Monday, December 29, 2014

———”धर्म और सम्प्रदाय में अंतर क्या है?”———- धर्म...

———”धर्म और सम्प्रदाय में अंतर

क्या है?”———- धर्म संस्कृत

भाषा का शब्द है जोकि धारण करने

वाली धृ धातु से बना है। “धार्यते

इति धर्म:” अर्थात जो धारण किया जाये

वह धर्म है अथवा लोक परलोक के

सुखों की सिद्धि हेतु सार्वजानिक

पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व

सेवन करना धर्म है। दूसरे शब्दों में यह

भी कह सकते है की मनुष्य जीवन

को उच्च व पवित्र बनाने

वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध

सार्वजानिक मर्यादा पद्यति है वह धर्म

है। मनु स्मृति में धर्म के दस लक्षण

धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक

प्रलोभनों में फँसने से

रोकना,चोरी त्याग,शौच,इन्द्रिय

निग्रह,बुद्धि अथवा ज्ञान, विद्या,

सत्य और अक्रोध। धर्म पक्षपात रहित

न्याय, सत्य का ग्रहण, असत्य

का सर्वथा परित्याग रूप आचार है। धर्म

क्रियात्मक वस्तु हैं जबकि मत

या मज़हब विश्वासात्मक वस्तु हैं।

धर्मात्मा होने के लिये

सदाचारी होना अनिवार्य है

जबकि मज़हबी होने के लिए

किसी विशेष मत की मान्यताओं

का पालन करना अनिवार्य है

उसका सदाचार से सम्बन्ध होना अथवा न

होना कोई नियम नहीं है। धर्म में बाहर

के चिन्हों का कोई स्थान नहीं है

जबकि मजहब में उसके चिन्हों को धारण

करना अनिवार्य है। धर्म मनुष्य

को पुरुषार्थी बनाता है क्यूंकि वह

ज्ञानपूर्वक सत्य आचरण से ही अभ्युदय

और मोक्ष

प्राप्ति की शिक्षा देता है परन्तु

मज़हब मनुष्य को आलस्य का पाठ

सिखाता है क्यूंकि मज़हब के

मंतव्यों मात्र को मानने भर से

ही मुक्ति का होना उसमें

सिखाया जाता है। धर्म मनुष्य

को ईश्वर से सीधा सम्बन्ध जोड़कर

मनुष्य को स्वतंत्र और आत्म

स्वालंबी बनाता है क्यूंकि वह ईश्वर

और मनुष्य के बीच में

किसी भी मध्यस्थ या एजेंट

की आवश्यकता नहीं बताता परन्तु

मज़हब मनुष्य को परतंत्र और दूसरों पर

आश्रित बनाता है क्यूंकि वह मज़हब के

प्रवर्तक की सिफारिश के

बिना मुक्ति का मिलना नहीं मानता।

धर्म दूसरों के हितों की रक्षा के

लिए अपने प्राणों की आहुति तक

देना सिखाता है जबकि मज़हब अपने हित

के लिए अन्य मनुष्यों और

पशुयों की प्राण हरने के लिए

हिंसा रुपी क़ुरबानी का सन्देश

देता है। धर्म मनुष्य

को सभी प्राणी मात्र से प्रेम

करना सिखाता है जबकि मज़हब मनुष्य

को प्राणियों का माँसाहार और दूसरे

मज़हब वालों से द्वेष सिखाता है। धर्म

मनुष्य जाति को मनुष्यत्व के नाते से

एक प्रकार के सार्वजानिक आचारों और

विचारों द्वारा एक केंद्र पर

केन्द्रित करके भेदभाव और विरोध

को मिटाता है तथा एकता का पाठ

पढ़ाता है परन्तु मज़हब अपने भिन्न

भिन्न मंतव्यों और कर्तव्यों के कारण

अपने पृथक पृथक जत्थे बनाकर भेदभाव

और विरोध को बढ़ाते और

एकता को मिटाते है। धर्म एक मात्र

ईश्वर की पूजा बतलाता है जबकि मज़हब

ईश्वर से भिन्न मत प्रवर्तक/गुरु/मनुष्य

आदि की पूजा बतलाकर अन्धविश्वास

फैलाते है। धर्म और मज़हब के अंतर

को ठीक प्रकार से समझ लेने पर मनुष्य

श्रेष्ठ एवं

कल्याणकारी कार्यों को करने में

पुरुषार्थ करेगा तो उसमें

सभी का कल्याण होगा। आज संसार में

जितना भी कट्टरवाद हैं उसका कारण

मज़हब में विश्वास करना हैं न की धर्म

का पालन है।




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