|| नियोग पर आक्षेप कितने सही ??? क्या नियोग व्यभिचार है ???
नोट:- मित्रों यह लेख मेरा नहीं है परन्तु इसके भेजने का मुख्य उद्देश्य नियोग को व्यभिचार बताकर जो भ्रम फैलाया गया हैं उसका खण्डण करना हैं व अन्त में विभिन्न धर्मों के ग्रन्थों में आये नियोग सम्बन्धित वर्णन को भी सांकेतिक रूप में रखना हैं |
नोट:- यह नियोग विषय पर ४ लेखो की एक श्रंख्ला हैं अन्त के तीनो लेख मेरे द्वारा लिखे गये हैं और उनमें हम विभिन्न शास्त्रों आदि में आये नियोग विषय सम्बन्धित प्रमाणो को पूर्ण प्रमाणिकता के साथ रखेगे ||
∆℅∆ लेख संख्या– १
कुछ अज्ञानी लोग स्वामी दयानंद रचित सत्यार्थ प्रकाश पर नियोग विषय को लेकर आक्षेप करते है। उनका दोष केवल इतना ही हैं कि वे नियोग के विषय में उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं हैं और इस विषय में अधूरी जानकारी होने के कारण वे स्वामी दयानंद के मूल उद्देश्य को समझ नहीं पाते हैं और व्यर्थ वितंडा करते हैं।
शंका–१
क्या नियोग करना धर्म हैं ???
जिस किसी भी आस्तिक व्यक्ति ने वैदिक सिद्धान्तों का व्यापक अध्ययन किया है वह कर्म को तीन प्रकार का मानता हैं।
१. धर्म
२. अधर्म
३. आपद्धर्म
१. धर्म–
वह सब कर्म जिनके करने से पुण्य और जिनके न करने से पाप होता है | जैसे सन्ध्या (सुबह शाम परमात्मा का ध्यान स्मरण) करना, सुपात्र को दान देना, वाणी से सत्य, प्रिय और हितकारी बोलना, सुख दुःख और लाभ-हानी में समान रहना आदि |
२. अधर्म–
उन कर्मों का नाम है जिनके करने से पाप और जिनके न करने से पुण्य होता है जैसे शराब पीना, जुआ खेलना, चोरी, डकैती करना, ठगना, गाली देना, अपमान करना, निरापराध को दण्ड देना आदि |
३. आपद्धर्म–
वे सभी कर्म जिनको सामान्य स्थितियों में करना अच्छा नहीं कहा जाता परन्तु जिनको आपदा अथवा संकट में करना पाप कर्म नहीं कहलाता हैं | जैसे शल्य चिकित्सक द्वारा प्राण रक्षा के लिए मनुष्य के शरीर पर चाकू चलाना, देश कि सीमा पर शत्रु के प्राणों का हरण करना, जंगल में नरभक्षी शेर का शिकार करना आदि |
विवाह धर्म का अंग है, व्याभिचार अधर्म का अंग है ठीक वैसे ही नियोग आपद्धर्म का अंग हैं |
शंका–२
नियोग का मूल उद्देश्य क्या हैं ???
प्रिय पाठकों कृपया एक साधारण से प्रश्न पर विचार करें | यदि आपसे पूछा जाए कि आप रोटी, चावल, दाल, सब्जी, दूध, दही आदि कब खाते हैं तो आप कहेंगे “प्रतिदिन” अब यदि आप से पूछा जाए कि कुनैन आप कब खाते हैं तो आप कहेंगे कि “केवल मलेरिया में” | क्या कड़वी कुनैन भी खाने की चीज हैं, परन्तु मलेरिया में हम न खाने वाली वस्तु को भी खाते हैं ताकि हमारी जान बच जाए | जैसे रोटी चावल आदि सामान्य जीवन का अंग है ठीक इसी तरह विवाह भी सामान्य जीवन का अंग है | जैसे न खाने वाली कुनैन भी आपत्ति में खाना उचित होता है इसी तरह सामान्य जीवन का अंग न होते हुए भी आपत्ति काल में नियोग सही होता है |
सभी आक्षेपकों ने नियोग को अनैतिक कहा और इसकी निन्दा की | परन्तु किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि नियोग मूलतः समाज व्यवस्था का सन्तुलन रखने और व्याभिचार को बचाने के लिए ही एक आपद्धर्म है।
जैसे स्वस्थ व्यक्ति को दवा की जरूरत नहीं है वैसे ही सामन्य रूप से संतान उत्पन्न होने पर भी नियोग की जरूरत नहीं है | जैसे कुछ परिस्थितियों मे दवा के बिना शरीर मर जाता है या स्थायी रूप से विकृत /अक्षम हो जाता है वैसे ही बिना नियोग के व्याभिचार से समाज विकृत हो जाता है। जैसे चिकित्सा के कुछ नियम हैं (जैसे दवा की मात्रा /पथ्य/अपथ्य) वैसे नियोग के भी कुछ नियम हैं । जैसे बिना नियम के दवाई लाभ के स्थान पर हानि करती है वैसे ही बिना नियम पालन के नियोग समाज को हानि पहुंचाता है।
नियोग का केवल और केवल एक ही प्रयोजन हैं असक्षम व्यक्ति के लिए संतान उतपन्न करने के लिए, विधवा अथवा जिसका पति उपलब्ध न हो उसे संतान उत्पन्न करने के लिए जिससे उसका जीवन सुचारु प्रकार से व्यतीत हो सके, समाज में मुक्त सम्बन्ध पर लगाम लगाकर, उसे नियम बद्ध कर व्यभिचार को बढ़ने से रोकने के लिए।
शंका–३
व्याभिचार और नियोग में क्या अन्तर हैं ???
