Sunday, April 10, 2016

ऐसी उत्तम और विराट तथा बारीक़ से बारीक़ काल गणना हमारे सनातन शास्त्रों के अतिरिक्त कहीं नहीं है...

ऐसी उत्तम और विराट तथा बारीक़ से बारीक़ काल गणना हमारे सनातन शास्त्रों के अतिरिक्त कहीं नहीं है |

आइये कुछ नया जानें :

क्रति = सैकन्ड का 34000वाँ भाग
1 त्रुति = सैकन्ड का 300वाँ भाग
2 त्रुति = 1 लव
1 लव = 1 क्षण
30 क्षण = 1 विपल
60 विपल = 1 पल
60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट )
2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा)
24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार)
7 दिवस = 1 सप्ताह
4 सप्ताह = 1 माह
2 माह = 1 ऋतु
6 ऋतु = 1 वर्ष
100 वर्ष = 1 शताब्दी
10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी
432 सहस्राब्दी = 1 युग
2 युग = 1 द्वापर युग
3 युग = 1 त्रेता युग
4 युग = सतयुग
1 महायुग = सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग
76 महायुग = मनवन्तर
1000 महायुग = 1 कल्प
1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ)
1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प (देवों का अन्त और जन्म)
1 महाकाल = 730 कल्प
(ब्रह्मा का अन्त और जन्म)

तनिक ध्यान दीजिये।
हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है।
ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते |
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है।
जो हमारे देश भारत में बना।
ये हमारा भारत है जिस पर हमको गर्व है।🚩🚩🚩


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आज का सुविचार (8 अप्रैल 2016, शुक्रवार, वैशाख शुक्ल प्रतिपदा) ब्राह्मण पुस्तकों में बहुत से...

आज का सुविचार (8 अप्रैल 2016, शुक्रवार, वैशाख शुक्ल प्रतिपदा)

ब्राह्मण पुस्तकों में बहुत से ऋषि-महर्षि और राजा आदि के इतिहास लिखे हैं। और इतिहास जिसका हो उसके जन्म के पश्चात् लिखा जाता है। वह ग्रन्थ भी उसके जन्म के पश्चात् होता है। वेदों में किसी का इतिहास नहीं, किन्तु जिस-जिस शब्द से विद्या का बोध होवे उस-उस शब्द का प्रयोग किया है। किसी विशेष मनुष्य की संज्ञा वा विशेष कथा का प्रसंग वेदों में नहीं है। (~महर्षि दयानन्द सरस्वती)


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अनुभव : – मैं किडनी ट्रांसप्लांट से कैसे बचा। How I Avoid Kidney Transplant. जिन लोगो को डॉकटरो ने...

अनुभव : – मैं किडनी ट्रांसप्लांट से कैसे बचा।
How I Avoid Kidney Transplant.
जिन लोगो को डॉकटरो ने किडनी ट्रांसप्‍लांट की सलाह दी हो, या डायलसिस चल रहा हो तो उन्हे किडनी ट्रांसप्लांट करवाने के पहले इस दवा का प्रयोग जरूर करके देखना चाहिए हो सकता है कि ट्रांसप्‍लांट की नौबत ना आए। बता रहे हैं श्री ओम प्रकाश जी जिनको यही समस्या 2009 में आई थी, और डॉक्टर ने उनको किडनी ट्रांसप्लांट करने के लिए बोल दिया था। तो उन्होंने ना ही सिर्फ अपनी किडनी को स्वस्थ किया बल्कि ऐसे अनेक लोगो को भी इसका दम्भ झेलने से बचाया।
आइये जानते हैं श्री ओम प्रकाश सिंह जी से….
किडनी ट्रांसप्लांट करवाना बहुत महंगा हैं, और कुछ लोग तो ये अफोर्ड नहीं कर सकते, और जो कर भी सकते हैं तो किडनी ट्रांसप्लांट के बाद पहले जैसा जीवन नहीं बन पाता। मैं 17 अक्टोबर 2009 से किडनी की समस्या से झूझ रहा था अप्रैल 2012 मे मुंम्बई के नानावाती हॉस्पिटल के डॉक्टर शरद शेठ से ट्रांसप्लांट की बात भी तय हो चुकी थी लेकिन इसी दरमियान अखिल भारतीय शिक्षकेतर कर्मचारी संघ के महासचिव डॉक्टर आर बी सिंह से मुलाकात हो गई और उन्होने कहा की यह काढ़ा 15 दिन पीने के बाद अपना फैसला लेना है के आपको क्या करना है, मैने उनकी बात मानकर काढ़े का उपयोग किया और एक हफ्ते के बाद चलने फिरने मे सक्षम हो गया तब से में अभी तक पूरी तरह से स्वस्थ महसूस कर रहा हूँ कोई दवा भी नही लेता हूँ और ना ही कोई खाने पीने का परहेज ही करता हूँ, और ना ही किसी प्रकार की कमजोरी महसूस करता हु।
तो कौन सा हैं वो काढ़ा आइये जानते हैं।
काढ़ा बनाने की विधि:
पाव (250 ग्राम) गोखरू कांटा (ये आपको पंसारी से मिल जायेगा) लेकर 4 लीटर पानी मे उबालिए जब पानी एक लीटर रह जाए तो पानी छानकर एक बोतल मे रख लीजिए और कांटा फेंक दीजिए। इस काढे को सुबह शाम खाली पेट हल्का सा गुनगुना करके 100 ग्राम के करीब पीजिए। शाम को खाली पेट का मतलब है दोपहर के भोजन के 5, 6 घंटे के बाद। काढ़ा पीने के एक घंटे के बाद ही कुछ खाइए और अपनी पहले की दवाई ख़ान पान का रोटिन पूर्ववत ही रखिए।
15 दिन के अंदर यदि आपके अंदर अभूतपूर्व परिवर्तन हो जाए तो डॉक्टर की सलाह लेकर दवा बंद कर दीजिए।जैसे जैसे आपके अंदर सुधार होगा काढे की मात्रा कम कर सकते है या दो बार की बजाए एक बार भी कर सकते है। मुझे उम्मीद है की ट्रांसप्लांट का विचार त्याग देंगे जैसा मैने किया है।
मेरा ये अनुभव नवभारत टाइम्स में भी छाप चूका हैं। जिसके बाद मुझे बहुत फोन आये और 3-400 लोगो को मैंने ये बताया भी। जिसमे से 90 % से ऊपर लोगो को आराम मिला।
और अगर आप भी ये प्रयोग करना चाहे तो निश्चिन्त हो कर करिये और अगर ऊपर लिखा हुआ समझ में ना आये या किसी प्रकार की शंका हो तो मुझसे मेरे फोन नंबर 8097236254 पर भी सहायता मांग सकता है।
आपको आराम मिले तो आप दूसरे भाइयो को भी इसी प्रकार बताइये।


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सुन्दर प्रसंग ध्यान दे । ************* महाभारत का युद्ध चल रहा था - एक दिन दुर्योधन के...

सुन्दर प्रसंग ध्यान दे ।
*************
महाभारत का युद्ध चल रहा था -
एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर “भीष्म पितामह” घोषणाकर देते हैं कि -

“ मैं कल पांडवों का बध कर दूँगा ”

उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई -

भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए|

तब -

श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो -

श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए -

शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि - अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो -

द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने -
“अखंड सौभाग्यवती भव” का आशीर्वाद दे दिया , फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि !!

“बत्सा तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो. क्या तुमको श्री कृष्ण यहाँ लेकर आये है” ?

तब द्रोपदी ने कहा कि -

“हां और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं” तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दुसरे से प्रणाम किया -

भीष्म ने कहा -

“मेरे एक बचन को मेरे ही दूसरे बचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते है”

शिविर से वापस लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि -

“तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है ” -

“ अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, ध्रतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती ” -
……तात्पर्य्……

वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि -

“ जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है ”

“ यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो ”

बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई “अस्त्र-शस्त्र” नहीं भेद सकता -

निवेदन-

सभी इस संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो घर स्वर्ग बनजाय।

🚩🚩🚩🙏🙏🙏


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🌷🌷ओ३म्🌷🌷 🌷राजनीति और ब्रह्मनीति🌷 श्रीकृष्ण जैसे महान,आदर्श चरित्रधारी सच्चे नेता ने भारत के उद्धार...

🌷🌷ओ३म्🌷🌷

🌷राजनीति और ब्रह्मनीति🌷

श्रीकृष्ण जैसे महान,आदर्श चरित्रधारी सच्चे नेता ने भारत के उद्धार के लिए यत्न किया।महाभारत राज्य (भारत एवं भारत से बाहर भारतीय राज्य) के पुनरुद्धार के लिए महान् यत्न किया।सफलता भी मिली।

एक बार नहीं दो बार मिली।एक तो राजसूययज्ञ के समय,लेकिन युधिष्ठिर के एक दिन के जुए के लेख ने सब चौपट कर दिया।फिर महाभारत युद्ध हुआ और महाभारत राज्य की स्थापना हुई।श्रीकृष्ण महाराज की आँख बन्द हुई और यह विशाल भवन फिर भूमि पर गिर पड़ा।दूसरी बार चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने मिलकर उसी महाभारत राज्य के लिए प्रयत्न किया।

इस बार महाभारत राज्य तो नहीं बन पाया,किन्तु भारत राज्य फिर बन गया,चाणक्य की आँख बन्द हुई और यह विशाल भारत मन्दिर फिर भूमि पर गिर पड़ा।तीसरी बार छत्रपति शिवाजी ने फिर उस महाभारत राज्य के पुनरुद्धार के लिए यत्न किया।इस बार महाभारत राज्य तो नहीं,किन्तु महाराष्ट्र राज्य तो बन ही गया।

परन्तु शिवाजी की आँखें बन्द हुई और यह पवित्र महाराष्ट्र मन्दिर फिर भूमि पर गिर पड़ा।

ऐसा क्यों हुआ?वेद कहता है-
यत्र ब्रह्म च क्षत्रञ्च सम्यञ्चौ चरतः सह।
तं लोकं पुण्यं प्रज्ञेषं यत्र देवाः सहाग्निना।।-(यजु० २०/२५)

अर्थ:-हे प्रभो ! जहाँ ब्रह्मशक्ति और क्षात्रशक्ति परस्पर सहयोग से काम करती हों मुझे उस पवित्र देश में जन्म लेना अथवा उस पवित्र देश से मेरा प्रगाढ़ परिचय करा देना,जहाँ देवों का लोक-कल्याण-भावनारुप यज्ञाग्नि के साथ पूर्ण सहयोग हो।
ब्रह्मनीति का सूत्र है-यथा प्रजा तथा राजा।ब्राह्मण अपने विद्याबल,तपोबल,चरित्रबल से ऐसी प्रजा उत्पन्न करता है जो ठीक राजा चुनती है और दुष्ट राजा को अपनी जागरूकता से नष्ट कर देती है।

राजनीति ऐसी सुन्दर व्यवस्था उत्पन्न करती है कि -ब्राह्मजन उत्तम राजनीति का पूर्ण विकास करने में समर्थ होते हैं।

श्रीकृष्ण सच्चे क्षत्रिय थे,राजनीति ने अपना पूर्ण चमत्कार दिखाया,ब्रह्मनीति ने साथ नहीं दिया,विदुर शूद्र ही रहे,दुर्योधन क्षत्रिय कहलाया,कृष्ण चिल्लाते रह गये-

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।।

परन्तु करते क्या?यह काम तो ब्राह्मणों का था।ब्रह्मनीति प्रगाढ़ निद्रा में पड़ी थी।

चाणक्य और चन्द्रगुप्त मिले।राजनीति और कूटनीति मिलकर चली,परन्तु ब्रह्मनीति चुप थी।चन्द्रगुप्त भी विफल ही रहा।

शिवाजी ने राजनीति का चमत्कार दिखाया,परन्तु ब्रह्मनीति फिर भी चुप थी अथवा उल्टी बह रही थी।

शिवाजी को यज्ञोपवीत देने का विरोध हुआ।किसलिए?शिवाजी शूद्र है।
कलौ वा अंतयोः स्थितिः।

कलियुग में दो ही वर्ण हैं,एक ब्राह्मण,दूसरा शूद्र।भला हो बेचारे जागा भट्ट का,शिवाजी विधिपूर्वक छत्रपति तो बन गये और यदि कहीं शंकराचार्य का सब चलता तो-

तस्या हि शूद्रस्य वेद उपशृण्वतस्त्रपुजतुभ्यां
श्रोत्रपरिपूरणम्,उच्चारणे जिह्वाच्छेदो धारणे शरीरभेदः ।-(ब्रह्मसूत्र शंकरभाष्य अपशूद्राधिकरण)
शूद्र यदि वेद का मन्त्र सुन ले तो उसके कान में लाख या सीसा पिघलाकर भर दो,वेद का मन्त्र उच्चारण करे तो जीभ काट दो,वेद की पुस्तक उठाकर चले तो हाथ काट दो,यह नियम लागू होता।

बेचारी अकेली राजनीति क्या करती?पवित्र महाराष्ट्र मन्दिर फिर भूमि पर गिर पड़ा।

अन्त में एक सच्चे ब्राह्मण ने वेदघोष सुनाया-

यथेमां वाचं कल्याणीमावादानि जनेभ्यः।
ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय च।।-(यजु० २६/२)

अर्थ:-प्रभु कहते हैं-हे मेरे भक्तो ! तुम ऐसा मार्ग पकड़ो जिससे ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र तुम्हारे अपने और तुम्हारे पराये सब तक पहुँचे।

दयानन्द के रूप में ब्रह्मनीति ने पग उठाया।प्रजा जागी।इस बार तो भारत भी मिला।खण्ड भारत मिला,परन्तु यह आन्दोलन प्रजा का आन्दोलन है।अब राजनीति की प्रतिक्षा है।जिस दिन इस ब्रह्मनीति में राजनीति आ मिली उस दिन खण्ड भारत फिर से भारत और भारत से फिर महाभारत राज्य बनकर रहेगा,परन्तु यह विशाल साम्राज्य शस्त्रबल से नहीं शास्त्रबल से फैल सकेगा,इसलिए इसमें रुधिर प्रवाह नहीं,किन्तु ज्ञानगंगा का प्रवाह होगा।यह कार्य चिर साध्य है,परन्तु चिरजीवी भी है।

मानव राष्ट्र के भक्तो ! राजनीति को ब्रह्मनीति में मिला दो,देखो कैसा दृढ़ भवन बनता है,जिसे भूकम्प हिला न सके और आग जला न सके।

कोई आज सुने या न सुने सच्चा मार्ग यही है और केवल यही है।उपसर्ग छोड़ो और इस मार्ग को अपनाओ।
(वैदिक समाजवाद से उद्धृत
स्वामी समर्पणानन्द सरस्वती)


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आज का सुविचार (6 अप्रैल 2016, बुधवार, चैत्र कृष्ण १४) जैसा ईश्वर पवित्र, सर्वविद्यावित्, शुद्ध...

आज का सुविचार (6 अप्रैल 2016, बुधवार, चैत्र कृष्ण १४)

जैसा ईश्वर पवित्र, सर्वविद्यावित्, शुद्ध गुणकर्मस्वभाव, न्यायकारी, दयालु आदि गुणवाला है वैसे जिस पुस्तक में ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव के अनुकूल कथन हो वह ईश्वरकृत, अन्य नहीं। और जिसमें सृष्टिक्रम, प्रत्यक्षादि प्रमाण, आप्तों के और पवित्रात्मा के व्यवहार से विरुद्ध कथन न हो वह ईश्वरोक्त। (~महर्षि दयानन्द सरस्वती)


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ईश्वर से संग जोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़। विषयों से मुख मोड़ मानव, विषयों से मुख मोड़।। टेक।। प्रातः...

ईश्वर से संग जोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।
विषयों से मुख मोड़ मानव, विषयों से मुख मोड़।। टेक।।

प्रातः सायं संध्या करले, वेदज्ञान जीवन में भरले।
शुभ कर्मों को न छोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।। 1।।

जिस से मानव पाप कमाता, जन्म-मरण बन्धन में आता।
उस बाधक को छोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।। 2।।

केवल धनसंचय में रहना, विषयभोग सागर में बहना।
यह अन्धों की दौड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।।
बिन ईश्वर के जाने-माने, दूध और पानी के न छाने।
वृथा यत्न करोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।। 3।।

अविद्या का नाश किया कर, सदा ईश संग वास किया कर।
छोड़ जगत की होड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।। 4।।

उद्यम करले छोड़ उदासी, जन्म-जन्म की पाप की राशी।
पाप-कलश को फोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।। 5।।

क्यों फिरता है मारा-मारा, ईश्वर का ले पकड़ सहारा।
यह है एक निचोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।। 6।।

अब भी जो तू चेत न पाया, तो फिर तुझको यह जग माया।
देगी तोड़-मरोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।। 7।।

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आज का सुविचार (7 अप्रैल 2016, गुरुवार, चैत्र अमावस्या) धर्मात्मा, योगी, महर्षि लोग जब-जब, जिस-जिस...

आज का सुविचार (7 अप्रैल 2016, गुरुवार, चैत्र अमावस्या)

धर्मात्मा, योगी, महर्षि लोग जब-जब, जिस-जिस के अर्थ के जानने की इच्छा करके ध्यानावस्थित हो, परमेश्वर के स्वरूप में समाधिस्थित हुए, तब-तब परमात्मा ने अभीष्ट मन्त्रों के अर्थ जनाए। जब बहुतों के आत्मा में वेदार्थ प्रकाश हुआ तब ऋषि-मुनियों ने वह अर्थ और ऋषि-मुनियों के इतिहासपूर्वक ग्रन्थ बनाए। उनका नाम `ब्राह्मण’ अर्थात् ब्रह्म जो `वेद’ उसका व्याख्यान ग्रन्थ होने से ब्राह्मण नाम हुआ। (~महर्षि दयानन्द सरस्वती)


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तेरी शरण में जो गया, भव से उसे छुड़ा दिया। चाहे वह कितना पातकी, पावन उसे बना दिया।। टेक।। दर-दर...

तेरी शरण में जो गया, भव से उसे छुड़ा दिया।
चाहे वह कितना पातकी, पावन उसे बना दिया।। टेक।।

दर-दर भटकता है वही, जो तेरे दर पे गया नहीं।
भूले से गर गया कहीं, रस्ता उसे बता दिया।। 1।।

जिसको भरोसा हो गया, बेड़ा ही पार हो गया।
अलमस्त फिर वो हो गया, अमृत जिसे पिला दिया।। 2।।

भाग्य प्रबल उसी का है, त्याग सफल उसी का है।
जीवन तो धन्य उसी का है, जिसको तूने अपना लिया।। 3।।

तुम तो पतितों के नाथ हो, भक्त जनों के साथ हो।
मुझ से अधम विमूढ़ को दाता तूने अपना लिया।।4।।

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!! वानस्पतिक पारद अकौआ एक हफ्ते में कर देता है शुगर लेवल सामान्य !! अकौआ एक औषधीय पादप है. इसको...

