मेरी ढाई शंका!!
शंका दो हो या तीन किन्तु यह ढाई शंका कैसे? जितनी उत्सुकता यह जानने कि आप लोगों होगी उतनी ही मेरी थी| यह कोई लघुकथा नहीं बल्कि एक जीता जागता सत्य है जिसने एक मुस्लिम विद्वान को निरुतर कर दिया था| वाक्या जनवरी 2016 विश्व पुस्तक मेले का था| देश, विदेश से आये पुस्तक प्रेमी धार्मिक, सामाजिक, स्वास्थ और साहित्य आदि पर लिखी पुस्तकें खरीद रहे थे| किन्तु इन सब के बीच पुस्तकों की आड़ में कुछ सम्प्रदाय धर्मांतरण का कुचक्र भी रच रहे थे| एक चर्चित इस्लामिक स्टाल पर कुछेक लोगों की भीड़ देखकर में भी पहुँच गया| पता चला कुरान ए शरीफ की प्रति लोगों को फ्री बांटी जा रही है| शांति प्रेम और आपसी मेल जोल को इस्लाम का संदेश बताया जा रहा था| खैर जिज्ञाषा वश मेने भी फ्री में कुरान पाने को उनका दिया आवेदन फॉर्म भरने की ठानी जिसमें वो नाम-पता और मोबाइल नम्बर लिखवा रहे थे ताकि बाद में लोगों से सम्पर्क साधा जा सके| एकाएक एक सज्जन अपनी धर्मपत्नी जी के साथ स्टाल में पधारे सामान्य अभिवादन से पश्चात उन्होंने मुस्लिम विद्वान् के सामने अपना प्रश्न रखा कि में अपनी धर्मपत्नी के साथ इस्लाम स्वीकार करना चाहता हूँ,,,
यह सुन मुस्लिम विद्वान के चेहरे पर प्रसन्त्ता की अनूठी आभा दिखाई दी| मुस्लिम धर्मगुरु ने अपने दोनों हाथ खोलकर कहा आपका स्वागत है| लेकिन उन सज्जन ने कहा इस्लाम स्वीकार करने से पहले मेरी ढाई शंका है आपको उनका निवारण करना होगा| यदि आप उनका निवारण कर पाए तो ही में इस्लाम स्वीकार कर सकता हूँ!! मुस्लिम विद्वान ने शंकित से भाव से उनकी ओर देखते हुए प्रश्न किया महोदय शंका या तो दो हो या तीन ये ढाई शंका का क्या तुक है?
सज्जन ने अपने मुस्कुराते हुए कहा जब में शंका रखूँगा आप खुद समझ जायेंगे यदि आप तैयार हो तो में अपनी पहली शंका आपके सामने रखूं? मुस्लिम विद्वान् ने कहा जी रखिये|
सज्जन- मेरी पहली शंका है कि सभी इस्लामिक बिरादरी के मुल्कों में जहाँ मुस्लिमों की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा है मसलन मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक है उनमें एक भी देश में समाजवाद नहीं है, लोकतंत्र नहीं है, वहां अन्य धर्मो में आस्था रखने वाले लोग सुरक्षित नहीं है, जिस देश में मुस्लिम बहुसंख्यक होते हैं कट्टर इस्लामिक शासन कि मांग होने लगती है मतलब उदारवाद नहीं रहता, लोकतंत्र नही रहता, लोगों से उनकी अभिवयक्ति की स्वतंत्रता छीन सी ली जाती है आप इसका कारण स्पष्ट करें, ऐसा क्यों? में इस्लाम स्वीकार कर लूँगा!! मुस्लिम विद्वान के चेहरे पर एक शंका ने हजारों शंकाए खड़ी कर दी| फिर भी उसने अपनी शंकाओं को छिपाते हुए कहा, दूसरी शंका प्रकट करें|
सज्जन – मेरी दूसरी शंका है, पुरे विश्व में यदि वैश्विक आतंक पर नजर डाले तो इस्लामिक आतंक की भागीदारी 95 फीसदी के लगभग है| अधिकतर मारने वाले आतंकी मुस्लिम ही क्यों होते है? अब ऐसे में यदि मैंने इस्लाम स्वीकार किया तो आप मुझे कौनसा मुसलमान बनओंगे? हर रोज जो या तो कभी मस्जिद के धमाके में मर जाता, तो कभी जरा सी चुक होने पर पर इस्लामिक कानून के तहत दंड भोगने वाला या फिर वो मुसलमान जो हर रोज बम धमाकेकर मानवता की हत्या कर देता है, इस्लाम के नाम पर मासूमों का खून बहाने वाला या सीरिया की तरह औरतो को अगुवा कर बाजार में बेचने वाला, मतलब में मरने वाला मुसलमान बनूंगा या मारने वाला? यह सुनकर दूसरी शंका ने मानों उन विद्वान पर हजारों मन बोझ डाल दिया हो| दबी सी आवाज़ में उसने कहा बाकि बची आधी शंका बोलो? आर्य सज्जन ने मंद सी मुस्कान के साथ कहा वो आधी शंका मेरी धर्मपत्नी जी की है| इनकी शंका आधी इसलिए है कि इस्लाम नारी समाज को पूर्ण दर्जा नहीं देता हमेशा उसे पुरुष की तुलना में आधी ही समझता है तो इसकी शंका को भी आधा ही आँका जाये! मुस्लिम विद्वान ने कुछ लज्जित से स्वर में कहा जी मोहतरमा फरमाइए!
सज्जन की धर्मपत्नी जी ने बड़े सहज भाव से कहा ये इस्लाम कबूल कर ले मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं किन्तु मेरी इनके साथ शादी हुए करीब 35 वर्ष हो गये यदि कल इस्लामिक रवायतो, उसुलो के अनुसार किसी बात पर इन्हें गुस्सा आ गया और मुझे तलाक, तलाक, तलाक कह दिया तो बताइए में इस अवस्था में कहाँ जाउंगी? यदि तलाक भी ना दिया और कल इन्हें कोई पसंद आ गयी और ये उससे निकाह करके घर ले आये तो बताइए उस अवस्था में, मैं मेरे का बच्चों का मेरे गृहस्थ जीवन क्या होगा? तो ये मेरी आधी शंका है| इस प्रश्न के वार से मुस्लिम विद्वान को निरुत्तर कर दिया उसने इन जबाबों से बचने के लिए कहा आप अपना परिचय दे सकते है| सज्जन ने कहा मेरी शंका ही मेरा परिचय है यदि आपके पास इन प्रश्नों का उत्तर होगा हमारी ढाई शंका का निवारण आपके पास होगा तो आप मुझे बताना| सज्जन तो वहां से चले गये मौलाना साहब सर पकडकर बैठे रहे| किन्तु इस सारे वार्तालाप से मेरे मन में जरुर एक शंका खड़ी हो गयी कि आखिर ये सज्जन कौन है| बाद में मुझे पता चला कि सज्जन आर्य समाज से जुड़े एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व है| यह सब जानकार मेरे मुंह से अनायास ही एक स्वर फूट पड़ा कि आर्य समाज अमर रहे ! क्या आप भी अपने तर्क , युक्ति और प्रमाणों से मुल्ला मौलवियों की बोलती बन्द करना चाहते हैं ?
यदि हाँ, तो आर्यसमाज के साहित्य अवश्य ही पढ़े । धन्यवाद ।
from Tumblr http://ift.tt/29XcwMr
via IFTTT
No comments:
Post a Comment