योगदर्शन सूत्र २
योगश्चित्त्वृत्तिनिरोध: ।।२।।
पूर्व के सूत्र में योग का अनुशासन बताया,अब योग है क्या इस पर चरचा होती है।
योगः चित्त वृत्ति निरोधः
योग है चित्त वृत्ति निरोध।
अब समझते हैं चित्त क्या है!
कोई कोई चित्त को मात्र कल्पना या विचारों का समूह मानते हैं,इसका तात्विक अस्तित्व नही मानते;जबकि ये एक तत्वों से निर्मित अवयव एक साधन है जीवात्मा के लिए जो उसके सम्पर्क में सबसे पहले आता है क्यूंकि वह उसके सबसे निकट है।
जैसे ५ ज्ञानेन्द्रियाँ ५ कर्मेन्द्रियाँ प्रत्यक्ष अनुभव में आने वाले साधन हैं,वैसे ही मन,बुद्धि,चित्त,अहंकार ये ४ भी आत्मा के साधन हैं;अन्तर मात्र इतना है कि इन्द्रियां बहरी साधन हैं और ये ४ भीतरी सो साधन को करण कहनेसे इन्द्रियां बाहरी और उक्त ४ भीतरी अर्थात् अन्तःकरण हुए।
कुछ विद्वानों ने समान विषयी होने से बुद्धि और चित्त को एक ही में समाहित मान लिया है और कोई कोई ४ को एक में ही समाहित मानते हैं,नामकरण कुछ भी करें अन्तःकरण पर सभी एकमत हैं।
यहाँ आप समझने की सुविधा हेतु इन चारो को कुछ समय के हेतु १ मान सकते है,यहाँ जहाँ भी मैं मनबुद्धिचित्त बोलूं या अन्तःकरण आप चित्त समझ लेना,इससे सुविधा होगी।
स्पष्ट हुआ चित्त अन्तःकरण है आत्मा का एक साधन कोई काल्पनिक नहीं है।
वृत्ति का अर्थ व्यापार,व्यापार का अर्थ कार्य है तो चित्त की वृत्ति का अर्थ चित्त के कार्य हैं।
चित्त के क्या कार्य हैं इस पर चरचा अग्रिम अंक में करेंगे। सूत्र व्याख्या शेष क्रमशः।। ॐ।।
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