!! वानस्पतिक पारद अकौआ एक हफ्ते में कर देता है शुगर लेवल सामान्य !!
अकौआ एक औषधीय पादप है. इसको मदार, मंदार, आक, अर्क भी कहते हैं. इसका वृक्ष छोटा और छत्तादार होता है. पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं. हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं. इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है. फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं. फल आम के तुल्य होते हैं जिनमें रूई होती है. आक की शाखाओं में दूध निकलता है. वह दूध विष का काम देता है. आक गर्मी के दिनों में रेतिली भूमि पर होता है. चौमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है.
इस पौधे की पत्ती को उल्टा (उल्टा का मतलब पत्ते का खुदरा भाग) कर के पैर के तलवे से सटा कर मोजा पहन लें. सुबह और पूरा दिन रहने दे रात में सोते समय निकाल दें. एक सप्ताह में आपका शुगर लेवल सामान्य हो जायेगा. साथ ही बाहर निकला पेट भी कम हो जाता है.
हाँ एक बात पर ध्यान दें इसका दूध आँख में ना जाये नहीं तो आप की आँखें खराब हो सकती है .
अन्य लाभ
आक का हर अंग दवा है, हर भाग उपयोगी है. यह सूर्य के समान तीक्ष्ण तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायनधर्मा हैं. कहीं-कहीं इसे ‘वानस्पतिक पारद’ भी कहा गया है.
आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में जला कर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है. तथा कडुवे तेल में पत्तों को जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है.
इसके कोमल पत्तों के धुंए से बवासीर शाँत होती है.
आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है. सूजन दूर हो जाती है.
आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है. बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं. बर्रे काटे में लगाने से दर्द नहीं होता. चोट पर लगाने से चोट शाँत हो जाती है.
नोट : जहाँ के बाल उड़ गये हों वहाँ पर आक का दूध लगाने से बाल उग आते हैं. लेकिन ध्यान रहे इसका दूध आँख में नहीं जाना चाहिए वर्ना आँखें खराब हो जाती है.
उपरोक्त कोई भी उपाय अपनी ज़िम्मेदारी पर सावधानी से ही करें.


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Friday, April 8, 2016

वैदिक धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने वाले अन्य मतों के अनुयायी ओ३म् ‘वैदिक धर्म के प्रति...

वैदिक धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने वाले अन्य मतों के अनुयायी

ओ३म्

‘वैदिक धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने वाले अन्य मतों के अनुयायी’ –मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। महर्षि दयानन्द पौराणिक माता-पिता की सन्तान थे जिन्होंने सत्य की खोज की और जो सत्य उन्हें प्राप्त हुआ उसे अपनाकर उन्होंने  अपनी पूर्व मिथ्या आस्थाओं व सिद्धान्तों का त्याग किया। सत्य ही एकमात्र मनुष्य जाति की उन्नति का कारण होता है, अतः उन्होंने सत्य को न केवल अपने जीवन में स्थान दिया अपितु अपने गुरू विरजानन्द सरस्वती व ईश्वर की प्ररेणा से उसका दिग-दिगन्त प्रचार भी किया। महर्षि दयानन्द ने चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मुम्बई में आर्य समाज की स्थापना की जिसका उद्देश्य सत्य सनातन वैदिक धर्म का प्रचार व प्रसार करना था। इस सत्य सनातन वैदिक धर्म की प्रमुख विशेषता यह है कि यह सत्य को स्वीकार करता था और असत्य का खण्डन करता था जिसकी प्रेरणा ईश्वरीय ज्ञान वेद व प्राकृतिक नियमों सहित मनुष्यों को अपनी आत्मा से मिलती है। महर्षि दयानन्द के ज्ञान से पूर्ण विचारों, उपदेशों व सत्य सिद्धान्तों को अनेक लोगों ने सुना, समझा, जाना व पढ़ा और शुद्ध व पवित्र ज्ञानयुक्त बुद्धिवाले लोग आर्यसमाज के अनुयायी बनने लगे। एक बहुत बड़ी संख्या उनके जीवनकाल में उनके अनुयायिययों की हो गई थी। यह संख्या निरन्तर बढ़ती रही। आर्यसमाज द्वारा प्रचारित वैदिक धर्म को अपनाने वाले न केवल पौराणिक हिन्दू ही होते थे अपितु अन्य मतों के अनुयायी भी होते थे जो आर्यसमाज के सत्य सिद्धान्तों और उनके मानवजाति के लिए कल्याणप्रद होने के कारण उसे अपनाते थे। आज के लेख में हम एक सिख बन्धु सरदार सुचेतसिंह जी का परिचय दे रहे हैं जिन्होंने मन–वचन–कर्म से आर्यसमाज को अपनाया। एक अन्य श्री हाजी अल्लाह रखीया रहमतुल्ला जी, मुम्बई मुस्लिम बन्धु हैं जिन्होंने अपने मत में रहकर भी आर्यसमाज के सत्य सिद्धान्तों के प्रति सच्ची श्रद्धा व निष्ठा का प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत किया, उनका परिचय भी लेख में प्रस्तुत है। यह दोनों सत्य घटनायें वा जीवन-परिचय सिख मत में जन्में और आर्यसमाज के निष्ठावान अनुयायी बने स्वामी स्वतन्त्रानन्द द्वारा लिखित हैं जिनका संकलन ‘इतिहासदर्पण’ नामक पुस्तक में आर्यसमाज के विद्वान प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु ने प्रकाशित किया है।   सरदार सुचेतसिंह जी का यह परिचय स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी ने सन् 1942 ई. में लिखा था। सरदार सुचेतसिंह जी जिला गुरदासपुर में छीना ग्राम के निवासी थे। इस ग्राम में प्रधानता जाटों की है और उनका गोत्र छीना है। इसी कारण ग्राम का नाम भी छीना है। आप नम्बरदार, जैलदार, डिस्ट्रक्ट बोर्ड के सदस्य व आनरेरी मजिस्ट्रेट के पद पर रहे, अतः जिले में प्रख्यात थे। इस जिले में सरदार विशनसिंहजी रईस भागोवाल आरम्भ समय के आर्यसमाजियों में से थे। उनके संग से ही आप आर्यसमाजी बने थे। आप गुरदासपुर जिले के वेद प्रचार मण्डल के अध्यक्ष थे। आपकी रूचि वेद–प्रचार में अधिक थी। आप प्रायः आर्यसमाज के उत्सवों में सम्मिलित हुआ करते थे। आप आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के भी सदस्य थे। आपके सन्तान नहीं थी। पत्नी का देहान्त होने पर आपने दूसरा विवाह भी नहीं किया था। आपके एक भ्राता थे, जिनका स्वर्गवास हो गया था। गृहकृत्य उनकी भावज ही संभालती थी। उसके भी कोई सन्तान न थी।   सम्बन्धियों ने श्री सुचेतसिंहजी की सम्पत्ति के लोभ से उनको मार दिया, परन्तु पुलिस ने परिश्रम करके पूरा-पूरा पता लगा किया। उनके मारे जाने पर उनकी भावज भी अपने भाई के पास चली गई, वहां जाते समय वह सम्पत्ति भी अपने साथ ले-गई। उस सम्पत्ति में श्री सुचेतसिंहजी के कागज पत्रादि भी थे। उनके पत्रों में एक पत्र उनके हाथ का लिखा मिला जो उनकी इच्छा को प्रकट करता था। उनकी भावज और भावज के भाई अनपढ़ थे। उन्होंने वे कागज एक व्यक्ति को दिखाये ताकि पता हो उनमें क्या लिखा है? उस व्यक्ति ने जब कागज पढ़े, उसे वह कागज भी मिला जिसमें उनकी इच्छा लिखी थी। उसने आकर आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब में सूचना दी। सभा ने वह पत्र प्राप्त कर लिया और जब देखा तो उसमें लिखा था कि मेरी सब चल तथा अचल सम्मत्ति आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब को मिले और वह उसकी आय से जिले में वेद–प्रचार करे और दो व्यक्तियों को जो उसकी सेवा किया करते थे पांच पांच रूपये प्रमिास उनके जीवनपर्यन्त दिये जाएं।   सरदार सुचेतसिंह जी की भूमि का श्री सरफजल हुसैन जी 80 सहस्र देते थे। श्री सरफजल हुसैन पंजाब के एक प्रख्यात राजनेता थे और मन्त्री भी रहे। वह छीना के पास बटाला के निवासी थे। उस समय के हिसाब से वर्तमान में यह घनराशि 1 व 2 करोड़ रूपये लगभग सकती है। सरदार सुचेतसिह जी उस समय उनसे 1 लाख रूपये मांगते थे। इस प्रकार एक लाख या 80 हजार की सम्पत्ति सरदार सुचेतसिंह जी आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब को वेद–प्रचार के लिए लिखकर दे गये। तब उस भूमि आदि सम्पत्ति की प्राप्ति के लिए सभा ने न्यायालय की शरण ली थी। सरदारजी का एक बाग छीना-स्टेशन के साथ ही है जो जिले में अच्छे बागों में समझा जाता था। छीना अमृतसर से पठानकोट को जाते समय बटाला और धारीवाल के बीच का स्टेशन है। इस पर टिप्पणी करते हुए आर्य विद्वान प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने लिखा है कि गुरदासपुर जिला आमों के बागों के लिए विख्यात रहा है। यह बाग उन्होंने भी देखा है। वह वहां सरदारजी की स्मृति में बसन्त मेले पर प्रचारार्थ जाया करते थे। उनके अनुसार सभा ने वहां की भूमि वा बाग, सब कुछ, बेच दिया है। उनके अनुसार प्रचार में सभाओं की रुचि नहीं है। ऐसी ही स्थिति हमने अपने नगर में भी देखी है। पुराने समय में लोग आर्यसमाजों को अपनी बड़ी-बड़ी सम्पत्तियां दान देते थे। सामान्य सदस्य इन कार्यों में रूचि नहीं लेते और चतुर अधिकारी इसका विवरण वार्षिक आयव्यय में भी प्रकाशित नहीं करते। यह सम्पत्तियां कब किसको किस मूल्य पर बेच दी जाती है, सदस्यों को पता ही नहीं चलता। इनकी सूचना सम्पत्तियों की स्वामिनी प्रादेशिक सभा को भी नहीं दी जाती। इससे प्राप्त धन का भी किसी को पता नहीं होता। ऐसी अनेक आशंकायें स्थानीय स्तर पर हमें भी हैं।   इस प्रकार सुचेतसिंह जी अपनी सारी सम्पत्ति आर्य–प्रतिनिधि–सभा को दे गये और जीवनभर आर्यसमाज के प्रचार में भाग लेते रहे। साधारण रीति से पंजाब में ग्रामों में प्रचार अम्बाला कमिश्नरी में ही अधिक है। शेष पंजाब के ग्रामों में प्रचार की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है और यदि प्रचार किया जाए तो प्रत्येक जिले में सफलता प्राप्त हो सकती है। परन्तु सफलता उसी समय होगी जब दयानन्द के प्रचारक दयानन्द के चरण–चिन्हों पर चलकर काम करें अथवा सरदार सुचेतसिंहजी जैसे वेद–प्रचार के प्रेमी हों जो अपना समय और सम्पत्ति वेद–प्रचार पर निछावर करनेवाले हों। इन पंक्तियों का लेखक सरदार सुचेतसिंह जी की ईश्वर-वेद-दयानन्द जी की भक्ति पर मुग्ध है और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।   स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी द्वारा लिखित श्री हाजी अल्लाह रखीया रहमतुल्लाजी मुम्बई का परिचय भी प्रस्तुत है। श्री हाजी साहिब कच्छ (गुजरात) के रहनेवाले थे और मुम्बई में सोने का व्यापार किया करते थे। आप धार्मिक दृष्टि से आर्यसमाजी थे और सर्वदा कहा करते थे कि संसार में धर्म तो वैदिक धर्म ही है। वे आर्यसमाज के सत्संग में नियमपूर्वक आया करते थे। वे आर्यसमाज के सिद्धान्तों से पूर्णतया परिचित थे। स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी को श्री नन्दकिशोर चैबे ने बतलाया था कि एक बार एक स्नातक ने कहा ‘‘किसी को कुछ पूछना हो तो पूछ ले।” तब हाजी जी ने एक प्रश्न किया। स्नातकजी ने उसका उत्तर दिया। तब आपने कहा कि यह उत्तर ठीक नहीं है। स्नातकजी ने कहा, ‘‘ठीक है।” हाजीजी ने सत्यार्थप्रकाश मंगवाया और दिखाया कि जो कुछ वह कहते है, वही ठीक है। पुस्तक में उनका मत देखकर आर्यसमाजी लज्जित हुए। हाजीजी ने कहा, ‘‘आपने तप किया है। जंगल में रहे हैं और गुरुओं के पास रहे हैं, परन्तु आपने ऋषि दयानन्द लिखित वैदिक सिद्धान्तों का परिचय प्राप्त नहीं किया।”   आप सर्वदा विद्यार्थियों को पुस्तकें और छात्रवृत्ति दिया करते थे। निर्धनों की सहायता किया करते थे। कोई कहता था कि आप शुद्ध क्यों नहीं होते तो आप उत्तर दिया करते थे, ‘‘मैं अशुद्ध नहीं हूं।” आप आर्यसमाज में कई बार अपने पुत्रों को भी साथ लाया करते थे। आपने मरते समय पुत्रों को धन देकर लाखों का ट्रस्ट बनाया जिससे छात्रों की सहायता और रोगियों की चिकित्सा की जाये। आर्यसमाज ने जब मन्दिर के पिछले भाग में मकान बनवाया और वह बनकर तैयार हो गया तब श्री विजयशंकरजी, प्रधान ने साप्ताहिक सत्संग में कहा कि इस मकान के बनवाने में आर्यसमाज पर ऋण हो गया है। अब अन्य कार्यों के साथ–साथ आर्यसमाज को यह ऋण भी उतारना होगा। आपने उठकर पूछा कि आर्यसमाज पर कितना ऋण है तो प्रधानजी ने कहा पांच सहस्र रूपये (रूपये 5,000.00) है।  आपने कहा, ‘‘मेरी दुकान से आकर ले–लो।” वे गये। आपने प्रधानजी को 5,000.00 का चैक दे दिया। उस मकान पर जो शिला लगाई गई है, जिस पर दानियों के नाम हैं, उनमें सबसे प्रथम हाजी जी का ही नाम है। आपके नाम से प्रत्येक व्यक्ति उनको वैदिक धर्मी नहीं समझेगा, परन्तु हाजी अल्लाह रखिया रहमतुल्ला जी उतने ही वैदिक धर्मी थे जितना कि कोई वैदिक धर्मी हो सकता है।   हमने इतिहासदर्पण पुस्तक से मात्र दो परिचय प्रस्तुत किये हैं। पुस्तक में ऐसे 56 प्रेरणादायक परिचय दिये गये हैं। हम इतना ही कह सकते हैं कि यह पुस्तक पठनीय एवं अति उपयोगी है। इसका अध्ययन कर हमें भी जीवन में किसी अच्छे कार्य को करने की प्रेरणा मिल सकती है। यदि इसे पढ़कर कोई व्यक्ति जीवन में बुरा काम न करने का भी व्रत ले ले, तो भी उसका कल्याण ही होगा। इन्हीं शब्दों के साथ इस लेख को विराम देते हैं। –मनमोहन कुमार आर्य पताः 196 चुक्खूवाला-2 देहरादून-248001

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हिन्दू कौन – हिन्दू की परिभाषा : डॉ. धर्मवीर अक्टूबर मास के दिनांक 12 के दैनिक भास्कर अजमेर के...

हिन्दू कौन – हिन्दू की परिभाषा :