बहुत से लोग आलोचना करते हुए कहते हैं कि व्याभिचार और नियोग एक समान हैं | दोनों में कोइ अन्तर नहीं है | इसलिए नियोग भी पाप और अधर्म है | जैसे अपराधी किसी को चाकू से घायल करता है या कोई भी अंग काटता है तो वह अपराध है क्योंकि उसमें कोई नियम और विधि नहीं है। परन्तु जब एक शल्य चिकित्सक किसी रोगी का कोइ अंग चाकू से काटता है तो वह नियम से करता है । भले ही वह चाकू से रोगी को चोट पहुंचा रहा है परन्तु वह चाकू का प्रयोग नियम और चिकित्सा विधि के अनुसार रोगी के हित के लिए करता है | इसी प्रकार व्याभिचार और वेश्यागमन का कोइ नियम नहीं है और समाज के लिए हानिकारक है | परन्तु नियोग विवाह की भांति विधि और नियमों से बंधा हुआ है और समाज के हित में हैं |
शंका–४
महर्षि दयानन्द के नियोग विषय पर क्या विचार हैं ???
ॠग्वेदादि भाष्य भूमिका के नियोग प्रकरण में महर्षि दयानन्द जी लिखते हैं– “इसी प्रकार से विधवा और पुरूष तुम दोनो आपत्काल में धर्म करके सन्तान उत्पत्ति करो और उत्तम-उत्तम व्यवहारों को सिद्ध करते जाओ | गर्भ हत्या या व्याभिचार कभी मत करो | किन्तु नियोग ही कर लो | यही व्यवस्था सबसे उत्तम है |”
इस वाक्य से अर्थ निकलता है कि
** नियोग आपद्धर्म है क्योंकि नियोग केवल आपत्काल मे किया जाता है |
** व्याभिचार और गर्भपात अधर्म/महापाप है इसलिए व्याभिचार और गर्भपात नहीं करना चाहिए |
** नियोग व्यभिचार और गर्भपात जैसे महापापों से बचने का उपाय हैं |
शंका–५
क्या प्राचीन काल में नियोग व्यवहार का प्रयोग होता था ???
निस्संदेह होता था महाभारत/पुराण/स्मृति आदि में नियोग के प्रमाण हैं | कुछ प्रमाणो को हम आगे दे रहे हैं–
∆ व्यासजी का काशिराज की पुत्री अम्बालिका से नियोग- महाभारत आदि पर्व अ 106/6
∆ धृतराष्ट्र व्यास के वीर्य से उत्पन्न हुआ- देवी भगवत स्कन्द 2/6/2
∆ वन में बारिचर ने युधिस्टर से कहा- में तेरा धर्म नामक पिता- उत्पन्न करने वाला जनक हूँ- महाभारत वन पर्व 314/6
∆ कोई गुणवान ब्राह्मण धन देकर बुलाया जाये जो विचित्र वीर्य की स्त्रियों में संतान उत्पन्न करे- महाभारत आदि पर्व 104/2
∆ उत्तम देवर से आपातकाल में पुरुष पुत्र की इच्छा करते हैं- महाभारत आदि पर्व 120/26
∆ परशुराम द्वारा लोक के क्षत्रिय रहित होने पर वेदज्ञ ब्राह्मणों ने क्षत्रानियों में संतान उत्पन्न की- महाभारत आदि पर्व 103/10
∆ पांडु कुंती से- हे कल्याणी अब तू किसी बड़े ब्राह्मण से संतान उत्पन्न करने का प्रयत्न कर- महाभारत आदि पर्व 120/28
∆ किसी कुलीन ब्राह्मण को बुलाकर पत्नी का नियोग करा दो, इनमे कोई दोष नहीं हैं- देवी भगवत 1/20/6/41
∆ व्यास जी के तेज से में भस्म हो जाऊगी इसलिए शरीर से चन्दन लपेटकर भोग कराया- देवी भगवत 1/20/65/41
∆ काम कला जानने वाले व्यास जी को दासी ने संतुष्ट किया- देवी भागवत 2/6/4
∆ भीष्म जी ने व्यास से कहा माता का वचन मानकर , हे व्यास सुख पूर्वक परे स्त्री से संतान उत्पत्ति के लिए विहार कर- देवी भागवत 6/24/46
