सभी आर्यों के लिये————————
” उठो दयानंद के सिपाहियों समय पुकार रहा है|
देश द्रोह का विषधर फन फैला फुंकार रहा है||
उठो विश्व की सूनी आँखें काजल मांग रही हैं|
उठो विश्व की द्रुपद सुताएं आँचल मांग रही है||
मरघट को पनघट सा कर दो जग की प्यास बुझा दो|
भटक रहे जो मरुस्थलों में उनको राह दिखा दो||
गले लगा लो उनको जिनको जग दुत्कार रहा है |
उठो दयानंद के……………
तुम चाहो तो पत्थर को भी मोम बना सकते हो|
तुम चाहो तो खारे जल को सोम बना सकते हो||
तुम चाहो तो बंजर में भी बाग़ लगा सकते हो|
तुम चाहो तो पानी में भी आग लगा सकते हो||
”जातिवाद” जग की नस-नस में जहर उतार रहा है|
याद करो क्या भूल गये जो ऋषि को वचन दिया था||
शायद वादा याद नहीं जो आपने कभी किया था|
वचन दिया था ओ३म् पताका कभी न झुकने देगें|
हवन कुण्ड की अग्नि घरों से कभी न बुझने देगें||
लहू शहीदों का गद्दारों को धिक्कार रहा है|
उठो दयानंद के……………………….
कब तक आँख बचा पाओगे आग बुहत फैली है|
उजली-उजली दिखने वाली हर चादर मैली है||
लेखराम का लहू पुकारे आँख जरा तो खोलो|
एक बार मिलकर सारे ऋषि दयानंद की जय बोलो||
वेदज्ञान का व्यथित सूर्य तुमर निहार रहा है|||
उठो दयानंद के……………….
जय वैदिक धर्म की,
जय ऋषि दयानंद की,
जय श्री राम की,
जय श्री कृष्ण की ||
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