डॉ. धर्मवीर

अक्टूबर मास के दिनांक 12 के दैनिक भास्कर अजमेर के संस्करण में एक समाचार छपा, जिसमें लिखा था- भारत सरकार को पता नहीं है, हिन्दू क्या होता है? एक सामाजिक कार्यकर्ता ने भारत सरकार के गृह मन्त्रालय से भारत के संविधान और कानून के सबन्ध में हिन्दू शब्द की परिभाषा पूछी। गृह मन्त्रालय के केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी ने कहा है कि इसकी उनके पास कोई जानकारी नहीं है। यह एक विडबना है कि दुनिया के सारे देशद्रोही मिलकर हिन्दू को समाप्त करने पर तुले हैं और इसमें देश में रहने वाले को पता नहीं है कि वह हिन्दू क्यों है और वह हिन्दू नहीं तो हिन्दू कौन है? आज आप हिन्दू की परिभाषा करना चाहे तो आपके लिये असभव नहीं तो यह कार्य कठिन अवश्य है। आज किसी एक बात को किसी भी हिन्दू पर घटा नहीं सकते। हिन्दू समाज की कोई मान्यता, कोई सिद्धान्त, कोई भगवान् कुछ भी ऐसा नहीं है, सभी हिन्दुओं पर घटता हो और सभी को स्वीकार्य हो। हिन्दू समाज की मान्यतायें परस्पर इतनी विरोधी हैं कि उनको एक स्वीकार करना सभव नहीं है। ईश्वर को एक और निराकार मानने वाला भी हिन्दू है, अनेक साकार मानने वाले भी हिन्दू हैं। वेद की पूजा करने वाले हिन्दू हैं, वेद की निन्दा करने वाले भी हिन्दू। इतने कट्टर शाकाहारी हिन्दू हैं कि वे लाल मसूर या लाल टमाटर को मांस से मिलता-जुलता समझकर अपनी पाकशाला से भी दूर रखते हैं, इसके विपरीत काली पर बकरे, मुर्गे, भैसों की बलि देकर ही ईश्वर को प्रसन्न करते हैं। केवल शरीर को ही अस्तित्व समझने वाले हिन्दू हैं, दूसरे जीव को ब्रह्म का अंश मानने वाले अपने को हिन्दू कहते हैं, ऐसी परिस्थिति में आप किन शदों में हिन्दू को परिभाषित करेंगे। आज के विधान से जहाँ अपने को सभी अल्पसंयक घोषित कराने की होड़ में लगे हैं- बौद्ध, जैन, सिक्ख, राम-कृष्ण मठ आदि अपने को हिन्दू इतर बताने लगे हैं फिर आप हिन्दू को कैसे परिभाषित करेंगे। परिभाषा करने का कोई न कोई आधार तो होना चाहिए। सावरकर जी ने जो हिन्दू आसिन्धू सिन्धु पर्यान्ता कह सिन्धु प्रदेश को अपनी पुण्यभूमि पितृभूमि स्वीकार किया है, वह हिन्दू है, ऐसा कहकर हिन्दू को व्यापक अर्थ देने का प्रयास किया है। हिन्दू महासभा के प्रधान प्रो. रामसिंह जी से किसी ने प्रश्न किया- हिन्दू कौन है? तो उन्होंने कहा हिन्दू-मुस्लिम दंगों में मुसलमान जिसे अपना शत्रु मानता है वह हिन्दू है। राजनेता न्यायालयों में भी हिन्दू शब्द को परिभाषित करते हुए एक जीवन पद्धति बताकर परिभाषित करने का यत्न किया था। यह भी एक अधूरा प्रयास है। हिन्दुओं की कोई एक जीवन पद्धति ही नहीं है। हिन्दू संगठन की घोषणा करने वालों ने कहा- अनेकता में एकता हिन्दू की विशेषता। इस आधार पर आप एकता कर ही नहीं सकते। हिन्दू एकता केवल देशद्रोही संगठनों की चर्चा में होती है। यदि अनेकता में एकता बन सकती तो आज मुसलमानों से भी अधिक संगठित होना चाहिए परन्तु हिन्दू नाम एकता का आधार कभी नहीं बन सका। हिन्दू-समाज में एकता की सबसे छोटी इकाई परिवार है, जिसमें व्यक्ति अपने को सुरक्षित मानता है। हिन्दू-समाज की सबसे बड़ी इकाई उसकी जाति है। वह जाति के नाम पर आज भी संगठित होने का प्रयास करते हैं। सामाजिक हानि-लाभ के लिये बड़ी इकाई जाति है, कोई भी जाति हिन्दू-समाज का उत्तरदायित्व लेने के लिये तैयार नहीं होती परन्तु हिन्दू कहने पर वे लोग अपने को हिन्दू कहते हैं। जाति हिन्दू-समाज की एक इतनी मजबूत ईकाई है कि व्यक्ति यदि दूसरे धर्म को स्वीकार कर लेता है तो भी वह अपनी जाति नहीं छोड़ना चाहता, जो लोग ईसाई या मुसलमान भी हो गये, यदि वे समूह के साथ धर्मान्तरित हुए हैं तो वहाँ भी उनकी जाति, उनके साथ जाती है। जाट हिन्दू भी है, जाट मुसलमान भी है, राजपूत हिन्दू भी है, राजपूत मुसलमान भी है। गूजर हिन्दू भी है, गूजर मुसलमान भी है। इस प्रकार आपको केवल जाति के आधार पर हिन्दू की परिभाषा करना कठिन होगा। ऐसी परिस्थिति में हिन्दू की परिभाषा कठिन है परन्तु हिन्दू का अस्तित्व है तो परिभाषित भी होगा। हिन्दू को परिभाषित करने के हमारे पास दो आधार बड़े और महत्त्वपूर्ण हैं- एक आधार हमारा भूगोल और दूसरा आधार हमारा इतिहास है। हमारा भूगोल तो परिवर्तित होता रहा है, कभी हिन्दुओं का शासन अफगानिस्तान, ईरान तक फैला था तो आज पाकिस्तान कहे जाने वाले भूभाग को आप हिन्दू होने के कारण अपना नहीं कह सकते परन्तु हिन्दू के इतिहास में आप उसे हिन्दू से बाहर नहीं कर सकते। भारत पाकिस्तान के विभाजन का आधार ही हिन्दू और मुसलमान था। फिर हिन्दू की परिभाषा में विभाजन को आधार तो मानना ही पड़ेगा, उस दिन जिसने अपने को हिन्दू कह और भारत का नागरिक बना, उस दिन वह हिन्दू ही था, आज हो सकता है वह हिन्दू न रहा हो। हिन्दू कोई थोड़े समय की अवधारणा नहीं है। हिन्दू शब्द से जिस देश और जाति का इतिहास लिखा गया है, उसे आज आप किसी और के नाम से पढ़ सकते हैं। इस देश में जितने बड़े विशाल भूभाग पर जिसका शासन रहा है और हजारों वर्ष के लबे काल खण्ड में जो विचार पुष्पित पल्लवित हुये। जिन विचारों को यहाँ के लोगों ने अपने जीवन में आदर्श बनाया, उनको जीया है, क्या उन्हें आप हिन्दू इतिहास से बाहर कर सकते हैं? उस परपरा को अपना मानने वाला क्या अपने को हिन्दू नहीं कहेगा। हिन्दू इतिहास के नाम पर जिनका इतिहास लिखा गया, उन्हें हिन्दू ही समझा जायेगा, वे जिनके पूर्वज हैं, वे आज अपने को उस परपरा से पृथक् कर पायेंगे? भारत की पराधीनता के समय को कौन अच्छा कहेगा। यह देश सात सौ वर्ष मुसलमानों के अधीन रहा, जो इस परिस्थिति को दुःख का कारण समझता है, वह हिन्दू है। यदि कोई व्यक्ति इस देश में औरंगजेब के शासन काल पर गर्व करे तो समझा जा सकता है वह हिन्दू नहीं है। इतिहास में शिवाजी, राणाप्रताप, गुरु गोविन्दसिंह जिससे लड़े वे हिन्दू नहीं थे और जिनके लिये लड़े थे वे हिन्दू हैं, क्या इसमें किसी को सन्देह हो सकता है? देश-विदेश के जिन इतिहासकारों ने जिस देश का व जाति का इतिहास लिखा, उन्होंने उसे हिन्दू ही कहा था। यही हिन्दू की पहचान और परिभाषा है। आजकल के विद्वान् जिसको परम प्रमाण मानते हैं, ऐसे मैक्समूलर ने भारत के विषय में इस प्रकार अपने विचार प्रकट किये हैं- ‘‘मानव मस्तिष्क के इतिहास का अध्ययन करते समय हमारे स्वयं के वास्तविक अध्ययन में भारत का स्थान विश्व के अन्य देशों की तुलना में अद्वितीय है। अपने विशेष अध्ययन के लिये मानव मन के किसी भी क्षेत्र का चयन करें, चाहे व भाषा हो, धर्म हो, पौराणिक गाथायें या दर्शनशास्त्र, चाहे विधि या प्रथायें हों, या प्रारभिक कला या विज्ञान हो, प्रत्येक दशा में आपको भारत जाना पड़ेगा, चाहे आप इसे पसन्द करें या नहीं, क्योंकि मानव इतिहास के मूल्यवान् एवं ज्ञानवान् तथ्यों का कोष आपको भारत और केवल भारत में ही मिलेगा।’’ दिसबर 1861 के द कलकत्ता रिव्यू का लेख भी पठनीय है- आज अपमानित तथा अप्रतिष्ठित किये जाने पर भी हमें इसमें कोई सन्देह नहीं है कि एक समय था जब हिन्दू जाति, कला एवं शास्त्रों के क्षेत्र में निष्णात, राज्य व्यवस्था में कल्याणकारी, विधि निर्माण में कुशल एवं उत्कृष्ठ ज्ञान से भरपूर थी। पाश्चात्य लेखक मि. पियरे लोती ने भारत के प्रति अपने विचार इन शदों में प्रकट किये हैं- ‘‘ऐ भारत! अब मैं तुहें आदर समान के साथ प्रणाम करता हूँ। मैं उस प्राचीन भारत को प्रणाम करता हूँ, जिसका मैं विशेषज्ञ हूँ। मैं उस भारत का प्रशंसक हूँ, जिसे कला और दर्शन के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। ईश्वर करे तेरे उद्बोधन से प्रतिदिन ह्रासोन्मुख, पतित एवं क्षीणता को प्राप्त होता हुआ तथा राष्ट्रों, देवताओं एवं आत्माओं का हत्यारा पश्चिम आश्चर्य-चकित हो जाये। वह आज भी तेरे आदिम-कालीन महान् व्यक्तियों के सामने नतमस्तक है।’’ अक्टूबर 1872 के द एडिनबर्ग रिव्यू में लिखा है- हिन्दू एक बहुत प्राचीन राष्ट्र है, जिसके मूल्यवान् अवशेष आज भी उपलध हैं। अन्य कोई भी राष्ट्र आज भी सुरुचि और सयता में इससे बढ़कर नहीं है, यद्यपि यह सुरुचि की पराकाष्ठा पर उस काल में पहुँच चुका था, जब वर्तमान सय कहलाने वाले राष्ट्रों में सयता का उदय भी नहीं हुआ था, जितना अधिक हमारी विस्तृत साहित्यिक खोंजें इस क्षेत्र में प्रविष्ट होती हैं, उतने ही अधिक विस्मयकारी एवं विस्तृत आयाम हमारे समक्ष उपस्थित होते हैं। पाश्चात्य लेखिका श्रीमती मैनिकग ने इस प्रकार लिखा है- ‘‘हिन्दुओं के पास मस्तिष्क का इतना यापक विस्तार था, जितनी किसी भी मानव में कल्पना की जा सकती है।’’ ये पंक्तियाँ ऐसे ही नहीं लिखी गई हैं। इन लेखकों ने भारत की प्रतिभा को अलग-अलग क्षेत्रों में देखा और अनुभव किया। भारतीय विधि और नियमों को मनुस्मृति आदि स्मृति ग्रन्थों में। प्रशासन की योग्यता एवं मानव मनोविज्ञान का कौटिल्य अर्थशास्त्र जैसे प्रौढ़ ग्रन्थों में देखने को मिलता है। यह ज्ञान-विज्ञान हजारों वर्षों से भारत में प्रचलित है। इतिहासकार काउण्ट जोर्न्स्ट जेरना ने भारत राष्ट्र प्राचीनता पर विचार करते हुए लिखा है- ‘‘विश्व का कोई भी राष्ट्र सयता एवं धर्म की प्राचीनता की दृष्टि से भारत का सामना नहीं कर सकता।’’ भारतीय इतिहास में, तुलामान, दूरी का मान, काल मान की विधियों को देखकर विद्वान् उनको देखकर दांतों तले उंगली दबा लेता है। आप सृष्टि की काल गणना से असहमत हो सकते हैं परन्तु भारतीय समाज में पढ़े जाने वाले संकल्प की काल गणना की विधि की वैज्ञानिकता से चकित हुए बिना नहीं रह सकते। महाभारत, रामायण जैसे ऐतिहासिक ग्रन्थ पुराणों की कथाओं के माध्यम से इतिहास की परपरा का होना। हिन्दू समाज के गौरव के साक्षी हैं। मनु के द्वारा स्थापित वर्ण-व्यवस्था और दण्ड-विधान श्रेष्ठता में आज भी सर्वोपरि हैं। संस्कृति की उत्तमता में वैदिक संस्कृति की तुलना नहीं का जा सकती। यहा का प्रभाव संसार के अनेक देशों द्वीप-द्वीपान्तरों में आज भी देखने को मिलता है। यहाँ के दर्शन, विज्ञान, कला, साहित्य, धर्म, इतिहास, समाजशास्त्र ऐसा कौनसा क्षेत्र है, जिस पर हजारों वर्षों का गौरवपूर्ण चिन्तन करना अंकित है। ये विचार जिस देश के हैं, उसे हिन्दू राष्ट्र कहते हैं और इन विचारों को जो अपनी धरोहर समझता है, वही तो हिन्दू है। कोई मनुष्य लंगड़ा, लूला, अन्धा होने पर व्यक्ति नहीं रहता, ऐसा तो नहीं है। नाम भी बदल ले तो दूसरा नाम भी तो उसी व्यक्ति का होगा। वह वैदिक था, आर्य था, पौराणिक हो गया, बाद में हिन्दू बन गया, सारा इतिहास तो उसी व्यक्ति का है। जिसे केवल अपने विचार, कला, कृतित्व पर ही गर्व नहीं, उसे अपने चरित्र पर भी उतना ही गर्व है। तभी तो वह कह सकता है, यह विचार उन्ही हिन्दुओं का है जो इस श्लोक को पढ़ कर गर्व अनुभव करते हैं, यही इसकी परिभाषा है- एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः। स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः।। –

धर्मवीर

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|१९| ऋषि सन्देश |१९| “एक मनुष्यजाति में बहका कर, विरूध्द बुध्दि कराके, एक दूसरे को शत्रु बना,...

|१९| ऋषि सन्देश |१९|

“एक मनुष्यजाति में बहका कर, विरूध्द बुध्दि कराके, एक दूसरे को शत्रु बना, लड़ा मारना विद्वानों के स्वभाव से बहिः (बाहर) है ||”


~०~ स्वामी दयानन्द सरस्वती (सत्यार्थ प्रकाश भूमिका)

आप सभी को वैदिक नववर्ष और आर्यसमाज स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई |

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नव वर्ष की हर्षित बेला पर, खुशियां मिले अपार | यश,कीर्ति, सम्मान मिले, और बढे सत्कार || शुभ-शुभ रहे...

नव वर्ष की हर्षित बेला पर,
खुशियां मिले अपार |
यश,कीर्ति, सम्मान मिले,
और बढे सत्कार ||
शुभ-शुभ रहे हर दिन हर पल,
शुभ-शुभ रहे विचार |
उत्साह. बढे चित चेतन में,
निर्मल रहे आचार ||
सफलतायें नित नयी मिले,
बधाई बारम्बार |
मंगलमय हो काज आपके,
सुखी रहे परिवार ||
“हिन्दू नव वर्ष” विक्रम संवत 2073 हार्दिक शुभकामनाएं"।


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सर्वेषां भारतीयानां कृते वैदिकनववर्षस्य हार्दं शुभाशया: । (संस्कृत) सर्वभारतीयानां वैदिकनववर्षाच्या...

सर्वेषां भारतीयानां कृते वैदिकनववर्षस्य हार्दं शुभाशया: । (संस्कृत)

सर्वभारतीयानां वैदिकनववर्षाच्या हार्दं शुभेच्छा। (मराठी)

सभी भारतवासियों वैदिक नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें। (हिन्दी)


शुभेच्छु:-
आचार्य योगेन्द्र शास्त्री निर्मोही
(वैदिक संस्कृत प्रवक्ता; मुम्बई)
सम्पर्कसूत्र- ९७६९६७७९२७/ ८८९८८६९४३८


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|१८| ऋषि सन्देश |१८| “जो बलवान् होकर निर्बलों की रक्षा करता है वही मनुष्य कहाता है और जो...

|१८| ऋषि सन्देश |१८|

“जो बलवान् होकर निर्बलों की रक्षा करता है वही मनुष्य कहाता है और जो स्वार्थवश होकर परहानि मात्र करता रहता है, वह जानो पशुओं का भी बड़ा भाई है ||”

~०~ स्वामी दयानन्द सरस्वती (सत्यार्थ प्रकाश भूमिका)


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🐚 सुप्रभातम् ! सुदिनमस्तु ! शुभमस्तु ! 🐚 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 🚩आचार्य चाणक्य कहते हैं🚩 ...

🐚 सुप्रभातम् ! सुदिनमस्तु ! शुभमस्तु ! 🐚
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
🚩आचार्य चाणक्य कहते हैं🚩
🔸द्वादशोऽध्यायः🔸
सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया स्वसा।
शान्तिः पत्नी क्षमा पुत्रः षडेते मम बान्धवाः॥१०॥
🔸शब्दार्थ :— कोई योगी अपने परिवार का परिचय देते हुए कहता है — (सत्यम्) सत्य को जानना, सत्य को बोलना और सत्य ही लिखना (माता) मेरी माता है (ज्ञानम्) यथार्थ ज्ञान (पिता) मेरा पिता है, पालक और रक्षक है (धर्मः) धर्म (भ्राता) मेरा भाई है (दया) प्राणिमात्र पर दया करना (स्वसा) मेरी बहन है, (शान्तिः) शान्ति (पत्नी) मेरी पत्नी है (क्षमा) सहनशीलता (पुत्रः) मेरा पुत्र है — (एते) ये (षट्) छह (मम) मेरे (बान्धवाः) बन्धु-बान्धव हैं।
🔸भावार्थ :— उपर्युक्त श्लोक में आचार्य चाणक्य ने मोह-माया से रहित मनुष्य के वास्तविक सहचरों का वर्णन किया है। वे कहते हैं कि सत्य ही एक वैरागी की माता के समान है, ज्ञान उसके पिता के समान , धर्म भाई के समान, दया बहन के समान, शान्ति पत्नी के समान और क्षमा पुत्र के समान होती है। वस्तुत इस नाशवान् संसार में केवल ये ही उसके सच्चे बन्धु-बान्धव हैं। इस प्रकार संसार से विरक्त होने के बाद भी मनुष्य अकेला नहीं होगा।


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•¡✽🌿🌸◆🎄◆🌸🌿✽¡• धर्म से ही व्यक्ति का कल्याण होता है। धर्म ही व्यक्ति का उत्थान करता है। धर्म ही...

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धर्म से ही व्यक्ति का कल्याण होता है। धर्म ही व्यक्ति का उत्थान करता है। धर्म ही धारण करने योग्य है। धर्म के मार्ग से अर्थ -काम प्राप्त हो तो अंत में मोक्ष जरूर प्राप्त होता है।
धर्म का परलोक की चिंता में होना बड़ा खतरनाक हुआ है, इसके दुष्परिणाम सामने हैं। लोग सोचते हैं जीवन अभी के लिए है धर्म कल के लिए। नहीं, धर्म इसी जीवन को विकारमुक्त, विषादमुक्त, भयमुक्त, चिन्तामुक्त, पापमुक्त बनाने के लिए है।
ईश्वर के सामने 15 मिनट पूजा करना ही धर्म नहीं है अपितु सबके साथ सद व्यवहार करना और दूसरों के जीवन में प्रसन्नता का कारण बनना भी धर्म है। धर्म माने, प्रत्येक कर्म को सावधानी पूर्वक करना। इसलिए पूजा मत करो कि मरने के वाद स्वर्ग मिले, इसलिए करो कि जीवन जीते जी स्वर्ग जैसा हो जाए।
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मैंने सुना है, एक गरीब आदमी की झोपड़ी पर…रात जोर की वर्षा हो रही थी। फकीर था; छोटी—सी झोपड़ी थी।...

मैंने सुना है,

एक गरीब आदमी की झोपड़ी पर…रात जोर की वर्षा हो रही थी। फकीर था;

छोटी—सी झोपड़ी थी। स्वयं और उसकी पत्नी, दोनों सोए थे। आधी रात किसी ने द्वार पर दस्तक दी। फकीर ने अपनी पत्नी से कहा:

उठ, द्वार खोल दे। पत्नी द्वार के करीब सो रही थी। पत्नी ने कहा: इस आधी रात में जगह कहां है? कोई अगर शरण मांगेगा तो तुम मना न कर सकोगे।

वर्षा जोर की हो रही है। कोई शरण मांगने के लिए ही द्वार आया होगा। जगह कहां है?

उस फकीर ने कहा: जगह? दो के सोने के लायक काफी है, तीन के बैठने के लायक काफी होगी। तू दरवाजा खोल! लेकिन द्वार आए आदमी को वापिस तो नहीं लौटाना है। दरवाजा खोला। कोई शरण ही मांग रहा था; भटक गया था और वर्षा मूसलाधार थी। तीनों बैठकर गपशप करने लगे। सोने लायक तो जगह न थी।

थोड़ी देर बाद किसी और आदमी ने दस्तक दी। फिर फकीर ने अपनी पत्नी से कहा: खोल। पत्नी ने कहा: अब करोगे क्या, जगह कहां है? अगर किसी ने शरण मांगी? उस फकीर ने कहा: अभी बैठने लायक जगह है, फिर खड़े रहेंगे; मगर दरवाजा खोल। फिर दरवाजा खोला। फिर कोई आ गया। अब वे खड़े होकर बातचीत करने लगे। इतना छोटा झोपड़ा!

