेव जी, भैरव अथवा वीरभद्र
को भेज देंगे। ये सब म्लेच्छों को मार
डालेंगे या अन्धा कर देंगे। अभी हमारा
देवता प्रसिद्ध होता है। हनुमान, दुर्गा
और भैरव ने स्वप्न दिया है कि हम सब
काम कर देंगे।’ वे विचारे भोले राजा और क्षत्रिय पोपों के बहकाने से विश्वास में रहे। कितने ही ज्योतिषी पोपों ने कहा
कि अभी तुम्हारी चढ़ाई का मुहूर्त नहीं
है। एक ने आठवां चन्द्रमा बतलाया, दूसरे
ने योगिनी सामने दिखलाई। इत्यादि
बहकावट में रहे।
जब म्लेच्छों की फौज ने आकर मन्दिर को घेर लिया तब दुर्दशा से भागे, कितने ही पोप पुजारी और उन के चेले पकड़े गये। पुजारियों ने यह भी हाथ जोड़ कर कहा कि तीन क्रोड़ रूपया ले लो मन्दिर और
मूर्ति मत तोड़ो। मुसलमानों ने कहा कि
हम ‘बुत्परस्त’ नहीं किन्तु ‘बुतशिकन्’
अर्थात् मूर्तिपूजक नहीं किन्तु
मूर्तिभंजक हैं और उन्होंने जा के झट
मन्दिर तोड़ दिया। जब ऊपर की छत
टूटी तब चुम्बक पाषाण पृथक् होने से
मूर्ति गिर पड़ी। जब मूर्ति तोड़ी तब
सुनते हैं कि अठारह करोड़ के रत्न निकले।
जब पुजारी और पोपों पर कोड़ा
अर्थात कोड़े पड़े तो रोने लगे। मुस्लिम
सैनिकों ने पुजारियों को कहा कि
कोष बतलाओ। मार के मारे झट बतला
दिया। तब सब कोष लूट मार कूट कर पोप
और उन के चेलों को ‘गुलाम’ बिगारी
बना, पिसना पिसवाया, घास
खुदवाया, मल मूत्रादि उठवाया और
चना खाने को दिये। हाय ! क्यों पत्थर
की पूजा कर (हिन्दू) सत्यानाश को
प्राप्त हुए? क्यों परमेश्वर की (सत्य वेद
रीति से) भक्ति न की? जो म्लेच्छों के
दांत तोड़ डालते और अपना विजय करते। देखो ! जितनी मूर्तियां हैं उतनी शूरवीरों की पूजा करते तो भी कितनी रक्षा होती? पुजारियों ने इन पाषाणों की इतनी भक्ति की किन्तु मूर्ति एक भी उन (अत्याचारियों) के शिर पर उड़ के न लगी। जो किसी एक शूरवीर पुरुष की मूर्ति के सदृश सेवा करते तो वह अपने सेवकों को यथाशक्ति बचाता और उन शत्रुओं को मारता।
उपर्युक्त पंक्तियों में महर्षि दयानन्द जी ने जो कहा है वह एक सत्य ऐतिहासिक दस्तावेज है। इससे सिद्ध है कि पुजारियों सहित सैनिको व देशवासियों के अपमान व पराजय का कारण मूर्तिपूजा, फलित ज्योतिष, अन्धविश्वास, पाखण्ड, ढ़ोग, वेदों को विस्मृत कर वेदाचरण से दूर जाना आदि थे। यह कहावत प्रसिद्ध है कि जो व्यक्ति व जाति इतिहास से सबक नहीं सीखती वह पुनः उन्हीं मुसीबतों मे फंस जाती व फंस सकती है अर्थात् इतिहास अपने आप को दोहराता है। महर्षि दयानन्द ने हमें हमारी भूलों का ज्ञान कराकर असत्य व अज्ञान पर आधारित मिथ्या विश्वासों को छोड़ने के लिये चेताया था। हमने अपनी मूर्खता, आलस्य, प्रमाद व कुछ लोगों के स्वार्थ के कारण उसकी उपेक्षा की। आज भी हम वेद मत को मानने वाली हिन्दू जनता को सुसंगठित नहीं कर पाये जिसका परिणाम देश, समाज व जाति के लिए अहितकर हो सकता है। महर्षि दयानन्द ने वेदों का जो ज्ञान प्रस्तुत किया है वह संसार के समस्त मनुष्यों के लिए समान रूप से कल्याणकारी है। लेख की समाप्ति पर उनके शब्दों को एक बार पुनः दोहराते हैं- ‘जब तक इस मनुष्य जाति
में परस्पर मिथ्या मतमतान्तर का विरूद्ध
वाद न छूटेगा तब तक अन्योऽन्य को
आनन्द न होगा। यदि हम सब मनुष्य और
विशेष विद्वज्जन ईष्र्या द्वेष छोड़
सत्याऽसत्य का निर्णय करके सत्य का
ग्रहण और असत्य का त्याग करना
कराना चाहैं तो हमारे लिये यह बात
असाध्य नहीं है। … यदि ये (मत–मतान्तर
वाले) लोग अपने प्रयोजन (स्वार्थ) में न
फंस कर सब के प्रयोजन (हित व कल्याण)
को सिद्ध करना चाहैं तो अभी ऐक्यमत
हो जायें।’ आईये, सत्य को ग्रहण करने व असत्य का त्याग करने का व्रत लें। इसके लिये वेदों का स्वाध्याय करें और वेदानुसार ही जीवन व्यतीत करें जिससे देश, समाज व विश्व को लाभ प्राप्त हो।
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Hinduo me unity kabhi ho hi nahi sakti hai.
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