Sunday, December 28, 2014

न्याय के मतानुसार जीवात्मा कर्त्ता एवं भोक्ता होने के साथ-साथ, ज्ञानादि से सम्पन्न नित्य तत्त्व...

न्याय के मतानुसार जीवात्मा कर्त्ता एवं भोक्ता होने

के साथ-साथ, ज्ञानादि से सम्पन्न नित्य तत्त्व है।

यह जहाँ वस्तुवाद को मान्यता देता है,

वहीं यथार्थवाद का भी पूरी तरह अनुगमन करता है।

मानव जीवन में सुखों की प्राप्ति का उतना अधिक

महत्त्व नहीं है, जितना कि दु:खों की निवृत्ति का।

ज्ञानवान् हो या अज्ञानी, हर

छोटा बड़ा व्यक्ति सदैव सुख प्राप्ति का प्रयत्न

करता ही रहता है। सभी चाहते हैं कि उन्हें सदा सुख

ही मिले, कभी दु:खों का सामना न करना पड़े,

उनकी समस्त अभिलाषायें पूर्ण होती रहें, परन्तु

ऐसा होता नहीं। अपने आप को पूर्णत: सुखी कदाचित्

ही कोई अनुभव करता हो।




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