और तब अंततः एक गधे ने आकर जोर से आवाज की, दरवाजे को हिलाया। फकीर ने कहा: दरवाजा खोलो। पत्नी ने कहा: अब तुम पागल हुए हो, यह गधा है, आदमी भी नहीं! फकीर ने कहा:

हमने आदमियों के कारण दरवाजा नहीं खोला था, अपने हृदय के कारण खोला था। हमें गधे और आदमी में क्या फर्क? हमने मेहमानों के लिए दरवाजा खोला था। उसने भी आवाज दी है। उसने भी द्वार हिलाया है। उसने अपना काम पूरा कर दिया,

अब हमें अपना काम पूरा करना है। दरवाजा खोलो! उसकी औरत ने कहा: अब तो खड़े होने की भी जगह नहीं है! उसने कहा: अभी हम जरा आराम से खड़े हैं, फिर सटकर खड़े होंगे। और याद रख एक बात कि यह कोई अमीर का महल नहीं है कि जिसमें जगह की कमी हो! यह गरीब का झोपड़ा है, इसमें खूब जगह है!

यह कहानी मैंने पढ़ी, तो मैं हैरान हुआ। उसने कहा: यह कोई अमीर का महल नहीं है जिसमें जगह न हो। यह गरीब का झोपड़ा है, इसमें खूब जगह है। जगह महलों में और झोपड़ों में नहीं होती, जगह हृदयों में होती है। अक्सर तुम पाओगे, गरीब कंजूस नहीं होता।
कंजूस होने योग्य उसके पास कुछ है ही नहीं।

पकड़े तो पकड़े क्या? जैसे—जैसे आदमी अमीर होता है, वैसे कंजूस होने लगता है; क्योंकि जैसे—जैसे पकड़ने को होता है, वैसे—वैसे पकड़ने का मोह बढ़ता है, लोभ बढ़ता है। निन्यानबे का चक्कर पैदा हो जाता है। जिसके पास निन्यानबे रुपए हैं,

उसका मन होता है कि किसी तरह सौ हो जाएं। तुम उससे एक रुपया मांगो, वह न दे सकेगा, क्योंकि एक गया तो अट्ठानबे हो जाएंगे। अभी सौ की आशा बांध रहा था, अब हुए पूरे,

अब हुए पूरे। नहीं दे पाएगा। लेकिन जिसके पास एक ही रुपया है, वह दे सकता है। क्योंकि सौ तो कभी होने नहीं हैं। यह चला ही जाएगा रुपया।


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💥👌"अजमेर शरीफ"के,“दरगाह” की सच्चाई:———(“BHED...

💥👌"अजमेर शरीफ"के,“दरगाह” की सच्चाई:———(“BHED CHAL” SE BACHO. …..JAGO…MURKHO,JAGO…)🙏🙏🙏🙏

💥"अजमेर रेलवे स्टेशन"के प्लेटफार्म पर,इतनी"भीड़"थी,कि वहाँ की कोई"बैंच"खाली नहीं थी।!!
💥एक बैंच पर,एक परिवार,“जो पहनावे"से,"हिन्दू"लग रहा था !!!के साथ,"बुर्के"में,एक "अधेड़ सुसभ्य महिला"बैठी थी।!!!

💥बहुत देर,"चुपचाप” बैठने के बाद, “बुर्खे"में बैठी,"महिला"ने,बगल में बैठे, "युवक"से पूछा :—–
💥 "अजमेर"के रहनेवाले हैँ ????या फिर,यहाँ "घूमने"आये हैं?”????

👌युवक ने बताया :—-“जी,अपने "माता पिता"के साथ,"पुष्कर"में,"ब्रह्मा जी के मंदिर"के दर्शन,करने आया था।”!!!!🙏🙏

😝महिला ने,“बुरा मुँह"बनाते हुए, फिर पूछा :——
"आप लोग,"अजमेर शरीफ” की “दरगाह” पर नहीं गये?“????😂

💥युवक ने,उस महिला से;"प्रतिउत्तर"कर दिया :—–
👌 "क्या आप,"ब्रह्मा जी के मंदिर” गयी थीं?“????

😝महिला,अपने"मुँह"को,और बुरा बनाते हुये बोली ;—-’
😝"लाहौल विला कुव्वत”!!!!!। “इस्लाम"में,"बुतपरस्ती हराम” है !!!!और आप,पूछ रहे हैं,कि"ब्रह्मा के मंदिर" में गयी थी।"?????😥

😤युवक,“झल्लाकर"बोला :—–
💥"जब,आप "ब्रह्मा जी के मंदिर "में जाना,” हराम"मानती हैं !!!!
😥 तो,हम क्यों"अजमेर शरीफ"की “दरगाह"पर जाकर,"अपना माथा फोड़ें।”?????😂😂

💥😂महिला,युवक की माँ से,“ शिकायती लहजे"में, बोली :—-

😥 "देखिये,"बहन जी’?? आपका लड़का तो,बड़ा"बदतमीज” है।!!! 😥ऐसी,“मजहबी कट्टरता"की वजह से ही तो,हमारी"कौमी एकता"में,"फूट” पड़ती है।"?????😂😂

💥युवक की माँ,मुस्काते हुये बोली :—-
👌 “ठीक कहा,"बहन जी” ????“कौमी एकता"का ठेका तो, हम"हिन्दुओं"ने ही,ले रखा है।!!!!?

👌अगर,"हर हिँदू माँ-बाप”,अपने “बच्चों"को बताए कि,"अजमेर दरगाह"वाले,"ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती"ने,किस तरह,"इस्लाम"कबूल ना करने पर,"पृथ्वीराज चौहान"की पत्नी,"संयोगिता"को,"मुस्लिम सैनिकों"के बीच,"बलात्कार"करने के लिए,"निर्वस्त्र"करके,"फेँक” दिया था!!!
😂 और फिर,किस तरह,“पृथ्वीराज चौहान"की,"वीर पुत्रियों"ने,"आत्मघाती"बनकर, "मोइनुद्दीन चिश्ती"को,"72 हूरों"के पास,भेजा था :—— ?????
😂तो,"शायद ही”,कोई"हिँदू"उस “मुल्ले"की"कब्र"पर,"माथा पटकने” जाए।!!!!😂😂😂

🇮🇳"पृथ्वीराज चौहान" ne,गोरी को, “१७ बार”,युद्ध"में हराने के बाद भी, उसे छोड़ देता है !!!!
😂जबकि,“एक बार"उस से,"हारने” पर,“चौहान"की,"आँख फोड़"के, "बेरहमी से मार कर”,उसके “शव "को, "घसीटते” हुए,“अफ़ग़ानिस्तान"ले गया !!!और "दफ़्न"किया।!!😂😂

💥आज भी,"चौहान"की,"क़ब्र"पर जो भी,"मुसलमान'वहॉ जाता है, "प्रचलन"के अनुसार,उनकी"क़ब्र"को, वहॉ पे रखे,"जूते से मारता"है।!! ऐसी "बर्बरता"कहीं नहीं देखी होगी।!!! 😂😂"फिर भी,"हम” हैं कि …….😂😂

💥"अजमेर के ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती"को,“९० लाख हिंदुओं"को, "EK SATH"इस्लाम"में,लाने का, "गौरव"प्राप्त है !!!
💥"मोइनुद्दीन चिश्ती"ने ही,"मोहम्मद गोरी"को,"भारत लूटने"के लिए, "उकसाया और आमंत्रित"किया था….😂

💥(सन्दर्भ - उर्दू अखबार
"पाक एक्सप्रेस, न्यूयार्क १४ मई २०१२).💥

💥अधिकांश,"हिन्दू” तो,“शेयर"भी,नहीं करेंगे,,दुख है,ऐसे "हिन्दुओं"पर. …. 😂😂🙏🙏🙏


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“सम्वत 2073- 08 अप्रैल, 2016 से शुरू” 5 मिनट अपनी सस्कृति की झलक को पढ़े- ■ 1 जनवरी को...

“सम्वत 2073- 08 अप्रैल, 2016 से शुरू”

5 मिनट अपनी सस्कृति की झलक को पढ़े-

■ 1 जनवरी को क्या नया हो रहा है ?

◆ न ऋतु बदली.. न मौसम
◆ न कक्षा बदली… न सत्र
◆ न फसल बदली…न खेती
◆ न पेड़ पोधों की रंगत
◆ न सूर्य चाँद सितारों की दिशा
◆ ना ही नक्षत्र।।

■ 1 जनवरी आने से पहले ही सब नववर्ष की बधाई देने लगते हैं। मानो कितना बड़ा पर्व है।

■ नया केवल एक दिन ही नही होता..
कुछ दिन तो नई अनुभूति होंनी ही चाहिए। आखिर हमारा देश त्योहारों का देश है।

■ ईस्वी संवत का नया साल 1 जनवरी को और भारतीय नववर्ष (विक्रमी संवत) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। आईये देखते हैं दोनों का तुलनात्मक अंतर:

1. प्रकृति-
1 जनवरी को कोई अंतर नही जैसा दिसम्बर वैसी जनवरी.. चैत्र मास में चारो तरफ फूल खिल जाते हैं, पेड़ो पर नए पत्ते आ जाते हैं। चारो तरफ हरियाली मानो प्रकृति नया साल मना रही हो I

2. वस्त्र-
दिसम्बर और जनवरी में वही वस्त्र, कंबल, रजाई, ठिठुरते हाथ पैर..
चैत्र मास में सर्दी जा रही होती है, गर्मी का आगमन होने जा रहा होता है I

3. विद्यालयो का नया सत्र- दिसंबर जनवरी वही कक्षा कुछ नया नहीं..
जबकि मार्च अप्रैल में स्कूलो का रिजल्ट आता है नई कक्षा नया सत्र यानि विद्यालयों में नया साल I

4. नया वित्तीय वर्ष-
दिसम्बर-जनबरी में कोई खातो की क्लोजिंग नही होती.. जबकि 31 मार्च को बैंको की (audit) कलोसिंग होती है नए वही खाते खोले जाते है I सरकार का भी नया सत्र शुरू होता है I

5. कलैण्डर-
जनवरी में नया कलैण्डर आता है..
चैत्र में नया पंचांग आता है I उसी से सभी भारतीय पर्व, विवाह और अन्य महूर्त देखे जाते हैं I इसके बिना हिन्दू समाज जीबन की कल्पना भी नही कर सकता इतना महत्वपूर्ण है ये कैलेंडर यानि पंचांग I

6. किसानो का नया साल- दिसंबर-जनवरी में खेतो में वही फसल होती है..
जबकि मार्च-अप्रैल में फसल कटती है नया अनाज घर में आता है तो किसानो का नया वर्ष और उतसाह I

7. पर्व मनाने की विधि-
31 दिसम्बर की रात नए साल के स्वागत के लिए लोग जमकर मदिरा पान करते है, हंगामा करते है, रात को पीकर गाड़ी चलने से दुर्घटना की सम्भावना, विभिन्न वारदात, पुलिस प्रशासन बेहाल और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश..
जबकि भारतीय नववर्ष व्रत से शुरू होता है पहला नवरात्र होता है घर घर मे माता रानी की पूजा होती है I शुद्ध सात्विक वातावरण बनता है I

8. ऐतिहासिक महत्त्व- 1 जनवरी का कोई ऐतेहासिक महत्व नही है..
जबकि चैत्र प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् की शुरुआत, भगवान झूलेलाल का जन्म, नवरात्रे प्रारंम्भ, ब्रहम्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना इत्यादि का संबंध इस दिन से है I

■ अंग्रेजी कलेंडर की तारीख और अंग्रेज मानसिकता के लोगो के अलावा कुछ नही बदला..
अपना नव संवत् ही नया साल है I

■ जब ब्रह्माण्ड से लेकर सूर्य चाँद की दिशा, मौसम, फसल, कक्षा, नक्षत्र, पौधों की नई पत्तिया, किसान की नई फसल, विद्यार्थी की नई कक्षा, मनुष्य में नया रक्त संचरण आदि परिवर्तन होते है। जो विज्ञान आधारित है I

■ अपनी मानसिकता को बदले I विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना को पहचाने। स्वयं सोचे की क्यों मनाये हम 1 जनवरी को नया वर्ष..?

“केबल कैलेंडर बदलें.. अपनी संस्कृति नहीं”

■ आओ जागेँ जगायेँ, भारतीय संस्कृति अपनायेँ और आगे बढ़े I

■ हम 8 अप्रैल 2016 को हिन्दू नववर्ष मना रहे है। आप भी मनाए और को भी बताए I 🙏

☆ 2073 चैत मास ☆

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“भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायेँ”
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📜अपने भारत की संस्कृति को पहचानें। ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचायें। खासकर अपने बच्चों को बताए...

📜अपने भारत की संस्कृति को पहचानें। ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचायें। खासकर अपने बच्चों को बताए क्योंकि ये बात उन्हें कोई दुसरा व्यक्ति नहीं बताएगा…
📜😇 दो पक्ष- कृष्ण पक्ष , शुक्ल पक्ष !
📜😇 तीन ऋण - देव ऋण , पितृ ऋण , ऋषि ऋण !
📜😇 चार युग - सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग , कलियुग !
📜😇 चार धाम - द्वारिका , बद्रीनाथ , जगन्नाथ पुरी , रामेश्वरम धाम !
📜😇 चारपीठ - शारदा पीठ ( द्वारिका ) ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम ) गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) , शृंगेरीपीठ !
📜😇 चार वेद- ऋग्वेद , अथर्वेद , यजुर्वेद , सामवेद !
📜😇 चार आश्रम - ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ , संन्यास !
📜😇 चार अंतःकरण - मन , बुद्धि , चित्त , अहंकार !
📜😇 पञ्च गव्य - गाय का घी , दूध , दही , गोमूत्र , गोबर !
📜😇 पञ्च देव - गणेश , विष्णु , शिव , देवी , सूर्य !
📜😇 पंच तत्त्व - पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु , आकाश !
📜😇 छह दर्शन - वैशेषिक , न्याय , सांख्य , योग , पूर्व मिसांसा , दक्षिण मिसांसा !
📜😇 सप्त ऋषि - विश्वामित्र , जमदाग्नि , भरद्वाज , गौतम , अत्री , वशिष्ठ और कश्यप!
📜😇 सप्त पुरी - अयोध्या पुरी , मथुरा पुरी , माया पुरी ( हरिद्वार ) , काशी , कांची ( शिन कांची - विष्णु कांची ) , अवंतिका और द्वारिका पुरी !
📜😊 आठ योग - यम , नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान एवं समािध !
📜😇 आठ लक्ष्मी - आग्घ , विद्या , सौभाग्य , अमृत , काम , सत्य , भोग ,एवं योग लक्ष्मी !
📜😇 नव दुर्गा – शैल पुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायिनी , कालरात्रि , महागौरी एवं सिद्धिदात्री !
📜😇 दस दिशाएं - पूर्व , पश्चिम , उत्तर , दक्षिण , ईशान , नैऋत्य , वायव्य , अग्नि आकाश एवं पाताल !
📜😇 मुख्य ११ अवतार - मत्स्य , कच्छप , वराह , नरसिंह , वामन , परशुराम , श्री राम , कृष्ण , बलराम , बुद्ध , एवं कल्कि !
📜😇 बारह मास - चैत्र , वैशाख , ज्येष्ठ , अषाढ , श्रावण , भाद्रपद , अश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष , पौष , माघ , फागुन !
📜😇 बारह राशी - मेष , वृषभ , मिथुन , कर्क , सिंह , कन्या , तुला , वृश्चिक , धनु , मकर , कुंभ , कन्या !
📜😇 बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ , मल्लिकार्जुन , महाकाल , ओमकारेश्वर , बैजनाथ , रामेश्वरम , विश्वनाथ , त्र्यंबकेश्वर , केदारनाथ , घुष्नेश्वर , भीमाशंकर , नागेश्वर !
📜😇 पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा , द्वितीय , तृतीय , चतुर्थी , पंचमी , षष्ठी , सप्तमी , अष्टमी , नवमी , दशमी , एकादशी , द्वादशी , त्रयोदशी , चतुर्दशी , पूर्णिमा , अमावास्या !
📜😇 स्मृतियां - मनु , विष्णु , अत्री , हारीत , याज्ञवल्क्य , उशना , अंगीरा , यम , आपस्तम्ब , सर्वत , कात्यायन , ब्रहस्पति , पराशर , व्यास , शांख्य , लिखित , दक्ष , शातातप , वशिष्ठ ! ********************** इस पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें जिससे सबको हमारी संस्कृति का ज्ञान हो।
सुप्रभात


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आओ मिलकर हम सब वैदिक धर्म बचाएं । दयानन्द के सपनों सा भारत राष्ट्र बनाएं।। अंधकार से भरे सम्पूर्ण...

आओ मिलकर हम सब वैदिक धर्म बचाएं ।
दयानन्द के सपनों सा भारत राष्ट्र बनाएं।।
अंधकार से भरे सम्पूर्ण जगत को उठाएं।
वैदिक धर्म के ज्ञान की ज्योति जलाएं।।
कुरीतियों के भ्रम जाल को समूल मिटाएं।
जिनमे जलाईं न जाने कितनी अबलाएं।।
आओ मिलकर हम सब वैदिक धर्म बचाएं।
दयानन्द के सपनो सा भारत राष्ट्र बनाएं।।
शिक्षा का सबको पूर्ण अधिकार दिलाएं।
अधर्म की सम्पूर्ण जड़ों को जग से मिट्वाएं।।
जिस कारण पाखंडों ने जग मैं पैर जमाए।
यज्ञ हवन की शुद्ध सुगंधी सब दिश फैलाएं।।
आओ मिलकर हम सब वैदिक धर्म बचाएं।
दयानन्द के सपनो सा भारत राष्ट्र बनाएं।।
आर्यव्रत के अरिदलों को दयानंदी हुंकार सुनाएं।
आओ मिलकर हम सब आर्य व्रत राष्ट्र बनाएं।।
गुरुकुलीय परम्परा को घर घर में पहुचाएं।
आश्रम व्यवस्था पुनः जीवन में अपनाएं।।
आओ मिलकर हम सब वैदिक धर्म बचाएं।
दयानंद के सपनों सा भारत राष्ट्र बनाएं।।
==========।।ओउम्।।=========


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Tuesday, April 5, 2016

8 अप्रैल 2016 को अधिकतर लोग नव सम्वत्सर 2073…बता रहे हैं लेकिन इससे पुरानी तिथि कोई नहीं बता...

8 अप्रैल 2016 को अधिकतर लोग नव सम्वत्सर 2073…बता रहे हैं
लेकिन इससे पुरानी तिथि कोई नहीं बता रहा
क्या 2073 वर्ष पहले कुछ नहीं था ???
.
अरे भाई !!!! पूरी संख्या लिखने में हाथ दर्द करता है क्या ?
.
पूरी संख्या लिखें
सृष्टि संवत : 1,97,29,49,118 वर्ष
कलि संवत : 5118
वैक्रमाब्द :2073
शकाब्द :1938
.
1,97,29,49,117 वर्ष पुरानी संस्कृति है हमारी
यह सृष्टि संवत है
2073 वर्ष पहले तो हिन्दू-धरम भी नहीं था
केवल और केवल वैदिक सत्य सनातन धर्म ही इस सम्पूर्ण धरती पर था
इसलिए 8 अप्रैल 2016 हिन्दू वर्ष बता कर इस दिवस का अपमान/अवमूल्यन न करें
और गर्व से कहें 1,97,29,49,117 वर्ष पुराने वैदिक धर्म की जय
.
जहाँ तक भगवा ध्वज की बात है तो अपने भवन, घर/मकान, दूकान पर अवश्य लगायें
ये भगवा अग्नि का प्रतीक है क्यों की हमारे पूर्वज अग्नि के उपासक थे, अग्नि ही अग्रणी है |


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शिवलिंग की पूजा को महिमामंडित करने के लिये जो किस्से कहानियां पुराणों में लिखी हैं वे कोरी कल्पनाऐं...

