राम राम,कृष्णा कृष्णा,राधे राधे,वाहेगुरु वाहेगुरु,ईसा ईसा,अल्लाह अल्लाह आदि रटने से कुछ लाभ होने वाला नहींl इस बहुमूल्य मनुष्य जीवन को सफल बनाना है तो महर्षि पंतजलि द्वारा बताए बताए अष्टांग योग को अपनी दिनचर्या का आवश्यक अंग बनाओlइसकेलिए किसी मन्दिर मस्जिद आदि में जाने की आवश्यकता नहीं lमन्दिर मस्जिद आदि की दीवारों ने तो मनुष्य जाति को भिन्न भिन्न मतमतान्तरों में बांट कर परस्पर वैमनस्य उत्पन्न किया है lलाखों मन्दिर मस्जिद चर्च आदि जो बन गए हैं उन्हें सामूहिक ध्यान के केंद्र बनाने की आवश्यकता है l
अष्टांग योग अर्थात यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान और समाधि का निरन्तर अभ्यास करना ही सर्ववयापक सर्वन्तर्यामी निराकार ईश्वर की पूजा करने का एकमात्र वेदानुकूल और वैज्ञानिक उपाय है l
समय रहते यज्ञ योग और वेद को जीवन में अपना लो नहीं तो महति विनष्टि है lपुन: यह मनुष्य जन्म मिले न मिले,बेकार की बातों में,बहस में,तर्क वितर्क व कुतर्क में समय नष्ट न करो-यही ईश्वरिय वाणि वेद और भगवान राम,कृष्ण,शिव एवं लाखों ऋषियों मुनियों का भी आदेश हैl
—डा मुमुक्षु आर्य
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