कौन थी राधा?
आर्य लेखक = राजेश आर्य “रत्नेश”
पिछले दिनों न्यायालय ने लव इन रिलेशनशिप के मामले में योगिराज श्रीकृष्ण और राधा को घसीट लिया. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से इस विषय पर चर्चा आवश्यक है. विडम्बना तो यह है कि श्री कृष्ण के भक्त कहलाने वाले भी श्रीकृष्ण को लांछित कर गौरवान्वित हो रहे हैं. लेखक.
प्रिय पाठकवृन्द! प्राचीन भारतीय संस्कृति को नीचा दिखाने के लिए पश्चिम की कुसभ्यता का अडंगा समाचार पत्र, पत्रिकाओं व दूरदर्शन आदि के माध्यम से बड़े-बडे़ षड्यंत्र रचकर भारत के घर-घर में भेजा जा रहा है. गुलामी के संस्कारों में जीने वाला ‘इण्डिया’ इसे अपनाने में गौरव समझता है और जिस नग्नता को भारत स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, उसे ‘इण्डिया’ न्यायालय के माध्यम से भारत पर थोंप रहा है. भारत की जीवन शैली का आहार, विचार, व्यवहार व परिवार सब कुछ मर्यादा में बँधा होता था, पर मुक्त यौनाचार के इच्छुक इण्डिया ने पश्चिम के डॉक्टरों और वैज्ञानिकों का नाम लेकर सब मर्यादाएँ तोड़ दीं. आश्चर्य तो इस बात का है कि अब पुराणों का नाम लेकर भी पश्चिम की नग्नता भारत में पैर जमाने लगी है.
वर्तमान शैली में भारत का इतिहास लिखने वाले इतिहासकारों ने पुराणों को ऐतिहासिक स्रोत के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया. यहाँ तक कि ऐतिहासिक ग्रंथो- रामायण, महाभारत को भी काल्पनिक कहकर हटा दिया और विडंबना दखिये कि अब नग्नता का प्रवेश कराने के लिए उन्हीं पुराणों को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत कर दिया. श्री जगदीश सिंह गहलोत ने ‘राजस्थान के राजवंशों का इतिहास’ मे लिखा है-
‘पुराण एक गपोड़ गाथाओं का भण्डार है जो सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ के पं. चिन्तामणि विनाया वैद्य के मतानुसार ई. सन् 300 में 900 से के बने हैं बीच. पुराणों को शुद्ध इतिहास का महत्त्व नहीं दिया जा सकता. ’
अन्य इतिहासकार भी इन्हें महर्षि वेदव्यास की रचना तो दूर किसी अन्य एक विद्वान् की एक समय में लिखी रचना भी नहीं मानते. फिर ऐसे पुराणों में वर्णित कवि कल्पित राधा को भारत का सर्वोच्च न्यायालय कैसे मान्यता दे सकता है? और यदि राधा को मान्यता मिलती है तो क्या सर्वोच्च न्यायालय व देश के कम्युनिस्ट इतिहास पुराणों में वर्णित श्रीकृष्ण से जुड़े अन्य चमत्कारों को मानने की भी उदारता दिखाएँगे? यथा-
जन्म के समय श्रीकृष्ण चतुर्भुज रूप में आये कारागार में उनके माता-पिता के बंधन अपने आप टूट
गये. उन्होंने बाल्यावस्था में ही पूतना, शकटासुर जैसे अनेक विकराल राक्षसों को मारा, सैकड़ों फनों वाले कालिया नाग का मर्दन
