संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 6 तरह के प्रतिबंध लगाता है! आप किसे मूर्ख बना रहे रवीश-राजदीप?
मैं कल संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी की व्याख्या पढ़ रहा था। अनुच्छेद 19(2) में स्पष्ट तौर पर 6 बाध्यताएं आरोपित की गई हैं, जो अभिव्यक्ति की आजादी को प्रतिबंधित करती हैं। जेएनयू के देशद्रोहियों द्वारा लगाए गए नारे अभिव्यक्ति की आजादी के तहत नहीं आते हैं, यह संविधान में स्पष्ट है।
अनुच्छेद 19(2) साफ कहता है राष्ट्र की सुरक्षा को जिस भाषण से खतरा हो। अब सुनिए- ‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी’, 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह'। क्या इस भाषण में देश को नष्ट करने की गूंज नहीं है?
अनुच्छेद 19(2) साफ कहता है उच्च व सर्वोच्च अदालत की अवमानना। अब सुनिए- 'अफजल हम शर्मिन्दा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं'। अब बताइए अफजल को फांसी की सजा देने वाला सुप्रीम कोर्ट कातिल बताया जा रहा है, अफजल को क्षमादान न देने वाले राष्ट्रपति को कातिल बताया जा रहा है और यह पूरी कानूनी प्रक्रिया जिस संविधान पर टिका है, उसे भी कातिल कहा जा रहा है! क्या यह देश की कानूनी प्रक्रिया को खुली चुनौती नहीं है? उमर खालिद ने तो टीवी स्टूडियो में बैठ कर सुप्रीम कोर्ट को चुनौती देते हुए कहा है- कुछ जज मिलकर कोई फैसला नहीं कर सकते! यह साफ तौर पर देश के कानून का मजाक उड़ाया जा रहा है!
अनुच्छेद 19(2) साफ कहता है राष्ट्र की अखंडता और संप्रभुता पर हमला। अब सुनिए- 'कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी’, 'केरल की आजादी तक, जंग रहेगी'। क्या यह भारत के टुकड़े करने की सोच देश की संप्रभुता पर प्रहार नहीं है?
अब बताइए क्या राहुल गांधी, अरविन्द केजरीवाल, सीताराम येचुरी, डी राजा, केसी त्यागी, रवीश कुमार, राजदीप सरदेसाई आदि देशद्रोहियों के ये साथी क्या संविधान से अनभिज्ञ हैं?
जी नहीं, ये संविधान से अनभिज्ञ नहीं हैं, बल्कि देश की सरकार और कानून व्यवस्था को बंधक बनाने के लिए दबाव की राजनीति कर रहे हैं, जिसमें वो काफी हद तक सफल हो चुके हैं! आप देखिए जेएनयू को उमर खालिद व उसके साथी एक आतंक स्थल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं और देश की कानून व्यवस्था को खुली चुनौती दे रहे हैं! न ये लोग अफजल पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को मानने को तैयार हैं और न भारत की कानून व्यवस्था के सम्मुख प्रस्तुत हो खुद को निर्दोष साबित करने को तैयार हैं! उल्टा कह रहे हैं कि हमलोगों से पंगा लेना इन्हें महंगा पड़ेगा! देश को खुली चुनौती और किसे कहते हैं? भिंडरावाले से ये किस प्रकार अलग हैं?
रवीश कुमार और राजदीप सरदेसाई जैसे वामपंथी पत्रकारों ने जनता को देशद्रोह जैसे मूल मुद्दे से भटकाने का प्रयास किया है! आप देखिए मूढमति लोग आज क्या बात करने लगे हैं- पटियाला हाउस के वकीलों की गुंडागर्दी, भाषण के वीडियो से छेड़छाड़, कश्मीर में भाजपा-पीडीपी सरकार, संघ की साजिश? इनसे पूछिए क्या सारा देश भाजपा या संघ है? देशद्रोहियों का विरोध क्या इस देश की स्वतंत्र जनता नहीं कर सकती है? कमाल है! इससे बड़ी फासिस्ट सोच और क्या होगी कि जनता की स्वतंत्र सोच को किसी पार्टी व संगठन की सोच से जोड़ दिया जाए ताकि देशद्रोहियों पर जनता बात करना ही बंद कर दे?
आप देखिए ये 'लाल सलाम’ वाले लोग देशद्रोहियों के लिए तो कह रहे हैं कि देशद्रोह के मामले इनसे हटाया जाए( बिना न्यायिक प्रक्रिया से गुजरे) और पटियाला हाउस के वकीलों व वीडियो टेप को लेकर ये सीधे जजमेंटल होकर निर्णय सुना रहे हैं!
देश के कानून और संविधान को जिस तरह से उमर व उसके साथी चुनौती दे रहे हैं, रवीश व राजदीप जैसे वामपंथी भी बौद्धिक चासनी में लपेट कर उसी तरह संविधान की धज्जियां उड़ा रहे हैं! दोगलपन-पाखंड और किसे कहते हैं? जरा वामपंथी हिप्पोक्रेट मुझे समझा दें! #SandeepDeo #संदीपदेव
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