Sunday, December 28, 2014

सभी आर्यों के लिये———————— ” उठो दयानंद के...

सभी आर्यों के लिये————————

” उठो दयानंद के सिपाहियों समय पुकार रहा है|

देश द्रोह का विषधर फन फैला फुंकार रहा है||

उठो विश्व की सूनी आँखें काजल मांग रही हैं|

उठो विश्व की द्रुपद सुताएं आँचल मांग रही है||

मरघट को पनघट सा कर दो जग की प्यास बुझा दो|

भटक रहे जो मरुस्थलों में उनको राह दिखा दो||

गले लगा लो उनको जिनको जग दुत्कार रहा है |

उठो दयानंद के……………

तुम चाहो तो पत्थर को भी मोम बना सकते हो|

तुम चाहो तो खारे जल को सोम बना सकते हो||

तुम चाहो तो बंजर में भी बाग़ लगा सकते हो|

तुम चाहो तो पानी में भी आग लगा सकते हो||

”जातिवाद” जग की नस-नस में जहर उतार रहा है|

याद करो क्या भूल गये जो ऋषि को वचन दिया था||

शायद वादा याद नहीं जो आपने कभी किया था|

वचन दिया था ओ३म् पताका कभी न झुकने देगें|

हवन कुण्ड की अग्नि घरों से कभी न बुझने देगें||

लहू शहीदों का गद्दारों को धिक्कार रहा है|

उठो दयानंद के……………………….

कब तक आँख बचा पाओगे आग बुहत फैली है|

उजली-उजली दिखने वाली हर चादर मैली है||

लेखराम का लहू पुकारे आँख जरा तो खोलो|

एक बार मिलकर सारे ऋषि दयानंद की जय बोलो||

वेदज्ञान का व्यथित सूर्य तुमर निहार रहा है|||

उठो दयानंद के……………….

जय वैदिक धर्म की,

जय ऋषि दयानंद की,

जय श्री राम की,

जय श्री कृष्ण की ||




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