किया. गोवर्धन पर्वत कई दिनों तक अपनी उंगली पर उठाए रखा. उनकी 16108 रानियाँ थीं व उनके सभी से 10-10 पुत्र हुए. आकाश में कहीं स्वर्ग है जहाँ इन्द्र शासन करता है आदि. राधा को मैं काल्पनिक इस आधार पर कह रहा हूँ कि श्रीकृष्ण अपने समय में महान आदर्श चरित्र वाले माने जाते थे. महाभारत के सभी प्रमुख पात्र भीष्म, द्रोण, व्यास, कर्ण, अर्जुन, युधिष्ठिर आदि श्रीकृष्ण के महान-चरित्र की प्रशंसा करते थे. उस काल में भी परस्त्री से अवैध संबंध रखना दुराचार माना जाता था, तभी तो भीम ने द्रौपदी की ओर उठने वाली कीचक की कामी (कामुक) आंखें निकाल लीं थीं. यदि श्रीकृष्ण का भी राधा नामक किसी औरत से दुराचार हुआ होता तो श्रीकृष्ण पर मिथ्या दोषारोपण करने वाला शिशुपाल उसे कहने से न चूकता. सम्पूर्ण महाभारत में केवल कर्ण का पालन करने वाली माँ राधा को छोड़कर इस काल्पनिक राधा का नाम नहीं है, जिसके आधार पर भारत का, नहीं नहीं ‘इण्डिया’ का सर्वोच्च न्यायालय राधा-कृष्ण की तरह भारत के जवान स्त्री-पुरुष को विवाह के बंधन में न पड़कर साथ रहने अर्थात् दुराचार करने की स्वतंत्रता देना चाहता है. भागवत् पुराण में श्रीकृष्ण की बहुत सी लीलाओं का वर्णन है, पर यह राधा वहाँ भी नहीं है. राधा का वर्णन मुख्य रूप से ब्रह्मवैवर्त पुराण में आया है. यह पुराण वास्तव में कामशास्त्र है, जिसमें श्रीकृष्ण राधा आदि की आड़ में लेखक ने अपनी काम पिपासा को शांत किया है, पर यहाँ भी मुख्य बात यह है कि इस एक ही ग्रंथ में श्रीकृष्ण के राधा के साथ भिन्न-भिन्न सम्बन्ध दर्शाये हैं, जो स्वतः ही राधा को काल्पनिक सिद्ध करते हैं. देखिये- ब्रह्मवैवर्त पुराण ब्रह्मखंड के पाँचवें अध्याय में श्लोक 25,26 के अनुसार राधा को कृष्ण की पुत्री सिद्ध किया है. क्योंकि वह श्रीकृष्ण के वामपार्श्व से उत्पन्न हुई बताया है. ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खण्ड अध्याय 48 के अनुसार राधा कृष्ण की पत्नी (विवाहिता) थी, जिनका विवाह ब्रह्मा ने करवाया. इसी पुराण के प्रकृति खण्ड अध्याय 49 श्लोक 35,36,37,40, 47 के अनुसार राधाा श्रीकृष्ण की मामी थी. क्योंकि उसका विवाह कृष्ण की माता यशोदा के भाई रायण के साथ हुआ था. गोलोक में रायण श्रीकृष्ण का अंशभूत गोप था. अतः गोलोक के रिश्ते से राधा श्रीकृष्ण की पुत्रवधु हुई. क्या ऐसे ग्रंथ और ऐसे व्यक्ति को प्रमाण माना जा सकता है? हिन्दी के कवियों ने भी इन्हीं पुराणों को आधार बनाकर भक्ति के नाम पर शृंगारिक रचनाएँ लिखी हैं. ये लोग महाभारत के कृष्ण तक पहुँच ही नहीं पाए. जो पराई स्त्री से तो दूर, अपनी स्त्री से भी बारह साल की तपस्या के बाद केवल संतान प्राप्ति हेतु समागम करता है, जिसके हाथ में मुरली नहीं, अपितु दुष्टों का विनाश करने के लिए सुदर्शन चक्र था, जिसे गीता में योगेश्वर कहा गया है. जिसे दुर्योधन ने भी पूज्यतमों लोके (संसार में सबसे अधिक पूज्य) कहा है, जो आधा पहर रात्रि शेष रहने पर उठकर ईश्वर की उपासना करता था, युद्ध और यात्रा में भी जो निश्चित रूप से संध्या करता था. जिसके गुण, कर्म, स्वभाव और चरित्र को ऋषि दयानन्द ने आप्तपुरुषों के सदृश बताया, बंकिम बाबू ने जिसे सर्वगुणान्ति और सर्वपापरहित आदर्श चरित्र लिखा, जो धर्मात्मा की रक्षा के लिए धर्म और सत्य की परिभाषा भी बदल देता था. ऐसे धर्म-रक्षक व दुष्ट-संहारक कृष्ण के अस्तित्त्व को मानने की उदारता भी क्या भारत का सर्वोच्च न्यायालय और दुराग्रहग्रस्त इतिहास वेत्ता दिखाएंगे?
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