∆ सूर्य ने कुंती से कहा-भय मत करो संग करो- महाभारत अ। पर्व 111/13
∆ वह तू केसरी का पुत्र क्षेत्रज नियोग से उत्पन्न बड़ा पराकर्मी – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/28
∆ मरुत ने अंजना से नियोग कर हनुमान को उत्पन्न किया – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/15
∆ राम द्वारा बाली के मारे जाने पर उसकी पत्नी तारा ने सुग्रीव से संग किया – गरुड़ पुराण उतर खंड 2/52
∆ बिना संतान वाले की स्त्री बीज लेले- गौतम स्मृति 29
∆ जिसका पति मर गया हैं-वह 6 महीने बाद पिता व भाई नियोग करा दे- वशिष्ट स्मृति 17/486
∆ किन्ही का मत हैं की देवर को छोड़कर अन्य से नियोग न करे- गौतम स्मृति 18
∆ जिसका पति विदेश गया हो तो वह नियोग कर ले- नारद स्मृति श्लोक 98/99/100
∆ देवर विधवा से नियोग करे- मनु स्मृति 9/62
∆ आपातकाल में नियोग भी गौण हैं- मनु 9/58
∆ नियोग संतान के लोभ के लिए ही किया जाना चाहिए- ब्राह्मण सर्वस्व पृष्ट 233
∆ यदि राजा वृद्ध हो गया या बीमार रहता हो तो अपने मातृकुल तथा किसी अन्य गुणवान सामंत से अपनी भार्या में नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न करा ले- कौटिलीय शास्त्र 1/17/52
∆ राजा विशाप ने स्त्री का सुख प्रजा के लिए त्याग दिया। वशिष्ट ने नियोग से मद्यंती में संतान उत्पन्न की- विष्णु पुराण 4/4/69
शंका–६
क्या बाइबिल में नियोग का विधान हैं?
बाइबिल में नियोग
तब यहूदा ने ओनान से कहा- अपनी भाई की बीवी के पास जा और उसके साथ द्वार का धर्म करके अपने भाई के लिए संतान जन्मा- उत्पत्ति पर्व 38/8
जब कई भाई संग रहते हो और उनमें से एक निपुत्र मर जाये तो उसकी स्त्री का ब्याह पर गोत्री से न किया जाये-उसके पति का भाई उसके पास जाकर उसे अपनी स्त्री कर ले – व्यवस्था विवरण 25/5-10
यदि देवर नियोग से इंकार करे तो भावज उसके मुह पर थूके और जूते उसके पाव से उतारे- व्यवस्था 25/2
शंका–७
क्या इस्लाम में भी नियोग का विधान हैं ???
इस्लाम में नियोग का विधान
सूरत कलम रुकुअ 1
वलीद घबराया और तलवार खीचकर अपनी माँ से कहा- सच बता की मैं किसका बीटा हूँ ? माँ ने कहाँ-तेरा बाप नामर्द था, और तेरे चचेरे भाई की आंखे हमारी जायदाद पर लगी हुई थी, मैंने अपने गुलाम से बदफैली (नियोग ) कराई और तू पैदा हुआ- तफसीर मूज सु 59 और गजिन मतीन सूरत 45
शंका–८
क्या आधुनिक समाज में नियोग का व्यवहारिक प्रयोग होता हैं ???
निस्संदेह होता हैं, आजकल नियोग को sperm donation अर्थात वीर्य दान कहा जाता हैं | यह मुख्य रूप से उन दम्पत्तियों द्वारा प्रयोग किया जाता हैं जिनमें पुरुष संतान उत्पन्न करने में असक्षम होता हैं | चिकित्सकों द्वारा उत्तम कोटि का वीर्य महिला के शरीर में स्थापित किया जाता हैं जिससे उसे संतान हो जाये |
मुख्य रूप से भाव वही हैं केवल माध्यम अलग हैं |
नियोग के मुख्य प्रयोजन को समझे बिना व्यर्थ के आक्षेप करना कितना सही ?????
ओ३म्…
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