(साभार उत्कृष्ट शंका समाधान = स्वामी विवेकानन्द जी परिव्राजक, रोजड़वाले)
ज्योतिष शास्त्र
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शंका 53.:- ‘‘ज्योतिषम् नेत्रमुच्यते’’ अर्थात् वेद के ज्ञान प्राप्ति का साधन ज्योतिष नेत्र (आँख) रूप से है, और ज्योतिष वेद का अंग है, तो ज्योतिष का उपयोग आधिदैविक,आधिभौतिक, आध्यात्मिक पापों से छुड़ाने में क्या हो सकता है? वेद के ज्योतिष को कृपया समझाएॅं।
समाधान- ’’ज्योतिषम् नेत्रमुच्यते’’-इसका अर्थ होता है कि वेद को समझने के लिए, सृष्टि को समझने के लिए ’ज्योतिष शास्त्र’ को जानना आवश्यक है। ज्योतिष का मतलब जानिएः-
‘ज्योति’ का अर्थ होता है-‘प्रकाश’ और ज्योतिष शास्त्र का अर्थ होता है-प्रकाशवाले पिण्डों की गतिविधियों को बताने वाला शास्त्र। जैसे सूर्य, ज्योति-पिण्ड है, प्रकाश का पिण्ड है। यह प्रकाश फेंकता है। इसी तरह से एक सूर्य, दो सूर्य, तीन सूर्य, हजारों सूर्य, ग्रह और उपग्रह आदि चीजों की गतिविधियों को बताने वाला शास्त्र है - ‘ज्योतिष शास्त्र’। जो ज्योतिष शास्त्र को जानता है, सूर्य नक्षत्र आदि की गतिविधियों को जानता है, भूगोल-खगोल-शास्त्र को जानता है, वो व्यक्ति वेद को ठीक-ठीक समझ सकता है। ‘‘ज्योतिषम् नेत्रमुच्यते’’-इसका तात्पर्य इस तरह से है।
एक और ज्योतिष, जो फलित ज्योतिष के नाम से आजकल प्रचलित है-जैसे हस्त-रेखा विज्ञान, भविष्य-फल, राशि-फल, जन्म-कुण्डली, इनसे हम किसी का भविष्य नहीं बता सकते। कोई किसी का भविष्य जानता ही नहीं।
जन्मकुंडली मिलाते हैं, कुंडली मिलाकर के विवाह करते हैं। अच्छा तो भई, कुण्डली मिलाकर विवाह किया तो, शादी के बाद झगड़ा क्यों हुआ, तलाक क्यों हुआ? भविष्यफल बताकर वो बेकार जनता की बुद्धि खराब करते हैं। उनकी इन बातों में कुछ भी नहीं रखा है, सब व्यर्थ की बातें हैं।
राम और रावण की एक ही राशि थी, पर देखो दोनों का हाल क्या हुआ? लाखों साल हो गए हैं लेकिन लोग एक को तो दीप जला रहे हैं, और दूसरे को गालियां मिल रही हैं। कंस और कृष्ण की भी एक ही राशि थी। अब उनका भी इतिहास देख लो कि दोनों में कितना फर्क है? कंस को गालियॉं पड़ती है, कृष्ण जी के गीत गा रहे हैं लोग।
ये जो जन्म कुंडली बनाते हैं और ग्रहों का फल बताते हैं, यह सब भी बेकार है, झूठ है। जैसे राशियॉं बारह हैं, इसी तरह से ये नौं ग्रह मानते हैं। इनको तो ग्रहों का भी पता नहीं। नौं ग्रहों कीे गिनती में भी नौं में से पांॅच गलती करते हैं। कैसे?
ये नौं ग्रह ऐसे गिनाते है, एक ग्रह मानतें है, सूर्य। अब बताइए, सूर्य भी कोई ग्रह हरै क्या? वो तो नक्षत्र है। जो स्वयं प्रकाश फेंकता है, जिसका अपना प्रकाश हो, उसे कहते है ‘नक्षत्र‘। सूर्य तो स्वयं अपना प्रकाश फेेंकता है, तो सूर्य नक्षत्र है, ग्रह नहीं है। यह है एक गलती।
दूसरी भूल चन्द्रमा को ये ग्रह बताते हैं। चन्द्रमा ग्रह नहीं, उपग्रह है। जो नक्षत्र के चारों ओर चक्कर लगाए, उसको बोलते हैं ‘ग्रह‘। और जो ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाए, उसको कहते हैं ‘उपग्रह‘। तो सूर्य नक्षत्र है, हमारी पृथ्वी ग्रह है, चन्द्र हमारी पृथ्वी का उपग्रह है। जो हमारी पृथ्वी के चारांे तरफ चक्कर लगाता है। दो भूल हो गईं।
तीसरी भूल-पृथ्वी ग्रह है, जिसका हम पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। लेकिन नौं ग्रहों में से पृथ्वी ग्रह का नाम ही गायब है। एक आदमी बारह फीट की ऊंॅचाई से गिरे, तो हड्डी टूटेगी कि नहीं टूटेगी? तुरंत प्रभाव पड़ेगा पृथ्वी का। लेकिन उसका नाम ही गायब है।
चौथी और पांचवी गलती है - ज्योतिष वाले राहु और केतु नामक दो ग्रह बताते है। और इन्हीं से सबसे अधिक डराते हैं। वस्तुतः राहु-केतु नाम का कोई ग्रह है ही नहीं दुनिया में। इसलिए ग्रहों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
पुरुषार्थ से सारी चीजे सिद्ध हो जाती हैं। पुरुषार्थ ही इस दुनिया में सब कामना पूरी करता है। पुरुषार्थ करो, भविष्य अच्छा हैै। तीन बातें सीख लेनी चाहिए-पुरुषार्थ, बुद्धिमत्ता और ईमानदारी। आपका भविष्य बहुत अच्छा है।
भाग्य तो एक बार जन्म से मिल गया, सो मिल गया। बाकी तो पुरुषार्थ बलवान है। भाग्य से भी बलवान है। पुरुषार्थ अच्छा है, तो भविष्य भी अच्छा है। और पुरुषार्थ खराब है, तो भाग्य भी सो जाएगा। भविष्य जानने के लिए किसी से पूछने की जरूरत नहीं है। देखो, हम किसी से अपना भविष्य पूछते नहीं।
लोग पता नहीं क्या-क्या अंगूठियॉं पहनते हैं - लाल, पीली, नीली। हमने आज तक कोई अंगूठी नहीं पहनी। हम कोई हार गलें में नहीं पहनते। तीन सौ पैसठ दिन हमारा धंधा; समाज सेवा कार्य खूब चलता है। इतना चलता है, कि हमको हाथ जोड़कर माफी मॉंगनी पड़ती है कि साहब, टाइम नहीं है।
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