सृष्टि के आदि से लेकर आजतक सत्यज्ञान हमें ऋषियों के द्वारा मिलता रहा है | ज्ञान के वाहक ऋषिगण होते हैं | कर्तव्य-अकर्तव्य, पुण्य-पाप, धर्म-अधर्म, गुण-अवगुण, लाभ-हानि, सत्य-असत्य, हितकर-अहितकर, आस्तिक-नास्तिक आदि तथा ईश्वर का परिज्ञान हम मनुष्यों को ऋषि मुनि ही बतलाते हैं | ऋषिगण अपूर्व मेधा सम्पन्न, ईश्वर के संविधान के महाविद्वान, निस्वार्थी और परम दयालु होते हैं | इनका प्रत्येक उपदेश और कार्य प्राणिमात्र के हित के लिये होता है | वर्तमान कालीन देश-प्रान्त आदि की सीमाओं में इनका ज्ञान और कार्य बंधा हुआ नहीं होता है, परन्तु इस विश्व में प्रत्येक मनुष्यमात्र के लिये इनका उपदेश और कार्य होता है, यथार्थ में ये ऋषि - मुनि ही देश काल की सीमाओं से परे जाकर मनुष्य मात्र के कल्याण और उन्नयन के लिये कर्म और उपदेश करते हैं, वास्तव में ये ऋषि - मुनि ही मनुष्य ही नहीं अपितु प्राणिमात्र के सच्चे हितैषी होते हैं, इनका उपदेश हिन्दु, मुस्लिम, ईसाई, पारसी, जैनी, बौद्ध आदि-आदि विश्व भर में प्रचलित समस्त मत - पन्थों एवं सम्प्रदायों के अनुयायियों के लिये भी एक जैसा होता है, ये ही सच्चे अर्थों में मानवीय होते हैं| ऋषियों का ज्ञान सत्य, तथ्य, तर्क और यथार्थ वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित होता है| जिनके सिद्धान्तों को किसी भी काल में और किसी के भी द्वारा काटा नहीं जा सकता है, इनका सिद्धान्त ईश्वरीय सिद्धान्तों एवं उनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान पर अवलम्बित है| सृष्टि के प्रारम्भ के ऋषियों से लेकर महाभारत कालीन ऋषियों यथा ऋषि व्यास , ऋषि जैमिनि, ऋषि पतन्जलि, ऋषि कणाद, ऋषि कपिल, ऋषि गौतम, ऋषि यास्क और पराधीनता के काल में ऋषि दयानन्द से हमें विश्व भर के मनुष्यमात्र के लिये करणीय और धारणीय ईश्वरीय ज्ञान मिला है|
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