शिवलिंग की पूजा को महिमामंडित करने के लिये जो किस्से कहानियां पुराणों में लिखी हैं वे कोरी कल्पनाऐं हैं | समाज को मूर्तिपूजा ,पाषाण पूजा, प्रतीक पूजा आदि के गर्त में धकेलने वाली हैं | जो मूर्तियां अपनी रक्षा नहीं कर सकती वे अपने भक्तों की क्या रक्षा करेंगी ! आठ सौ साल की गुलामी के दौरान लाखों मूर्तियां मुगलों ने तोडी परन्तु कोई देवी देवता न अपनी रक्षा कर पाया और न अपने भक्तों का | आज भी जनता की गाढी कमाई का करोडों अरबों रुपया मूर्तियों की रक्षा करने में सरकार खर्च करती है …. अन्धभक्तों से वोट जो लेने हैं ! परमात्मा की पूजा का एकमात्र उपाय है..प्रतिदिन यज्ञ करना,योग करना और वेदों में वर्णित उसकी किसी आज्ञा का उलंघन न करना |


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🍀 लकवा ( पेरालीसीस ) का ईलाज 🍀 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 👉 वायु के कुल 80 प्रकार के रोगो मे से लकवा १ है. 👉 जब...

🍀 लकवा ( पेरालीसीस ) का ईलाज 🍀
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👉 वायु के कुल 80 प्रकार के रोगो मे से लकवा १ है.

👉 जब वायु प्रकोपित होता है तो 80 प्रकार के रोगो को जन्म देता है.

👉 जीसमे गठिया , आमवात , शरिर सुन्न हो जाना , पेरालीसीस मुख्य रोग है वायु से होने वाले.

👉 आज आपको बता रहे हे पेरालीसीस का ईलाज तो आप यह ईलाज अपनी डायरि मे लीख लिजीये.

🍀 कलौंजी से ईलाज 🍀
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🍀 लकवा ग्रस्त व्यकित के लिऐ कलौंजी का तैल अक्सिर है. तो आप बाजार से कलौंजी का तैल लेकर आये १०० ग्राम कलौंजी तैल + १०० ग्राम महानारायण तैल को मीक्स करके लकवा ग्रस्त भाग पर गुनगुना करके दिन मे ३-४ बार मालीश करे .


🍀 कलौंजी का तैल की १-१ बूंद नाकमे डाले. रोज सुबह शाम आैर 5 मिनीट तक लेटे रहे.


🍀 सौंठ जल से ईलाज 🍀
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🍀 सौंठ का चूरन २ चमच + २ लिटर पानी मे मीक्स करक 5 मिनट तक उबाले. जब ठंडा हो जाये तब ईसमे २ चमच शहद मीलाकर बोटल मे रखदे. आैर जब भी प्याज लगे तब ईसी पानीको हि पीऐ.


🍀 गालीँक ( लहसुन ) से ईलाज 🍀
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गालीँक 50 GMs + तिल का तैल 200 GMs मीक्स करके पकाऐ आैर रोज सुबह शाम १-१ चमच पीऐ.


🍀 अलसी( फ्लेक्स सीड) से ईलाज 🍀
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👉 अलसी भी पेरालीसीस का रामबाण ईलाज है लकवा होने पर अलसी के तैल ३-३ ग्राम( आधा चमच ) सुबह शाम खाना चाहिये.

👉 अथवा वेस्टिज कंपनी की फ्लेक्स केप्सुल सुबह शाम १-१ ले सकते है

🍀 हरड + सौंठ + अजवाईन का चूरन 🍀
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👉 पेट को साफ रखना बहोत हि जरुरी है ईसके लिऐ आप अजवाइन 25 ग्राम + सौंठ 25 ग्राम + चालीसा हरड 150 ग्राम लेकर मीक्स करके चूरन बनाऐ ऐवं रोज रात को १ चमच गुनगुने पानी के साथ ले.


🍀 आैषध से ईलाज 🍀
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🍀 सपँगंधा 50 ग्राम + अश्वगंधा 50 ग्राम + मालकांगनी बीज 20 + ञिफला 50 + चोपचीनी 50 ग्राम मीक्स करके सुबह शाम १-१ चमच ले.


🍀 शुद्ध कुचला को आधा ग्राम सुबह शाम ले. ध्यान रखे कि यह शुद्ध ही हो. उपर से १ चमच गायका धी पीऐ.


🍀 आयुवैदिक तैयार आैषधि 🍀
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🍀 योगेन्द सिंह रस 🍀
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👉 सुबह शाम १-१ गोली खाने के बाद गुनगुने पानी के साथ ले.

🍀 ऐकांतविर रस 🍀
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👉 ऐकांतविर रस की गोली दोनो समय १-१ गोली खाने के बाद गुनगुने पानी के साथ ले.

🍀 ब्रुहतवात: चिंतामणी रस 🍀
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👉 ईस गोली को सुबह शाम १-१ गोली ले गुनगुने पानी के साथ.

🍀 खाने पीने मे परहैज 🍀
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🍀 कंया ना खाऐ 🍀
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👉 आलु , टमाटर , भैंस का दूध , धी , दहि , छाश , बाहर का खाना , बैकरि की चीजे. जंकफूड , फास्टफूड , मेंदे से बनी चीजे, चाय , कोफि वगैरा बीलकुल बंद करे.


🍀 कंया खाऐ 🍀
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👉 पालक की सब्जी , बीट , गाजर , बैंगन , परवल , बकरि का दूध , गायका दूध , पुरानी जौ , करेला , हल्दि , फ्रुट्स , ऐवं सुपाच्य खाना खाऐ.


🍀 अगर आप पेरालीसीस से परेशान है तो हमसे ईलाज भी कुरियर द्वारा मंगवा सकते है.


संजीवनी हैल्थ कैर , भावनगर , गुजरात , समय 5 to 8

डॉ प्रयाग डाभी
मो.9033744381

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀


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🙏🏽🙏🏽🙏🏽 हर हर महादेव 🙏🏽🙏🏽🙏🏽 3 अप्रैल 2016 कानपूर ...

🙏🏽🙏🏽🙏🏽 हर हर महादेव 🙏🏽🙏🏽🙏🏽 3 अप्रैल 2016 कानपूर
प्रेस विज्ञप्ति
हिन्दुओ की घटती जनसँख्या से संत समाज चिंतित - यति बाबा नरसिंहानंद सरस्वती(राष्ट्रीय संयोजक,अखिल भारतीय संत परिषद)
दारा सिंह को भुला देना हिन्दू समाज की आपराधिक भूल -श्री बी एस त्रिपाठी(भारतीय लोकतान्त्रिक हिन्दू विकास एसोसिएशन)
न्यायिक आतंकवाद की शिकार हुए हैं साध्वी प्रज्ञा और कमलेश तिवारी जैसे हिन्दू कार्यकर्ता - राहुल पण्डे(प्रज्ञा मुक्ति मुहिम)
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हिन्दू हितो की रक्षा के लिये महाकुम्भ में 15 और 16 मई को आयोजित होगी चौथी हिन्दू संसद जिसमे सभी वरिष्ठ सन्त और 100 से अधिक हिन्दू संगठन के कार्यकर्ता भाग लेगे।

हिन्दू स्वाभिमान के तत्वावधान में श्रीदुधेश्वर नाथ मठ के शिविर में होने वाले इस महत्वपूर्ण आयोजन की अध्यक्षता करेंगे स्वामी नारायण गिरी जी महाराज होने
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अखिल भारतीय संत परिषद के राष्ट्रीय संयोजक व हिन्दू संसद के प्रणेता यति बाबा नरसिंहानंद सरस्वती जी महाराज,भारतीय लोकतान्त्रिक हिन्दू विकास एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी एस त्रिपाठी और साध्वी प्रज्ञा मुक्ति मुहीम संयोजक राहुल पाण्डे ने कानपूर जेल चौराहा स्थित राम जानकी मन्दिर में आज एक प्रेस वार्ता को सम्बोधित किया जिसमे उन्होंने उज्जैन महाकुम्भ में होने वाली चौथी हिन्दू संसद के विषय में जानकारी देते हुये हिन्दुओ की घटती हुयी जनसंख्या को संत समाज की सबसे बड़ी चिंता बताया।
प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुये यति बाबा नरसिंहानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा की आज पूरा विश्व बहुत विकट परिस्थितियों में हैं।आतंकवाद के नाम पर चल रहे इस्लामिक जिहाद ने पूरी दुनिया को विनाश की ओर धकेल दिया है।हमारे लिये सबसे दुखद ये है की जबकि सारा विश्व इस समस्या का निदान खोज रहा है तब हम हिन्दूओ के नेता तरह तरह से मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे हुये हैं।आज वोट बैंक की राजनीति हिन्दुओ की लाशो पर अपनी रोटी सेक रही है।जातिवाद और क्षेत्रवाद में बटा हुआ हिन्दू अपने लिये न्याय भी नहीं मांग पा रहा हैं।ऐसे में संत समाज आज साधना छोड़कर संघर्ष के लिये मजबूर होता जा रहा है।
उन्होंने हिन्दुओ की घटती हुई जनसँख्या को सारी समस्याओ का जिम्मेदार बताते हुये कहा की आज हिन्दुओ के समक्ष इस देश में अल्पसंख्यक होने का खतरा उतपन्न होता जा रहा है।यदि हिन्दू इस देश में अल्पसंख्यक हो गया तो यहाँ भी हिन्दुओ की वो ही दुर्गति होगी जो पाकिस्तान,बांग्लादेश और कश्मीर में हुयी।
उन्होंने सम्पूर्ण राजनीति को चेतावनी देते हुये कहा की नेताओ को याद रखना चाहिये की ये देश तभी तक लोकतान्त्रिक है जब तक हिन्दू बाहुल्य में है।जिस दिन ये देश हिन्दू बाहुल्य नहीं रहेगा उस दिन ये देश लोकतान्त्रिक भी नहीं रहेगा।इसलिये संत समाज हिन्दू संसद के माध्यम से हिन्दू समाज से जनसँख्या बढ़ाने का और अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने का खुला आह्वान करेगा।जो हिन्दू आर्थिक कारणों से कम बच्चे पैदा करते हैं, उनके लिए गुरुकुल बनाने की योजना भी हिन्दू संसद में बनाई जायेगी ताकी उनके बच्चों का उचित पालन पोषण और शिक्षा दीक्षा हो सके।
श्री बी एस त्रिपाठी जी ने प्रेस वार्ता में कहा की उड़ीसा में हिन्दू हित के लिये संघर्ष करने वाले दारा सिंह को भूलना हिन्दू समाज की अपराधिक भूल है जिसका प्रायश्चित हम सबको करना चाहिये।दारा सिंह ने अपनी सजा को पूरा कर लिया है परन्तु उन्हें केवल विधर्मियो की नाराजगी के डर से रिहा नहीं किया जा रहा है।ऐसे में अब हिन्दू समाज को आगे आकर उनके लिये संघर्ष करना चाहिये।
प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुये प्रज्ञा मुक्ति मुहीम के संयोजक राहुल पाण्डे ने कहा की भारतीय लोकतन्त्र को नेताओ ने धर्म निरपेक्षता के नाम पर बर्बाद करके रख दिया है।एक विदेशी महिला के इशारे पर चलने वाली
कांग्रेस नीत गठबंधन सरकार ने भगवा आतंकवाद शब्द गढ़ने के लिये बिलकुल गैर संवैधानिक तरीके से निर्दोष साध्वी प्रज्ञा और उनके साथियो को जेल में डाला और अब केवल हिन्दुओ की ताकत पर बनी मोदी सरकार उन्हें इसलिये नहीं छोड़ रही है की कहीं मुसलमान नाराज न हो जाए।इसके लिये जिस तरह से संविधान को कुचला गया है,ये एक सभ्य लोकतन्त्र के लिये शर्मनाक है।
उन्होंने बताया की जिस तरह भूमापीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ जी महाराज ने अर्धकुंभ में धर्म संसद आयोजित करके साध्वी प्रज्ञा के मुद्दे को पुरे संत समाज में उठा दिया था,उसी प्रकार अब कुम्भ में भी ये मुद्दा सन्यासियों के बीच सबसे प्रमुख मुद्दा होगा और संत समाज 14 और 15 मई 2016 को कुम्भ में चौथी हिन्दू हितो की रक्षा के लिये हिन्दू संसद का आयोजन करेगा जिसमे साध्वी प्रज्ञा और निर्दोष हिन्दू कार्यकर्ताओ की रिहाई सबसे प्रमुख मुद्दा बनेगी।भूमापीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ जी महाराज के मार्गदर्शन और जूना अखाडा के अंतर्राष्ट्रीय मंत्री दूधेश्वरनाथपीठाधीश्वर स्वामी नारायण गिरी महाराज की अध्यक्षता में आयोजित होने वाले इस आयोजन में देश के सभी वरिष्ठ संत और 100 से अधिक संगठनो के प्रतिनिधियों के भाग लेने की सम्भावना है।
हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय नेता पण्डित नीरज भरद्वाज ने कहा की हिन्दू संसद एक सम्पूर्ण अराजनैतिक आयोजन है जो लाभ हानि की चिंता छोड़कर हिन्दू के अस्तित्व को बचाने के लिये चिंतन करेगा।ये बहुत दुखद है की आज पूरी दुनिया को शरण और सहारा देने वाला हिन्दू समाज खुद को अनाथ जैसा महसूस कर रहा है। जिस तरह से देश में हिन्दुओ की जनसंख्या का अनुपात घट रहा है वो न केवल भारतवर्ष बल्कि पुरे विश्व के लिये एक अशुभ संकेत है।हिन्दू संसद का मुख्य मुद्दा जनसंख्या नियंत्रण कानून और इस्लामिक जिहादी आतंकवाद के दमन के लिये रणनीति तय करना रहेगा।
उन्होंने कहा की जिस तरह से आई एस आई एस ने भारत में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है,ये बहुत ही चिंताजनक बात है।आज हमारे सामने रामजन्मभूमि से बड़ा मुद्दा इस्लामिक जिहाद से हिन्दू के अस्तित्व की रक्षा है।इस बार कुम्भ में इस मुद्दे पर भी गहन चिंतन होगा की यदि भारत में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया तो बचेगा कैसे?जिस तरह से सभी राजनैतिक दल मुस्लिम वोट बैंक के लालच में हिन्दू हितो पर कुठाराघात कर रही हैं इससे संत समाज बहुत चिंतित और खिन्न है।संत समाज हिन्दू संसद के माध्यम से अपनी चिंताओं पर खुल कर मन्थन करेगा।


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स्वामी



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🌷🌷ओ३म्🌷🌷 🌷विश्वशान्ति केवल वेद द्वारा सम्भव🌷 आइये वेद के कुछ मन्त्रों का अवलोकन करें,कैसी दिव्य...

🌷🌷ओ३म्🌷🌷

🌷विश्वशान्ति केवल वेद द्वारा सम्भव🌷

आइये वेद के कुछ मन्त्रों का अवलोकन करें,कैसी दिव्य भावनाएं हैं:-

अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय ।-(ऋग्वेद ५/६०/५)

अर्थ:-ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा।तुम सब भाई-भाई हो।सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो।

ईश्वर इस मन्त्र में मनुष्य-मात्र की समानता का उपदेश दे रहे हैं।इसके साथ साम्यवाद का भी स्थापन कर रहे हैं।

अथर्ववेद के तीसरे काण्ड़ के तीसवें सूक्त में तो विश्व में शान्ति स्थापना के लिए जो उपदेश दिये गये हैं वे अद्भूत हैं।इन उपदेशों जऐसे उपदेश विश्व के अन्य धार्मिक साहित्य में ढूँढने से भी नहीं मिलेंगे।

वेद उपदेश देता है-
सह्रदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि वः ।
अन्यो अन्यमभि हर्यत वत्सं जातमिवाघ्न्या ।।-(अथर्व० ३/३०/१)

अर्थ:-मैं तुम्हारे लिए एकह्रदयता,एकमनता और निर्वेरता करता हूं।एक-दूसरे को तुम सब और से प्रीति से चाहो,जैसे न मारने योग्य गौ उत्पन्न हुए बछड़े को प्यार करती है।

वेद हार्दिक एकता का उपदेश देता है।

वेद आगे कहता है-
ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो मा वि यौष्ट संराधयन्तः सधुराश्चरन्तः ।
अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्वः संमनसस्कृणोमि ।।-(अथर्व० ३/३०/५)

अर्थ:-बड़ों का मान रखने वाले,उत्तम चित्त वाले,समृद्धि करते हुए और एक धुरा होकर चलते हुए तुम लोग अलग-अलग न होओ,और एक-दूसरे से मनोहर बोलते हुए आओ।तुमको साथ-२ गति वाले और एक मन वाले मैं करता हूं।

इस मन्त्र में भी एक-दूसरे से लड़ने का निषेध किया गया है और मिलकर चलने की बात की गई है।

और देखिये-
सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।
देवां भागं यथापूर्वे संजानाना उपासते ।।-(ऋ० १०/१९१/२)

अर्थ:-हे मनुष्यो ! मिलकर चलो,परस्पर मिलकर बात करो।तुम्हारे चित्त एक-समान होकर ज्ञान प्राप्त करें।जिस प्रकार पूर्वविद्वान,ज्ञानीजन सेवनीय प्रभु को जानते हुए उपासना करते आये हैं,वैसे ही तुम भी किया करो।

इस मन्त्र में भी परस्पर मिलकर चलने,बातचीत करने और मिलकर ज्ञान प्राप्त करने की बात कही गई है।

इस मन्त्र में भी वैचारिक और मानसिक एकता की बात कहकर वेद सन्देश देता हैँ-

समानी व आकूतिः समाना ह्रदयानि वः ।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ।।-(ऋ०१०/१९१/४)

अर्थ:-हे मनुष्यों ! तुम्हारे संकल्प समान हों,तुम्हारे ह्रदय परस्पर मिले हुए हों,तुम्हारे मन समान हों जिससे तुम लोग परस्पर मिलकर रहो।

एकता तभी हो सकती है जब मनुष्यों के मन एक हों।वेदमन्त्रों में इसी मानसिक एकता पर बल दिया गया है।संगठन का यह पाठ केवल भारतीयों के लिए ही नहीं,अपितु धरती के सभी मनुष्यों के लिए है।यदि संसार के लोग इस उपदेश को अपना लें तो उपर्युक्त सभी कारण जिन्होंने मनुष्य को मनुष्य से पृथक कर रखा है,वे सब दूर हो सकते हैं,संसार स्वर्ग के सदृश्य बन सकता है।
वेद से ही विश्व शान्ति संभव है।संसार का कोई अन्य तथाकथित धर्म-ग्रन्थ इसकी तुल्यता नहीं कर सकता।वेद का सन्देश संकीर्णता,संकुचितता,पक्षपात,घृणा,जातीयता,प्रान्तीयता और साम्प्रदायिकता से कितना ऊंचा है।

