Sunday, February 7, 2016

२३ माघ 5 फरवरी 2016 😶 “अभय करो ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् यतोयत: समीहसे ततो नोअभयं...

२३ माघ 5 फरवरी 2016

😶 “अभय करो ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् यतोयत: समीहसे ततो नोअभयं कुरु । 🔥🔥
🍃🍂 शं न: कुरु प्रजाभ्योभयं न: पशुभ्य: ।। 🍂🍃

यजु:० ३६ । २२ ।

ऋषि:- दध्यङ्ङाथर्वण: ।। देवता- ईश्वर: ।। छन्द:- भुरिगुष्णिक् ।।

शब्दार्थ- जहाँ-जहाँ से तुम सम्यक् चेष्टा करते हो वहाँ से हमें अभय कर दो। हमारी प्रजाओं के लिए कल्याण कर दो और हमारे पशुओं के लिए अभय कर दो।

विनय:- हम किसी भी घटना से, किसी भी स्थान में, किसी भी काल में क्यों डरते हैं? वास्तव में डरने का कहीं भी कोई कारण नहीं है। फिर भी हे परमेश्वर! हम इसलिए डरते हैं, क्योंकि हम तुम्हें भूल जाते हैं, क्योंकि सदा हम सर्वत्र सब घटनाओं में तुम्हारा हाथ नहीं देखते। यदि हम संसार की सब घटनाओं को तुम्हारे द्वारा ‘संचेष्टित’ देखें, तुम द्वारा सम्यक्तया की गई देखें तो हम कभी भी भयभीत न हों। तुम तो परम मंगलकारी हो, सम्यक् ही चेष्टा करनेवाले हो, सदा सबका कल्याण ही करनेवाले हो। इसलिए हे प्रभो! तुम जहाँ-जहाँ से चेष्टा करते हो, जिस-जिस स्थान, काल, कारण व कर्म से अपना संचेष्टन करते हो वहाँ-वहाँ से हमें अभय कर दो, वहाँ-वहाँ से हमें बिलकुल निर्भयता ला दो, पर तुम कहाँ संचेष्टन नहीं कर रहे हो? तुम किस जगह नहीं जाग रहे हो? ओह, यदि हम संसारी मनुष्य इतना अनुभव करें तो इस संसार में हमारे लिए अभय-ही-अभय हो जाए। इस संसार में सुख, सौहार्द, प्रेम और निर्भयता का राज्य हो जाए। कहीं कोई निर्बल को न सतावे, कभी कोई मूक पशुओं पर भी हाथ न उठाए। तब न केवल सब प्रजाएँ सुख-शान्ति पाएँ, न केवल बालक आदि सब मनुष्य-प्राणी क्षेम मनाएँ, किन्तु संसार की आगे आनेवाली सन्ततियाँ भी कल्याण को प्राप्त करें तथा सब पशु-पक्षी भी इस बृहत् प्राणी-परिवार के अंग होते हुए निर्भय होकर इस पृथिवी पर विचरें। इस समय जो यह संसार स्वार्थान्ध होकर गरीबों को नाना प्रकार से सता रहा है, अपने भोग-विलास के लिए प्रतिदिन असंख्य पशुओं को काट रहा है-यह सब घोर अनर्थ तब शान्त हो जाए, सब पाप-अन्याय समाप्त हो जाए। प्रभो! हे जगदीश्वर! तुम ऐसी ही कृपा करो। हम सब प्राणी सदा सर्वत्र तुम्हारे ही 'समीहन’ को अनुभव करें, तुम ऐसी ही कृपा करो। हमारी प्रजाओं के लिए तुम ऐसा ही 'शम्’ कर दो, हमारे पशुओं के लिए भी तुम ऐसा ही परिपूर्ण 'अभय’ कर दो।


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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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