अंतर्ज्योति जगे जब मन में ।
जगमग ज्योति जगे जीवन में ।।
ज्योतिर्मय है ओउम् प्रकाश ।
करता पाप ताप का नाश ।।
इसमें योगी ध्यान रमाते ।
और इससे है परम पद पाते ।।
अमृत स्त्रोत बहे जब भीतर ।
चंचल चित्त हो वश में शीतल ।।
शोधन बोधन तब हो पावे ।
ओउम् नाम जब सहज समावे ।।
सुमित आर्य
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