कुरआन इस्लाम का आधारभूत ग्रन्थ है।क्या विश्वशान्ति कुरआन द्वारा सम्भव हो सकती है,इस सन्दर्भ में कुरआन की कुछ आयतें देखिए-

(1) जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाते हैं उनके लिए यह मत कहो कि ये मृतक हैं,किन्तु वे जीवित हैं।(२-२-१५४)

(2) अल्लाह के मार्ग में लड़ो उनसे जो तुमसे लड़ते हैं।मार डालो तुम उनको जहाँ पाओ।कत्ल से कुफ्र बुरा है।यहाँ तक उनसे लड़ो कि कुफ्र न रहे और होवे दीन अल्लाह का।(२-२-१९४)

(3) जिन लोगों ने हमारी आयतों का इन्कार किया उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे।जब उनकी खालें पक जाएँगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर ले।निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्त्व दर्शाया है।(५-४-५६)

(4) वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं,उसी तरह से तुम भी काफिर हो जाओ,फिर तुम एक जैसे हो जाओ तो उनमें से किसी को अपना साथी ना बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें;और यदि वे इससे फिर जावे तो उन्हें जहाँ कहीं पाओ पकड़ो और उनका (कत्ल) वध करो।और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।(५-४-८९)

(5) निःसन्देह काफिर(गैर मुस्लिम) तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।(५-४-१०१)

(6) फिर हमने उनके बीच कियामत के दिन तक के लिए वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी और अल्लाह जल्प उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं।(६-५-१४)

(7) हे ईमान लाने वालो(मुसलमानों) तुम यहूदियों और ईसाइयों को मित्र न बनाओ ये आपस में एक-दूसरे के मित्र हैं और जो कोई तुममें से उनको मित्र बनाएगा वह उन्हीं में से होगा।निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता।(६-५-५१)

(8) हे ईमान लाने वालो !…..और काफिरों को अपना मित्र मत बनाओ।अल्लाह से डरते रहो यदि तुम ईमान वाले हो।(६-५-५७)

(9) और लड़ो उनसे यहाँ तक कि न रहे फ़ितना अर्थात् काफ़िरों का और होवे दीन तमाम वास्ते अल्लाह के।और जानो तुम यह कि जो-कुछ तुम लूटो किसी वस्तु से निश्चय वास्ते अल्लाह के है।पाँचवाँ हिस्सा उसका और वास्ते रसूल के।(९-८-४१)

(10) हे नबी ! ईमान वालों (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारों यदि तुममें २० जमे रहने वाले होंगे तो वे २०० पर प्रभुत्व,प्राप्त करेंगे।और यदि तुममें १०० हों तो १००० काफिरों पर भारी रहेंगे।क्योंकि वह ऐसे लोग हैं जो समझ-बूझ नहीं रखते।(१०-८-६५)

(11) तो जो कुछ गनीमत (लूट) का माल तुमने हासिल किया हैं उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ।(१०/८/६९)

(12) उन (काफिर ) से लड़ो ! अल्लाह तुम्हारे हाथों चातना देगा और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा और ईमान वालों के दिल ठण्डे करेगा।(१०/९/१४)

(13) हे ईमान लाने वालो मुश्रिक नापाक हैं।(१०-९-२८)

(14) फिर जब हराम के महीने बीत जाए तो मुश्रिको (मूर्तिपूजक) को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो और उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो।और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो फिर यदि वे तौबा कर लें नमाज कायम करें और जकात दे तो उनका मार्ग छोड़ दो निःसन्देह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।(१०-९-५)

(15) हे ईमान लाने वालो (मुसलमानों) अपने बापों और भाइयों को अपना मित्र बनाओ यदि वह ईमान की अपेक्षा कुफ्र को पसन्द करे और तुममें से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे।(१०-९-२३)

(16) किताब वाले जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर,न उसे हराम करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है और न सच्चे दीन को अपना दीन बनाते हैं।उनसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित(अपमानित) होकर अपने हाथों से जजिया देने लगें।(१०-९-२९)

(17) अल्लाह काफिर लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।(१०-९-३७)

(18) अल्लाह ने मुनाफिक (अर्ध मुसलिम) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और काफिरों से जहन्नुम की आग वादा किया है-जिसमें वे सदा रहेंगे यही उन्हें बस है।अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके लिए स्थायी यातना है।(१०-९-६८)

(19) हे ईमान लाने वालो (मुसलमानों) उन काफिरों से लड़ो जो तुम्हारे आसपास हैं और चाहिए कि वे तुममें सख्ती पाये…….(११-९-१२३)

(20) निःसन्देह अल्लाह ने ईमान वालों (मुसलमानों) से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए जन्नत है।अल्लाह के मार्ग पर लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं। (११-९१-१११)

(21) (कहा जाएगा) : निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे जहन्नुम का ईंधन हो।तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे। (१७-२१-९८)

(22) बस मत कहा मान काफ़िरों का और झगड़ा कर उनके साथ बड़ा झगड़ा।(१९-२५-५२)

(23) और उनसे बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके रब की आयतों के द्वारा चेताया जाए और फिर वह उनसे मुँह फेर ले।निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है। (२१-३२-२२)

(24) फटकारे हुए (गैर मुस्लिम) जहाँ कहीं पाए जाएँगे,पकड़े जाएँगे,और बुरी तरह कत्ल किए जाएँगे। (२२-३३-६१)

(25) तो अवश्य हम कुफ्र करने वालों को यातना का मजा चखाएँगे और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे। (२४-४१-२७)

(26) यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का (जहन्नम) आग इसी में उनका सदा घर है इसके बदले में कि हमारी आयतों का इन्कार करते थे। (२४-४१-२८)

(27) अल्लाह ने तुमसे बहुत सी गनीमतों (लूट) का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी। (२६-४८-२०)

(28) निश्चय अल्लाह मित्र रखता है उन लोगों को कि लड़ते हैं बीच मार्ग उसके।(२८-६४-४)

(29) हे नबी ! काफिरों और मुनाफिकों के साथ जिहाद करो और उन पर सख्ती करो और उनका ठिकाना जहन्नुम है और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे।(२८-६६-९)

(30) ऐ नबी ! झगड़ा कर काफिरों और गुप्त शत्रुओं से और सख्ती कर ऊपर उनके।(२८-६६-९)

उपर्युक्त आयतों को पढ़कर यह पता चलता है कि ईश्वर और मजहब का नाम लेकर कुरआन ने पिछले १४०० वर्षों में रक्तपात और नरसंहार को बढ़ावा दिया है।लाखों व्यक्ति इस्लाम के नाम पर मारे जा चुके हैं।मजहब का प्रसार तो प्रचार से होना चाहिए था न कि तलवार से।इसी प्रचार-भावना को लेकर दूसरे देशों पर आक्रमण किये गये।वहाँ के राजनीतिक नेताओं की हत्याएँ की गईं।वहाँ के लोगों को जबर्दस्ती मुसलमान बनाया गया।इस्लाम अस्वीकार करने वालों को कत्ल किया गया।देश देशो से टकराये।विश्व की शान्ति को भंग किया गया।वैमनस्य,घृणा,लूटपाट और रक्तपात का बाजार संसार में गर्म किया गया-केवल ईश्वर का नाम लेकर और मजहब का नाम लेकर।क्या ईश्वर रक्तपात करवाना चाहता है ?क्या केवल इस्लाम ही ईश्वर-प्रदत्त मजहब है?
क्या केवल मुसलमान ही उसके मजहब के एजेन्ट हैं?ये सारी बातें विचारणीय हैं,परन्तु एक बात तो निश्चित है कि इस्लाम का नाम लेकर तविश्वशान्ति को भंग किया गया है।देशों की परस्पर लड़ाईयाँ,साम्प्रदायिक दंगे,अन्य मत-मतान्तर वालों के प्रति असहिष्णुता की भावना-ये विश्व को इस्लाम की बहुत बड़ी देन है।


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Qजब बचपन था, तो जवानी एक ड्रीम था… जब जवान हुए, तो बचपन एक ज़माना था…...

Qजब बचपन था, तो जवानी एक ड्रीम था…
जब जवान हुए, तो बचपन एक ज़माना था… !!

जब घर में रहते थे, आज़ादी अच्छी लगती थी…

आज आज़ादी है, फिर भी घर जाने की जल्दी रहती है… !!

कभी होटल में जाना पिज़्ज़ा, बर्गर खाना पसंद था…

आज घर पर आना और माँ के हाथ का खाना पसंद है… !!!

स्कूल में जिनके साथ ज़गड़ते थे, आज उनको ही इंटरनेट पे तलाशते है… !!

ख़ुशी किसमे होतीं है, ये पता अब चला है…
बचपन क्या था, इसका एहसास अब हुआ है…

काश बदल सकते हम ज़िंदगी के कुछ साल..

.काश जी सकते हम, ज़िंदगी फिर एक बार…!!

👘 जब हम अपने शर्ट में हाथ छुपाते थे
और लोगों से कहते फिरते थे देखो मैंने
अपने हाथ जादू से हाथ गायब कर दिए
|🌀🌀

✏जब हमारे पास चार रंगों से लिखने
वाली एक पेन हुआ करती थी और हम
सभी के बटन को एक साथ दबाने
की कोशिश किया करते थे |❤💚💙💜

👻 जब हम दरवाज़े के पीछे छुपते थे
ताकि अगर कोई आये तो उसे डरा सके..👥

👀जब आँख बंद कर सोने का नाटक करते
थे ताकि कोई हमें गोद में उठा के बिस्तर तक पहुचा दे |

🚲सोचा करते थे की ये चाँद
हमारी साइकिल के पीछे पीछे
क्यों चल रहा हैं |🌙🚲

🔦💡On/Off वाले स्विच को बीच में
अटकाने की कोशिश किया करते थे |

🍏🍎🍉🍑🍈 फल के बीज को इस डर से नहीं खाते
थे की कहीं हमारे पेट में पेड़ न उग जाए |

🍰🎂🍧🏆🎉🎁 बर्थडे सिर्फ इसलिए मनाते थे
ताकि ढेर सारे गिफ्ट मिले |

🔆फ्रिज को धीरे से बंद करके ये जानने
की कोशिश करते थे की इसकी लाइट
कब बंद होती हैं |

🎭 सच , बचपन में सोचते हम बड़े
क्यों नहीं हो रहे ?

और अब सोचते हम बड़े क्यों हो गए ?⚡⚡

🎒🎐ये दौलत भी ले लो..ये शोहरत भी ले लो💕

भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी…

मगर मुझको लौटा दो बचपन
का सावन ….☔

वो कागज़
की कश्ती वो बारिश का पानी..🌊🌊🌊
…………..


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ऋषि दयानन्द की विलक्षणता: डॉ धर्मवीर ऋषि दयानन्द की विलक्षणता ऋषि दयानन्द के जीवन में कई...

ऋषि दयानन्द की विलक्षणता:

