Wednesday, January 21, 2015

सामवेद यह गेय ग्रन्थ है। इसमें गान विद्या का भण्डार है, यह भारतीय संगीत का मूल है। ऋचाओं के गायन को...

सामवेद

यह गेय ग्रन्थ है। इसमें गान विद्या का भण्डार है,

यह भारतीय संगीत का मूल है। ऋचाओं के गायन

को ही साम कहते हैं। इसकी 1001 शाखाएं थीं।

परन्तु आजकल तीन ही प्रचलित हैं - कोथुमीय,

जैमिनीय और राणायनीय। इसको पूर्वार्चिक और

उत्तरार्चिक में बांटा गया है। पूर्वार्चिक में चार

काण्ड हैं - आग्नेय काण्ड, ऐन्द्र काण्ड, पवमान

काण्ड और आरण्य काण्ड। चारों काण्डों में कुल

640 मंत्र हैं। फिर महानाम्न्यार्चिक के 10 मंत्र हैं।

इस प्रकार पूर्वार्चिक में कुल 650 मंत्र हैं।

छः प्रपाठक हैं। उत्तरार्चिक को 21 अध्यायों में

बांटा गया। नौ प्रपाठक हैं। इसमें कुल 1225 मंत्र हैं।

इस प्रकार सामवेद में कुल 1875 मंत्र हैं। इसमें

अधिकतर मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं। इसे

उपासना का प्रवर्तक भी कहा जा सकता है।


———- आर्य ईश्वर विद्रोही

अथर्ववेद

इसमें गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, समाज शास्त्र,

कृषि विज्ञान, आदि अनेक विषय वर्णित हैं। कुछ

लोग इसमें मंत्र-तंत्र भी खोजते हैं। यह वेद जहां ब्रह्म

ज्ञान का उपदेश करता है, वहीं मोक्ष का उपाय

भी बताता है। इसे ब्रह्म वेद भी कहते हैं। इसमें मुख्य

रूप में अथर्वण और आंगिरस ऋषियों के मंत्र होने के

कारण अथर्व आंगिरस भी कहते हैं। यह 20

काण्डों में विभक्त है। प्रत्येक काण्ड में कई-कई सूत्र

हैं और सूत्रों में मंत्र हैं। इस वेद में कुल 5977 मंत्र हैं।

इसकी आजकल दो शाखाएं शौणिक एवं पिप्पलाद

ही उपलब्ध हैं। अथर्ववेद का विद्वान्

चारों वेदों का ज्ञाता होता है। यज्ञ में ऋग्वेद

का होता देवों का आह्नान करता है, सामवेद

का उद्गाता सामगान करता है, यजुर्वेद

का अध्वर्यु देव:कोटीकर्म का वितान करता है

तथा अथर्ववेद का ब्रह्म पूरे यज्ञ कर्म पर नियंत्रण

रखता है।


———- आर्य ईश्वर विद्रोही




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