Friday, July 29, 2016

सनातन धर्म का आधार और ज्ञान का भंडार… वेद ~~~~~~~~~~~~~ वेद क्या हैं ? ”वेदो अखिलो धर्म मूलम ” …...

सनातन धर्म का आधार और ज्ञान का भंडार… वेद
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वेद क्या हैं ?

”वेदो अखिलो धर्म मूलम ” … ”वेद धर्म का मूल हैं” … राजऋषि मनु के अनुसार ‘वेद’ शब्द ‘विद’ मूल शब्द से बना है… ‘विद’ का अर्थ है… “ज्ञान”…

वेद 1.97 बिल्लियन वर्ष पुराने हैं | वेदों के अनुसार यह वर्तमान सृष्टि 1 अरब, 96 करोड़, 8 लाख और लगभग 53000 वर्ष पुरानी है और इतने ही पुराने हैं “वेद” | जैसा की ऋग्वेद मन्त्र 10/191/3 में कहा गया है की यह सृष्टि , इससे पिछली सृष्टि के

समान है और सृष्टि के चलने का क्रम शाश्वत है , इसलिए “वेद” भी शाश्वत हैं |” वेदों का वास्तव में सृजन या विनाश नहीं होता , वे तो केवल प्रकाशित और अप्रकाशित होते हैं , परन्तु , ईश्वर में सदैव रहते हैं”-आदि जगद्गुरु शंकराचार्य…”वेद अपौरुषेय हैं”-

कुमारीलभट्ट…
वेद वास्तव में पुस्तकें नही हैं… बल्कि यह वो ज्ञान है जो ऋषियों के ह्रदय में प्रकाशित हुआ | ईश्वर वेदों के ज्ञान को सृष्टि के प्रारम्भ के समय चार ऋषियों को देते हैं… जो जैविक सृष्टि के द्वारा पैदा नही होते हैं | इन ऋषियों के नाम हैं… अग्नि, वायु, आदित्य और अंगीरा |


1.ऋषि अग्नि ने “ऋग्वेद” को प्राप्त किया
2.ऋषि वायु ने “यजुर्वेद” को प्राप्त किया
3.ऋषि आदित्य ने “सामवेद” को प्राप्त किया और
4.ऋषि अंगीरा ने “अथर्ववेद” को प्राप्त किया…

इसके बाद इन चार ऋषियों ने दुसरे लोगों को इस दिव्य ज्ञान को प्रदान किया…

इन्हीं ऋषियों से ऋषि ब्रह्मा जी को ज्ञान प्राप्त हुआ। ब्रह्मा जी चरों वेदों के ज्ञाता थे। पहले शिक्षा/ ज्ञान को श्रवण कर कंठस्थ कर लिया जाता था।
इसी परम्परा से वेदों की शिक्षा करोड़ों अरबों वर्षो तक चलती रही।

वेदों का लिखित संकलन रूप महर्षि कृष्णद्वैपायन ने दिया ।जिन्हें सम्मान से महर्षि वेदव्यास भी कहा जाता है।


ऋग्वेद दिव्य मन्त्रों की संहिता है | इसमें १०१७ (1017) ऋचाएं अथवा सूक्त हैं जो कि १०६०० (10600) छंदों में पंक्तिबद्ध हैं | ये आठ “अष्टको” में विभाजित हैं एवं प्रत्येक अष्टक के क्रमानुसार आठ अध्याय एवं उप- अध्याय हैं | ऋग्वेद का ज्ञान मूलतः अत्रि, कन्व, वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदाग्नि, गौतम एवं भरद्वाज ऋषियों को प्राप्त हुआ | ऋग वेद की ऋचाएं एक सर्वशक्तिमान पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर की उपासना अलग अलग विशेषणों से करती हैं…

सामवेद संगीतमय ऋचाओं का संग्रह हैं | विश्व का समस्त संगीत सामवेद की ऋचाओं से ही उत्पन्न हुआ है | ऋग्वेद के मूल तत्व का सामवेद संगीतात्मक सार है, प्रतिपादन हैं…

यजुर्वेद मानव सभ्यता के लिए नीयत कर्म एवं अनुष्ठानों का दैवी प्रतिपादन करते हैं | यजुर वेद का ज्ञान मद्यान्दीन, कान्व, तैत्तरीय, कथक, मैत्रायणी एवं कपिस्थ्ला ऋषियों को प्राप्त हुआ…

अथर्ववेद ऋग्वेद में निहित ज्ञान का व्यावहारिक कार्यान्वन प्रदान करता है ताकि मानव जाति उस परम ज्ञान से पूर्णतयः लाभान्वित हो सके | लोकप्रिय मत के विपरीत अथर्ववेद जादू और आकर्षण मन्त्रों एवं विद्या की पुस्तक नहीं है…

वेद- संरचना…

प्रत्येक वेद चार भागों में विभाजित हैं, क्रमशः : संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् | ऋचाओं एवं मन्त्रों के संग्रहण से संहिता, नीयत कर्मों और कर्तव्यों से ब्राह्मण , दार्शनिक पहलु से आरण्यक एवं ज्ञातव्य पक्ष से उपनिषदों का निर्माण हुआ है | आरण्यक समस्त योग का आधार हैं | उपनिषदों को वेदांत भी कहा जाता है एवं ये वैदिक शिक्षाओं का सार हैं…

वेद: समस्त ज्ञान के आधार हैं…

अनंता वै वेदा: … वेद अनंत हैं

वेद धर्म का विश्वकोश है।इसमे मनुष्य के सभी कर्तव्यों का समावेश है।
वेद में जो कुछ कहा वही धर्म है, जो वेद के विरुद्ध है वो अधर्म है।

वेद कहता है:
1. सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।।।
ऋ.10।191।2
अर्थात मिलकर चलो, मिलकर बोलो, तुम सब के मन प्रेम से पूरित और एक जैसे हों।

2. मनुर्भव जनया देव्यं जनम् ।।
ऋ. 10।53।6
अर्थात् मनुष्य बनो।मननशील बनो सोच विचार कर काम करने वाले बनो।और दिव्य संतानों को जन्म दो।

3. अनुव्रतः पितुः पुत्रो मात्रा भवतु संमनाः।
जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शांतिवन।।

अर्थात पुत्र पिता का अनुवर्तन करने वाला ,पिता के शुभ गुणों को जीवन में धारण करने वाला हो।माता के साथ सौहार्द्रपूर्ण ,उत्तम बरताव करने वाला हो। पत्नी पति से मीठी वाणी बोले और और शांतिशील पति भी अपनी पत्नी के साथ मधुर वाणी बोले।

इससे श्रेष्ठ धर्म और क्या हो सकता है?

विश्व में केवल एक ही धर्म है , सनातन या वैदिक धर्म ।
संसार में और जितने भी तथाकथित धर्म हैं वो वास्तव में धर्म है ही नहीं।वे मत या सम्प्रदाय हैं। संसार में जितने भी सम्प्रदाय हैं उन सबका मूल वैदिक धर्म है।इन मतों और पंथो में जो अच्छी बातें हैं वे सब वेद की हैं और जो गप्पें हैं वे सब उनकी अपनी हैं।


सारे मत -पंथ और सम्प्रदाय वेद का उच्चिष्ठ अर्थात जूठन है।


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