डॉ धर्मवीर


ऋषि दयानन्द की विलक्षणता ऋषि दयानन्द के जीवन में कई विलक्षणताएँ हैं, जैसे- घर न बनाना– किसी भी मनुष्य के मन में स्थायित्व का भाव रहता है। सामान्य व्यक्ति भी चाहता है कि उसका कोई अपना स्थान हो, जिस स्थान पर जाकर वह शान्ति और निश्चिन्तता का अनुभव कर सके। एक गृहस्थ की इच्छा रहती है कि उसका अपना घर हो, जिसे वह अपना कह सके, जिस पर उसका अधिकार हो, जहाँ पहुँचकर वह सुख और विश्रान्ति का अनुभव कर सके। यदि मनुष्य साधु है तो भी उसे एक स्थायी आवास की आवश्यकता अनुभव होती है। उसका अपना कोई मठ, स्थान, मन्दिर, आश्रम हो। वह यदि किसी दूसरे के स्थान पर रहता है तो भी उसे अपने एक कमरे की, कुटिया की इच्छा रहती है, जिसमें वह अपनी इच्छा के अनुसार रह सके, अपने व्यक्तिगत कार्य कर सके, अपनी वस्तुओं को रख सके। ऋषि दयानन्द इसके अपवाद हैं। घर से निकलने के बाद उन्होंने कभी घर बनाने की इच्छा नहीं की। उन्हें अनेक मठ-मन्दिरों के महन्तों ने अपने आश्रम देने, उनका महन्त बनाने की इच्छा व्यक्त की, परन्तु ऋषि ने उन सबको ठुकरा दिया। राजे-महाराजे, सेठ-साहूकारों ने उन्हें अपने यहाँ आश्रय देने का प्रस्ताव किया, परन्तु ऋषि ने उनको भी अस्वीकार कर दिया। ऐसा नहीं है कि ऋषि को इसकी आवश्यकता न रही हो। ऋषि ने वैदिक यन्त्रालय के लिये स्थान लिया, मशीनें खरीदीं, कर्मचारी रखे, परन्तु उसको अपने लिये बाधा ही समझा। पत्र लिखते हुए ऋषि ने लिखा- आज हम गृहस्थ हो गये, आज हम पतित हो गये। इसमें उनकी इस आवश्यकता के पीछे की विवशता प्रकाशित होती है। एक ऋषि भक्त मास्टर सुन्दरलाल जी ने ऋषि को लिखा- आपकी लिखी-छपी पुस्तकें मेरे घर में रखी हैं, उन्हें कहाँ भेजना है? तब ऋषि ने बड़ा मार्मिक उत्तर सुन्दरलाल को लिखा- मेरा कोई घर नहीं है, तुहारा घर ही मेरा घर है, मैं पुस्तकों को कहाँ ले जाऊँगा? इस बात से उनकी निःस्पृहता की पराकाष्ठा का बोध होता है। पशुओं के अधिकारों की रक्षा– बहुत लोग दया परोपकार का भाव रखते हैं, वे प्राणियों पर दया करते हैं, उनकी रक्षा भी करते हैं, परन्तु ऋषि पशुओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं। पशुओं की रक्षा के लिए समाज के सभी वर्गों से आग्रह करते हैं, उनके विनाश से होने वाली हानि की चेतावनी देते हैं, ऋषिवर कहते हैं- गौ आदि पशुओं के नाश से राजा और प्रजा का भी नाश हो जाता है। ऋषि ने कहा है- हे धार्मिक सज्जन लोगो! आप इन पशुओं की रक्षा तन, मन और धन से क्यों नहीं करते? हाय!! बड़े शोक की बात है कि जब हिंसक लोग गाय, बकरे आदि पशु और मोर आदि पक्षियों को मारने के लिये ले जाते हैं, तब वे अनाथ तुम हमको देखके राजा और प्रजा पर बड़े शोक प्रकाशित करते हैं-कि देखो! हमको बिना अपराध बुरे हाल से मारते हैं और हम रक्षा करने तथा मारनेवालों को भी दूध आदि अमृत पदार्थ देने के लिये उपस्थित रहना चाहते हैं और मारे जाना नहीं चाहते। देखो! हम लोगों का सर्वस्व परोपकार के लिये है और हम इसलिये पुकारते हैं कि हमको आप लोग बचावें। हम तुहारी भाषा में अपना दुःख नहीं समझा सकते और आप लोग हमारी भाषा नहीं जानते, नहीं तो क्या हममें से किसी को कोई मारता तो हमाी आप लोगों के सदृश अपने मारनेवालों को न्याय व्यवस्था से फाँसी पर न चढ़वा देते? हम इस समय अतीव कष्ट में हैं, क्योंकि कोई भी हमको बचाने में उद्यत नहीं होता। ऋषि केवल धार्मिक आधार पर ही प्राणि-रक्षा की बात नहीं करते, वे उनके अधिकार की बात करते हैं। समाज को उनके हानि-लाभ का गणित भी समझाते हैं। एक गाय के मांस से एक बार में कितने व्यक्तियों की तृप्ति होती है? इसके विपरीत एक गाय अपने जीवन में कितना दूध देती है? उसके कितने बछड़े-बछड़ियाँ होती हैं, बैलों से खेती में कितना अन्न उत्पन्न होता है, गाय के गोबर-मूत्र से भूमि कितनी उर्वरा होती है? ऐसा आर्थिक विश्लेषण किसी ने उनसे पूर्व नहीं किया। जहाँ तक प्राणियों के लिये ऋषि के मन में दया भाव का प्रश्न है, वह दया तो केवल दयानन्द के ही हृदय में हो सकती है। ऋषि लिखते हैं- भगवान! क्या पशुओं की चीत्कार तुहें सुनाई नहीं देती है? हे ईश्वर! क्या तुहारे न्याय के द्वार इन मूक पशुओं के लिये बन्द हो गये हैं? अनाथ एवं अवैध सन्तानों के अधिकारों की रक्षा– ऋषि ने समाज में जो बालक-बालिकायें, माता-पिता और संरक्षक-विहीन, अभाव-पीड़ित, प्रताड़ित और उपेक्षित थे, उनके अधिकारों के लिये सरकार से लड़ाई लड़ी। जो बालक अविवाहित माता-पिता की सन्तान हैं, समाज उन्हें हीन समझता है, उन बालकों को अवैध कहकर, उनकी उपेक्षा करता है। ऋषि कहते हैं- माता-पिता का यह कार्य समाज की दृष्टि में अवैध कहा जाता हो, परन्तु इसमें सन्तान किसी भी प्रकार से दोषी नहीं है। साी बालक ईश्वर की व्यवस्था से तथा प्रकृति के नियमानुसार ही उत्पन्न होते हैं, अतः वे समाज में समानता के अधिकारी हैं। उनकी उपेक्षा करना, उनके साथ अन्याय है। कोई शिष्य, उत्तराधिकारी नहीं बनाया- सभी मत-सप्रदाय परपरा के व्यक्ति अपने उत्तराधिकारी नियुक्त करते हैं। ऋषि के समय उनके भक्त, शिष्य, अनुयायी थे, परन्तु किसी भी व्यक्ति को उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाया। उन्होंने अपनी वस्तुओं और धन का उत्तराधिकारी परोपकारिणी सभा को बनाया। अपने धन को सौंपते हुए, वेद के प्रचार-प्रसार और दीन-अनाथों की रक्षा का उत्तरदायित्व दिया। विचारों और सिद्धान्तों के प्रचार के लिये आर्यसमाज के दस नियम और उनका पालन करने के लिये आर्यसमाज का संगठन बनाया। धार्मिक क्षेत्र में प्रजातन्त्र का प्रयोग– धर्म और आस्था के क्षेत्र में उत्तराधिकार और गुरु-परपरा का स्थान मुय रहा है। शासन-परपरा में ऋषि के समय विदेशों में प्रजातन्त्र स्थापित हो रहा था। भारत में राजतन्त्र ही चल रहा था। अंग्रेज लोग राजाओं के माध्यम से ही भारतीय प्रजा पर शासन कर रहे थे। जहाँ राजा नहीं थे, वहाँ अंग्रेज अधिकारी ही शासक थे। शासन में जनता की कोई भागीदारी नहीं थी। ऋषि का कार्य क्षेत्र धार्मिक और सामाजिक था। इस क्षेत्र में प्रजातन्त्र की बात नहीं की जाती थी, गुरु-महन्त जिसको उचित समझे, उसे अपना उत्तराधिकारी चुन सकते थे। सभी लोग गुरु के आदेश को शिरोधार्य करके उसका अनुसरण करते थे, आज भी ऐसा हो रहा है। धार्मिक क्षेत्र आस्था और श्रद्धा का क्षेत्र है। व्यक्ति के मन में जिसके प्रति आस्था हो, वह उसको गुरु मान लेता है, उसका अनुयायी हो जाता है, परन्तु स्वामी जी ने इस क्षेत्र में तीन बातों का समावेश किया- प्रथम बात, किसी के प्रति श्रद्धा करने से पूर्व उसकी परीक्षा करना, किसी भी विचार को परीक्षा करने के उपरान्त ही स्वीकार करना। आज तक किसी गुरु ने शिष्य को यह अधिकार नहीं दिया कि वह गुरु की बातों की परीक्षा करे, उसके सत्यासत्य को स्वयं जाँचे। यही कारण है कि स्वामी जी के शिष्यों में गुरुडम को स्थान नहीं है। ऋषि की दूसरी विलक्षणता- परीक्षा करने की योग्यता मनुष्य में तब आती है, जब वह ज्ञानवान होता है और मनुष्य को ज्ञानवान गुरु ही बनाता है। ऋषि दयानन्द अपने शिष्यों, भक्तों और अनुयायी लोगों को पहले ज्ञानवान बनाते हैं, फिर उस ज्ञान से अपने विचार की परीक्षा करने को कहते हैं। सामान्य गुरु लोग अपने भक्तों और शिष्यों को ज्ञान का ही अधिकार नहीं देते, परीक्षा करने के अधिकार का तो प्रश्न ही नहीं उठता। ऋषि मनुष्य मात्र को ज्ञान का अधिकारी मानते हैं, अतः ज्ञान का उपयोग परीक्षा में होना स्वाभाविक है। तीसरी बात ऋषि ने धार्मिक क्षेत्र में की, वह है  प्रजातान्त्रिक प्रणाली का उपयोग। धार्मिक लोग सदा समर्पण को ही मान्यता देते हैं, वहाँ गुरु परपरा ही चलती है, परन्तु ऋषि ने धार्मिक संगठनों की स्थापना कर उनमें प्रजातन्त्रात्मक पद्धति का उपयोग किया। यह विवेचना का विषय हो सकता है कि यह पद्धति सफल है या असफल है। मनुष्य की बनाई कोई भी वस्तु शत-प्रतिशत सफल नहीं हो सकती, अतएव समाज में नियम, मान्यता, व्यवस्थाएँ सदा परिवर्तित होती रहती हैं। गुरुडम की समाप्ति प्रजातन्त्र के बिना सभव नहीं थी, अतः ऋषि ने इसे महत्त्व दिया है। प्रजातन्त्रात्मक पद्धति की विशेषता है कि इसमें योग्यता का समान होता है। इसमें हम देखते हैं कि योग्यता के कारण एक व्यक्ति जो सबसे पीछे था, वह इस पद्धति में एक दिन सबसे अग्रिम पंक्ति में दिखाई देता है। मूर्ति-पूजा- मूर्ति पूजा एक ऐसा प्रश्न है, जिसके निरर्थक होने में बुद्धिमान सहमत हैं, परन्तु व्यवहार में स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं। ऋषि ने मूर्ति-पूजा को पाप और अपराध कहा, इसके लिये पूरे देश में शास्त्रार्थ किये। काशी के विद्वानों को ललकारा। ऋषि मूर्ति-पूजा के विरोध के प्रतीक बन गये। समाज में समाज-सुधारकों की बड़ी परपरा है, प्रायः सभी ने उसको यथावत् स्वीकार करके ही अपनी बात रखी, जिससे उनके अनुयायी बनने में जनता को किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आई। लोगों ने अपने भगवानों की पंक्ति में सुधारकों को भी समानित स्थान दे दिया। आश्चर्य है, आचार्य शंकर जैसे विद्वान्, जिनके लिये अखण्ड एकरस ब्रह्म जिसके सामने जीना-मरना, संसार का होना, न होना कोई अर्थ नहीं रखता, वे शिव की मूर्ति को भगवान मानकर उसकी पूजा-अर्चना करना ही अपना धर्म मानते हैं। तस्मै नकाराय नमः शिवाय जैसा स्तोत्र रचते हैं। मूर्ति-पूजा सबसे बड़ा पाखण्ड है, जिसमें एक पत्थर भगवान का विकल्प तो बन सकता है, परन्तु एक नौकर या एक गाय का विकल्प नहीं बन सकता। दुकान पर दुकानदार पत्थर के नौकर को बैठाकर अपना काम नहीं चला सकता और न ही पत्थर की गाय से दूध प्राप्त कर सकता है। प्रश्न यह है कि पत्थर का भगवान संसार की सारी वस्तुयें दे सकता है तो पत्थर की गाय दूध क्यों नहीं दे सकती या मनुष्य पत्थर के नौकर को दुकान पर छोड़कर बाहर क्यों नहीं जा सकता? ऋषि दयानन्द ने मूर्ति-पूजा को धूर्तता और मूर्खता का समेलन बताया है। मन्दिर को चलाने वाला चालाक दुकानदार होता है और पूजा कर चढ़ावा चढ़ाने वाला भक्त भय, लोभ में फँसा अज्ञानी। यही मूर्ति-पूजा का रहस्य है, जिसे सभी जानते हैं, परन्तु इसको घोषणापूर्वक कहना ऋषि का ही कार्य है। राष्ट्रीयता– जिन्हें हम समाज-सुधारक या धार्मिक-नेता कहते हैं, वे राजनीति और शासन के सबन्ध में चुप रहना ही अच्छा समझते हैं। उनकी उदासीन या सर्वमैत्री भाव वाली दृष्टि कोउ नृप होऊ हमें का हानि वाली रहती है, परन्तु ऋषि ने अपने ग्रन्थ में राजनीति पर एक अध्याय लिखा और अपने लेखन, भाषण में उनके उचित-अनुचित पर टिप्पणी भी की। ऋषि दयानन्द अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं- विदेशी राज्य माता-पिता के समान भी सुखकारी हो, तो भी अपने राज्य से अच्छा नहीं हो सकता। आपने अंग्रेजी शासन की चर्चा करते हुए कहा कि अंग्रेज अपने कार्यालय में देसी जूते को समान नहीं देता, वह अंग्रेजी जूता पहनकर अपने कार्यालय में आने की आज्ञा देता है। यह लिखकर उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम प्रकाशित किया है। ऋषि अंग्रेज अधिकारी द्वारा शासन में किसी प्रकार की असुविधा न होने की बात पर उसके लबे शासन की प्रार्थना का प्रस्ताव ठुकरा कर प्रतिदिन भगवान से देश के स्वतन्त्र होने की प्रार्थना करने की बात करते हैं। यही कारण है कि भारत के किसी मन्दिर में ‘भारत माता की जय’ नहीं बोली जाती, परन्तु आर्यसमाज मन्दिरों  में प्रत्येक सत्संग के बाद भारत माता की जय बोलना आर्यसमाज की धार्मिक परिपाटी का अङ्ग है। यह बात सभी समाज-सुधारकों से ऋषि को अलग करती है। वेद के पढ़ने का अधिकार– भारत को आज भी वेद के बिना देखना सभव नहीं, भारत के सभी सप्रदाय वेद से सबन्ध रखते हैं, उनका अस्तित्व वेद से है। जो आस्तिक सप्रदाय हैं, वे वेद में आस्था रखते हैं, वेद को पवित्र पुस्तक और धर्म ग्रन्थ मानते हैं, दूसरे सप्रदाय वेद को धर्मग्रन्थ नहीं मानते, स्वयं को वेद-विरोधी स्वीकार करते हैं। सबसे विचारणीय बात है कि वेद को मानने वाले अपने को आस्तिक कहते हैं, वेद न मानने वाले को लोग नास्तिक कहते हैं। सामान्य रूप से ईश्वर को मानने वाले आस्तिक कहलाते हैं। ईश्वर की सत्ता को जो लोग स्वीकार नहीं करते, उनको नास्तिक कहा जाता है। कुछ लोग वेद को स्वीकार नहीं करते, परन्तु किसी-न-किसी रूप में ईश्वर की सत्ता मानते हैं, अतः ऐसे लोगों को भी नास्तिकों की श्रेणी में रखा गया। इस देश के आस्तिक भी नास्तिक भी, वेद से जुड़े होने पर भी दोनों का वेद से कोई सबन्ध शेष नहीं है। वेद-समर्थक भी वेद नहीं पढ़ते, वेद-विरोधी भी वेद को बिना पढ़े समर्थकों की बातें सुनकर ही वेद का विरोध करते हैं। ऋषि दयानन्द इन दोनों से विलक्षण हैं। उनके वेद सबन्धी विचारों का विरोध वेद के समर्थक भी करते हैं और वेद विरोधी भी। दोनों ऋषि दयानन्द के विरोधी हैं और इसी कारण ऋषि दयानन्द दोनों का ही विरोध करते हैं। ऋषि दयानन्द की इस विलक्षणता का कारण उनकी वेद-ज्ञान की कसौटी है। लोग कहते हैं- ऋषि दयानन्द ने वेद कब पढ़े हैं? गुरु विरजानन्द के पास तो वे केवल ढाई वर्ष तक रहे, फिर वेद कब पढ़े? इसका उत्तर है- दण्डी विरजानन्द के पास ऋषि दयानन्द ने वेदार्थ की कुञ्जी प्राप्त की, वह कुञ्जी है- आर्ष और अनार्ष की। हमारे समाज में संस्कृत में लिखी बात को प्रमाण माना जाता है। आर्ष-अनार्ष में विभाजन करने से मनुष्यकृत सारा साहित्य अप्रमाण कोटि में आ जाता है। अब जो शेष साहित्य बचा है, उसके शुद्धिकरण की कुञ्जी शास्त्रों ने दी है। ऋषि दयानन्द ने उसको आधार बनाकर सारे वैदिक साहित्य को स्वतः प्रमाण और परतः प्रमाण में बाँट कर जो कुछ वेद के मन्तव्यों से विरुद्ध लिखा गया है, उसे निरस्त कर अप्रामाणिक घोषित कर दिया। जो कुछ इनमें वेद विरुद्ध लिखा गया, वह दो प्रकार का है, एक- स्वतन्त्र ऋषियों के नाम पर लिखे गये ग्रन्थ तथा दूसरे- ऋषि ग्रन्थों में की गई मिलावट, जिसे शास्त्रीय भाषा में प्रक्षेप कहते हैं। ऋषि ने इस प्रक्षेप को परतः प्रमाण मानकर जो कुछ वेदानुकूल नहीं है, उसे त्याज्य घोषित कर दिया। इस प्रकार ऋषि को वेद तक पहुँचना सरल हो गया। अब बात शेष रही, वेद किसे माना जाय? पौराणिक लोग सब कुछ को वेद का नाम देकर सारा पाखण्ड ही वैदिक बना डालते हैं। ऋषि ने मूल वेद संहिता और शाखा ब्राह्मण भाग को वेद से भिन्न कर दिया। आज हमारे पास दो यजुर्वेद हैं, इनमें किसे वेद स्वीकार किया जाय, इस पर ऋषि दयानन्द की युक्ति बड़ी बुद्धि ग्राह्य लगती है। वे कहते हैं- शुक्ल और कृष्ण शद ही इसके निर्णायक हैं। शुक्ल प्रकाश होने से श्रेष्ठता का द्योतक है, कृष्ण प्रकाश रहित होने से कम होने का। दूसरा तर्क है, जिसमें मूल है, वह शुक्ल तथा जिसमें व्याया है, उसे कृष्ण कहा गया है। ऋषि समस्त वेद को वेदत्व के नाते एक स्वीकार करते हैं तथा शेष वैदिक साहित्य को वेदानुकूल होने पर प्रमाण स्वीकार करते हैं। जहाँ तक हमारे पौराणिक लोग हैं, वे वेद को तो ईश्वरीय ज्ञान मानते हैं, परन्तु वेद में सब कुछ उचित-अनुचित है, यह भी उन्हें स्वीकार्य है। ऋषि दयानन्द जो ईश्वर और प्रकृति के नियमों के अनुकूल है, उसे ही वेद मानते हैं। जो ईश्वरीय ज्ञान प्रकृति नियमों के विरुद्ध है, उसे वेद प्रोक्त नहीं माना जा सकता। वेद के अर्थ विचार की जो कसौटी ऋषि दयानन्द ने प्रस्तुत की है, वह भी शास्त्रानुकूल है। समस्त वेद एक होने से तथा वेद एक बुद्धिपूर्ण रचना होने से वेद में परस्पर विरोधी बातें नहीं हो सकती तथा वेद के शदों का अर्थ आज की लौकिक संस्कृत के शद कोष से निर्धारित नहीं किया जा सकता। शद का अर्थ पूरे मन्त्र में घटित होना चाहिए तथा मन्त्र का अर्थ भी बिना प्रसंग के नहीं किया जा सकता। ऐसी परिस्थिति में हमारे पास वेदार्थ करने का जो उपाय शेष रहता है, वह बहुत सीमित है। कोष के नाम पर हमारे पास निघण्टु निरुक्त है। उसके अतिरिक्त वैदिक साहित्य में आये शदों के निर्वचन हमारा मार्गदर्शन करते हैं। हमारे पास वेदार्थ करने का एक और उपाय है- वेदार्थ में यौगिक प्रक्रिया का प्रयोग करना। लोक में प्रायः रूढ़ि, योग-रूढ़ शदों से काम चलाया जाता है, परन्तु रूढ़ि शदों से वेदार्थ करना, वेद के साथ अन्याय है, अतः यास्कादि ऋषि वेदार्थ के लिये यौगिक प्रक्रिया को अनिवार्य मानते हैं। ऋषि दयानन्द इसी आधार पर वेदार्थ को इस युग के अनुसार प्रस्तुत करने में समर्थ हो सके। ऋषि दयानन्द की वेद के सबन्ध में एक और विलक्षणता है। वेद के भक्त वेद को धर्मग्रन्थाी मानते हैं, परन्तु वेद को धर्मग्रन्थ स्वीकार करने वालों को उसे पढ़ना तो दूर, उसके सुनने तक का अधिकार देने को तैयार नहीं। इसके विपरीत वेद पढ़ने-सुनने पर दण्डित करने का विधान करते हैं। इस विषय में ये लोग कुरान एवं मोहमद साहब से भी आगे पहुँच गये। मनुष्य के धार्मिक होने के लिये धर्मग्रन्थ होता है, धर्मग्रन्थ को जाने बिना कोई भी धर्माधर्म को कैसे जान सकता है? यह ऐसा प्रयास है, जैसे कोई बालक अपने माता-पिता से बात न कर सके। उसके शद न सुने और उनकी बात माने। ऋषि दयानन्द वेद मन्त्र से ही इस धारणा का खण्डन कर देते हैं। वे कहते हैं- वेद ईश्वरीय ज्ञान है, संसार ईश्वर का है। प्रकृति के सभी पदार्थों पर सबका समान अधिकार-जल, वायु, पृथ्वी, आकाश सभी कुछ पर। बिल्कुल वैसे ही, जैसे सन्तानों का अपने पिता की सपत्ति पर अधिकार होता है, अतः प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वेद रूपी इस सपत्ति को अपनी सन्तान, परिजन, सेवकों को प्रदान करे। ऋषि इसके लिए यजुर्वेद का प्रमाण देते हैं- यथेमां वाचं कल्याणी मा वदानि जनेयः ब्रह्मराजन्यायां शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय च प्रियो देवानां दक्षिणायै दातुरिह भूयासमयं मे कामः समृद्ध्यतामुपमादो नमतु।

– डॉ. धर्मवीर

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अपना आयकर तत्काल जमा करें। क्योंकि : - - कन्हैया कुमार की फीस में सब्सिटी देना है। - विजय माल्या का...

अपना आयकर तत्काल जमा करें।
क्योंकि : -

- कन्हैया कुमार की फीस में सब्सिटी देना है।
- विजय माल्या का लोन चुकाना है।
- माननीय विधायकों का वेतन बढाना है
- उन की विदेश यात्राओं के बिल का भुगतान करना है। १/- रूपया किलो गेहूं देना है

।। जनहित में जारी ।।


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भारतीय सेना : राजपूत रेजिमेंट :- पाकिस्तान का रिटायर्ड मेजर जनरल मुकीश खान ने अपनी पुस्तक ‘Crisis...

भारतीय सेना : राजपूत रेजिमेंट :- पाकिस्तान का
रिटायर्ड मेजर जनरल मुकीश खान ने अपनी पुस्तक
‘Crisis off
Leadership’ में लिखा है कि, भारतीय सेना का एक
अभिन्न
अंग होते हुए भी, भारतीय सेना राजपूतो के शौर्य से
अंजान ही रही
क्योंकि…..’घर की मुर्गी दाल बराबर !’
भारतीय सेना को राजपूतो की वीरता से कभी सीधा
वास्ता नही
पड़ा था ! दुश्मनों को पड़ा था और उन्होंने इनकी
शौर्य गाथाएं
भी लिखी! स्वयं पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड
मेजर जनरल
मुकीश खान ने अपनी पुस्तक‘ Crisis of Leadership’
के
प्रष्ट २५० पर, वे राजपूतो के साथ हुई अपनी १९७१ की
मुठभेड़
पर लिखते हैं कि, “हमारी हार का मुख्य कारण था,
हमारा राजपूतो
से आमने सामने युद्ध करना! हम उनके आगे कुछ भी करने
में
असमर्थ थे! राजपूत बहुत बहादुर हैं और उनमें शहीद होने
का एक
विशेष जज्बा—एक महत्वाकांक्षा है! वे अत्यंत
बहादुरी से लड़ते
हैं और उनमें सामर्थ्य है कि अपने से कई गुना संख्या में
अधिक
सेना को भी वे परास्त कर सकते हैं!”
वे आगे लिखते हैं कि……..
‘३ दिसंबर १९७१ को हमने अपनी पूर्ण क्षमता और
दिलेरी के
साथ अपने इन्फैंट्री ब्रिगेड के साथ भारतीय सेना पर
हुसैनीवाला के समीप आक्रमण किया! हमारी इस
ब्रिगेड में
पाकिस्तान की लड़ाकू बलूच रेजिमेंट और जाट
रेजिमेंट भी थीं !
और कुछ ही क्षणों में हमने भारतीय सेना के पाँव
उखाड़ दिए
और उन्हें काफी पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया!
उनकी
महत्वपूर्ण सुरक्षा चौकियां अब हमारे कब्ज़े में थीं!
भारतीय
सेना बड़ी तेजी से पीछे हट रही थीं और
पाकिस्तानी सेना
अत्यंत उत्साह के साथ बड़ी तेजी से आगे बढ रही थी!
हमारी
सेना अब कौसरे - हिंद पोस्ट के समीप पहुँच चुकी थी!
भारतीय
सेना की एक छोटी टुकड़ी वहां उस पोस्ट की
सुरक्षा के लिए
तैनात थी और इस टुकड़ी के सैनिक राजपूत रेजिमेंट से
संबंधित थे!
एक छोटी सी गिनती वाली राजपूत रेजिमेंट ने लोहे
की दीवार बन
कर हमारा रास्ता अवरुद्ध कर दिया ! उन्होंने हम पर
भूखे शेरों
की तरह और बाज़ की तेजी से आक्रमण किया! ये
सभी सैनिक
राजपूत थे! यहाँ एक आमने-सामने की, आर-पार की,
सैनिक से
सैनिक की लड़ाई हुई! इस आर-पार की लड़ाई में भी
राजपूत सैनिक
इतनी बेमिसाल बहादुरी से लड़े कि हमारी सारी
महत्वाकांक्षाएं,
हमारी सभी आशाएं धूमिल हो उठीं, हमारी
उम्मीदों पर पानी
फिर गया ! हमारे सभी सपने चकना चूर हो गये!’
इस जंग में बलूच रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल गुलाब हुसैन
शहादत
को प्राप्त हुए थे! उनके साथ ही मेजर मोहम्मद जईफ
और
कप्तान आरिफ अलीम भी अल्लाह को प्यारे हुए थे!
उन अन्य
पाकिस्तानी सैनिकों की गिनती कर पाना
मुश्किल था जो इस
जंग में शहीद हुए ! हम आश्चर्यचकित थे मुट्ठीभर राजपूतो
के
साहस और उनकी इस बेमिसाल बहादुरी पर! जब हमने
इस तीन
मंजिला कंक्रीट की बनी पोस्ट पर कब्जा किया,
तो राजपूत इस
की छत पर चले गये, जम कर हमारा विरोध करते रहे —
हम से
लोहा लेते रहे! सारी रात वे हम पर फायरिंग करते रहे
और सारी
रात वे अपने उदघोष, अपने जयकारे’ से आकाश
गुंजायमान करते
रहे! इन राजपूत सैनिकों ने अपना प्रतिरोध अगले दिन
तक जारी
रखा, जब तक कि पाकिस्तानी सेना के टैंकों ने इसे
चारों और से
नहीं घेर लिया और इस सुरक्षा पोस्ट को गोलों से न
उड़ा डाला!
वे सभी मुट्ठी भर राजपूत सैनिक इस जंग में हमारा
मुकाबला करते
हुए शहीद हो गये, परन्तु तभी अन्य राजपूत सैनिकों ने
तोपखाने की
मदद से हमारे टैंकों को नष्ट कर दिया! बड़ी बहादुरी
से लड़ते
हुए, इन राजपूत सैनिकों ने मोर्चे में अपनी बढ़त कायम
रखी और
इस तरह हमारी सेना को हार का मुंह देखना पड़ा!
‘…..अफ़सोस ! इन मुट्ठी भर राजपूत सैनिकों ने हमारे इस
महान
विजय अभियान को हार में बदल डाला, हमारे
विश्वास और
हौंसले को चकनाचूर करके रख डाला! ऐसा ही हमारे
साथ ढाका
(बंगला-देश) में भी हुआ था! जस्सूर की लड़ाई में
राजपूतो ने
पाकिस्तानी सेना से इतनी बहादुरी से प्रतिरोध
किया कि हमारी
रीढ़ तोड़ कर रख दी, हमारे पैर उखाड़ दिए ! यह
हमारी हार का
सबसे मुख्य और महत्वपूरण कारण था ! राजपूतो का
शहीदी के
प्रति प्यार, और सुरक्षा के लिए मौत का उपहास
तथा देश के
लिए सम्मान, उनकी विजय का एकमात्र कारण था


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अखबार के किसी कोने में छपा है कि चीन ने संयुक्त राष्ट्र में पठानकोट के आंतकी हमले के मास्टरमाइंड...

अखबार के किसी कोने में छपा है कि चीन ने संयुक्त राष्ट्र में पठानकोट के आंतकी हमले के मास्टरमाइंड मसूद अज़हर को आंतकी सूचि में शामिल करने के प्रयासों पर वीटो कर दिया। इस पर भारत ने कड़ा विरोध किया हैं।

चीन ने 2008 में भी ऐसा किया था और भारत ने तब भी कठोर विरोध किया था। समाचार इतना ही है, आप चाहे तो आगे मत पढ़े। आगे यह है कि ना तो यह आतंकी हमला अंतिम है और ना ही हमारा विरोध। फिर होगा ऐसा हमला और हमारे रक्तरंजित लोगो की पुकार पर फिर चीन वीटो लाएगा।

हम न तो चीन और नाहीं पाकिस्तान की विचारधारा बदल सकते है और ना ही उनके गठजोड़ को तोड़ सकते है लेकिन पल भर विचार कर देश और मानवता के हित में एक छोटा कदम जरूर उठा सकते हैं।

ब्रितानिया हुकूमत के मुखालिफ होने के लिए हमने विदेशी माल की होली जलाई थी। आज हर व्यापारी की जान उसके फरोख्त में फंसी होती है और हम दुनिया के सबसे बड़े खरीददार हैं। बस उन मुल्को का माल लेना बंद कर दे जो मुल्क हर सूरत में हमारे खिलाफ हैं।

बहुत पहले एक टीवी सीरियल आता था “ मालगुडी डेज़"। उसका मुख्य किरदार एक छोटा लेकिन समझदार और उत्साही बच्चा "स्वामी” था। वह दूसरों की देखा देखी विदेशी कपड़ो की होली में अपनी टोपी फेकने से पहले पल भर को रुकता है, टोपी को स्नेह से देखता है लेकिन दिल में मचलती चिंगारी को अनदेखा नहीं कर पाटा और अपनी टोपी अंततः फेक देता हैं।

वही चिंगारी आज आपके दिल में है आप पुराने खरीद चुके माल को मत फेंके लेकिन नया माल नहीं ख़रीदे। देशप्रेम की यह हवा अगर आप के दिल में मचलती चिंगारी को मिल जायेगी तो अग्नि में दुश्मनो के हौसले खाक हो जाएंगे।

अग्नि पवित्र कर देती है, हर नापाक इरादे को।


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आम बातचीत: GUY1:भाई मोदी सचमे बहुत काम करते हैं! GUY2:क्यों बे?तू देखने जाता है क्या? GUY1:आप गये थे...

आम बातचीत:
GUY1:भाई मोदी सचमे बहुत काम करते हैं!
GUY2:क्यों बे?तू देखने जाता है क्या?
GUY1:आप गये थे क्या देखने की वो 18 घंटे काम नही करते?
GUY2:अबे चल!फेंकू केवल फेंक सकता है,कर कुछ नही सकता!
GUY1:किस आधार पर?
GUY2:अबे देखा नही?न 15 लाख रू आये,न काला धन आया।और तो और दंगे इतने हो गये की पूछो मत!इतनी असहिष्णुता फैला दी फेंकू ने की क्या बताऊ?
GUY1:अच्छा एक बात बताओ,ये काला धन देश से बाहर कब गया होगा?
GUY2:लगे ही होंगे 10-12 साल!
GUY1:तब क्या मोदी केंद्र में थें?
GUY2:नही,मनमोहन थें!
GUY1:तो जब इस देश से बाहर वो पैसे जा रहे थें,तब आप क्या कर रहे थें?
GUY2:अबे छोड़ो!यही बोलकर वोट पाया PM बना और अब दोगलापन कर रहा है!
GUY1:अच्छा जरा ये बताओ,60 साल किसकी सरकार थी?
GUY2:कांग्रेस की!
GUY1:तो 60 साल जब वो थें सत्ता में तो सारा इलज़ाम मोदी पर क्यों?
GUY2:अरे कांग्रेस ने इंदिरा गाँधी,राजीव गाँधी की आहुति दी है!
GUY1:84 सिख दंगों,भागलपुर दंगों,70 के दशक के आपातकाल की आहुति भी कांग्रेस ने ही ली थी!भूल गये?
GUY2:अरे वो वक्त कुछ और था,ये वक्त कुछ और है!
GUY1:नही!वो वक्त गांधियों का था,ये वक्त मोदी का है!
GUY2:संघी होते ही दंगेबाज़ हैं साले!
GUY1:क्यों?गोधरा काण्ड संघियों का था क्या?
GUY2:गुजरात दंगा तो था!
GUY1:गुजरात दंगे की वजह क्या थी?क्या सिर्फ मुस्लमान मरे वहाँ पर?
GUY2:मौत तो मौत होती है!क्या मुस्लिम क्या हिन्दू?
GUY1:तो फिर दादरी और मालदा पर इतना फर्क क्यों?
GUY2:अरे?मालदा पर राजनीती से हिंसा और भडक सकती थी!
GUY1:तो फिर दादरी पर नही भड़कती?
GUY1:नही
GUY2:क्यों?
GUY1:क्योंकि वो अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म था!
GUY2:तो क्या मालदा में सिर्फ इसलिए चुप रहा जाए क्योंकि वो अल्पसंख्यकों द्वारा मेजोरिटी पर हुआ ज़ुल्म था?क्या दोगली बात कर रहे हो आप?
GUY1:अरे कांग्रेस को देश चलाना आता है!बीजेपी को नही!
GUY2:कोईऐसी कांग्रेसी सरकार बताओ जिसमे घोटाले न हुए हों?
GUY1:अरे इतना बड़ा सन्गठन है!होते होंगे 10-15 उलटी खोपड़ी वाले!
GUY2:तो क्या ये बात भाजपा पर लागू नही होती?
GUY1:नही!क्योंकि वो हिंदुत्व को आगे बढ़ाती है!और देश सेक्युलर है!
GUY2:ये कौन सा सेकुलरिज्म है की “भारत माता की जय!” पर फतवा लग जाता है और एक मुस्लिम नेता अमनातुल्ला खान दिल्ली के मुसलमानों को भड़काता है और कोई कार्यवाही नही?
GUY1:अरे इससे साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता है!
GUY2:जी नही परम सेक्युलर आत्मा!साम्प्रदायिक सौहार्द नही अपितु सेकुलरिस्टों का वोट बैंक बिगड़ सकता है!

हर दल को गरिया उसी से हाथ मिला सरकार में बैठने वाली कांग्रेस का खुद का सिद्धांत क्या है?प्रशांत पुजारी की मौत और कोई रोना नही लेकिन अख्लाक की मौत पर सब उसके घर!ओवैसी भारत माता की जय नही बोलता।कहता है सम्विधान में नही लिखा!अरे संविधान में तो अल्लाह हु अकबर बोलना भी नही लिखा,मगर कहते हो न?क्योंकि अपने धर्म पर तुम्हारी आस्था है,देश पर नही!हर वक्त मोदी को गालियाँ देने में तुम्हारी आस्था है मगर देश की प्रगति पर तुम्हारी आस्था नही!

हिन्दुओं की उपेक्षा सेकुलरिज्म नही!हरा झंडा जितनी शान से एक इन्सान इस देश में लहरा सकता है भगवा भी उतनी ही शान से लहराएगा!
और आप जैसे लोगों पर ही तरस आता है जिनकी आँखों पर विरोध के लिए विरोध करो की पट्टी लगी है!

आप और कुछ नही हो साहब!अगले डॉ नारंग हो!

क्योंकि यदि कल कुछ कट्टरपंथियों ने आपको शिकार बनाया तो कोई नही आएगा आपके लिए क्योंकि आप नही गयें किसी के लिए!खूब खेलो सेकुलरिज्म में भईया!इस देश की मीडिया देशद्रोहियों के लिए अपनी स्क्रीन भी काली कर सकती है और जरूरत पड़ने पर अपना मूंह भी!और हाँ!आगे से बिना दिमाग खोले बहस मत करियेगा!आप ही जैसे लोग हैं की ये देश इतना लूटा गया है!


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आपने किसी ओवैसी, आज़म या बुखारी को इस बहादुर देशभक्त अधिकारी मोहम्मद तंज़िल अहमद की निर्मम हत्या पर...

आपने किसी ओवैसी, आज़म या बुखारी को इस बहादुर देशभक्त अधिकारी मोहम्मद तंज़िल अहमद की निर्मम हत्या पर बयान सुना क्या ? 

क्योंकि मोहम्मद तंज़िल अहमद न तो अफ़ज़ल थे और न ही याक़ूब | कोई सेक्युलर ब्रिगेड मातम नहीं मनाएगी | इस साहसी अधिकारी के बारे में थोड़ी सी जानकारी लीजिए आपको समझ आ जाएगा की आतंकियों ने 30 गोली मारकर क्यों हत्या की |

क) इंडियन मुजाहिद्दीन के चीफ यासिन भटकल की गिरफ्तारी में थी मुख्य भूमिका |

ख) पश्चिमी यूपी में इंडियन मुजाहिद्दीन के स्लीपर सेल की कमर तोड़ दी थी |

ग) पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस्लामिक स्टेट के स्लीपर सेल का भंडाफोड़ किया था |

घ) ‘स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया’ (SIMI) के स्लीपर सेल की कमर तोड़ दी थी |

ङ) BSF के तेज तर्रार अधिकारी थे तंज़िल अहमद इसी वज़ह से प्रतिनियुक्ति (Deputation) पर NIA में हुए थे शामिल |

च) पठानकोट हमले की जांच के लिए आई पाकिस्तानी SIT को तर्कों से पाकिस्तान की संलिप्तता स्वीकार करने पर बाध्य किया था |

अब ये हमारा कर्तव्य है की इस देशभक्त की बहादुरी देश तक पहुचाएं अन्यथा अफ़ज़ल प्रेमी मीडिया, सेकुलर नेता और लोग इनकी बहादुरी को इतिहास में दफ़न कर देंगे | पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें |

देशभक्त तंज़िल अहमद के बलिदान को अश्रपूर्ण श्रद्धांजली |
💐💐🙏🏻🙏🏻


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।।आर्य सत्य।। कुछ सवालों के जवाब जो अम्बेदकर बाबा के प्रशंसको को देने होंगे...

।।आर्य सत्य।।

कुछ सवालों के जवाब जो अम्बेदकर बाबा के प्रशंसको को देने होंगे :-

@ मैंने अपने अबतक के जीवन में कहीं पर भी सती प्रथा नहीं देखी ।
@ मैंने अपने जीवन में अबतक किसी मंदिर में देव दासी प्रथा नहीं देखी ।
@ मैंने अपने तक के जीवन में कहीं पर भी किसी को चोरी करने पर उसके हाथ काटे जाते नहीं देखे ।
@ मैंने किसी को भी राजद्रोह के आरोप में उसका सिर काटा नहीं देखा जाता ।
@ मैंने अबतक के किसी देशद्रोही के जीब काटी नहीं देखी ।
@ मैंने अबतक किसी शूद्र को एक गुना और ब्राह्मण को ६४ गुना दंड मिलता नहीं सुना ।
@ मैंने अबतक स्त्रीयों से शिक्षा अधिकार छिनते हुए नहीं सुना ।
@ मैंने अबतक के जीवन में किसी से मैला उठाने को नहीं कहा ।
@ मैंने अबतक हर दंड में संविधान की धाराएँ ही लगती सुनी हैं कहीं पर मनु के श्लोकों को लगते नहीं सुना ।
@ मैंने भारत में भीमराव अम्बेदकर के संविधान के इलावा मनुस्मृति को लागू होते नहीं देखा ।
@ मैंने अबतक किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं देखा जो मनुवाद की परिभाषा दे सके ।
@ मैंने भारत में जन्म लिया है मेरे सभी पूर्वज भारत मे ही हैं तो मैं कैसे विदेशी हो गया या मूल निवासी न हुआ ?
@ इतिहास साक्षी है कि मेरा सत्य सनातन वैदिकधर्म भारत में फला फूला और भारत से बाहर तक रहा तो कैसे मान लूँ कि मेरा धर्म विदेशी ईरानियों का है ?
@ मैं कैसे ये मान लूँ कि अरब की रेत पर जन्मा इस्लाम या उसके बाशिंदे भारत के मूलनिवासी हैं ?
@ मैं कैसे मान लूँ कि युरोप से निकला ईसाईयत या उसके बाशिंदे मूलनिवासी हैं ?
@ मैं कैसे मान लूँ कि जो राष्ट्रवाद की बात करे वो मनुवादी है और जो राष्ट्र को तोड़ने की बात कहे वो मूल निवासी है ?

तो बताओ मैं कैसे मान लूँ कि भारत में मनुवाद का ज़ोर है ? या तुम किसको मनुवाद कहते हो ?

।।ओ३म।।


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राइसब्रान आयल ही क्यूँ..? राइस ब्रैन ऑयल यानी चावल की भूसी से तैयार किया गया तेल अथवा चावल के छिलकों...

राइसब्रान आयल ही क्यूँ..?
राइस ब्रैन ऑयल यानी चावल की भूसी से तैयार किया गया तेल अथवा चावल के छिलकों से निकाला गया तेल है जिसके कारण इसमें फैट नहीं होता, सामान्‍यतया घरों में खाना बनाने के लिए सरसों, मूंगफली, तिल या रिफाइंड तेल का प्रयोग किया जाता है..!

जबकि इनकी जगह राइस ब्रैन ऑयल का उपयोग करना स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अधिक फायदेमंद माना जाता है जैसे…

लिवर और हार्ट को स्वस्थ रखना-
राइस ब्रैन ऑयल में बना खाना आपके लीवर और हार्ट को स्वस्थ बनाए रखता है, इस ऑयल के दूसरे भी कई फायदे हैं, राइस ब्रैन ऑयल में अन्य तेलों की अपेक्षा सबसे अधिक संतुलित ओरिजनोल और फैटी एसिड कंपोजीशन पाया जाता है, बाजार में कई ब्रांड मोजूद हैं जिसकी गुणवत्‍ता भरोसेमंद नहीं होती, ऐसे में राइस ब्रैन ऑयल एक अच्‍छा विकल्‍प है..!

मोटापा/वजन घटाने में सहयोगी-
राइस ब्रैन ऑयल में ट्रांस फैटी एसिड और कोलेस्‍ट्रॉल बिलकुल भी नहीं होता, जो कि मोटापा बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है, ऐसे में अगर आप मोटापा घटाने की सोच रहे हैं तो इस तेल में खाना पकाएं, इसमें मोटापा बढ़ाने वाला फैट नहीं होता और वजन कम करने में सहायता मिलती है..!

इम्युन सिस्टम को मजबूती प्रदान करना-
इस तेल में एंटीऑक्‍सीडेंट प्रचूर मात्रा में पाया जाता है, जो शरीर की इम्युन सिस्टम को मजबूत बनाता है, इस तेल में बना हुआ खाना स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है, इस तेल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट आपके शरीर में उपस्थित फ्री रेडीकल्स से लड़ते है और कई बीमारियों से लड़ने की शारीरिक क्षमता बढ़ाते भी है..!

चेहरे पर निखार-
स्वास्थ्य के साथ-साथ यह तेल रूप-रंग निखराने में भी मदद करता है, यह झुर्रियां कम करता है और त्वचा को स्वस्थ बनाए रखता है जिससे आप अपनी उम्र से अधिक जवां दिखते हैं, यह सूरज की परा-बैंगनी किरणों के कारण होने वाले दुष्प्रभाव को भी दूर करता है और स्‍किन की टोन बनाए रखने में मदद करता है..!

बीमारियों से बचाव….
इसमें लीवर को मजबूत करने वाले विटामिन और प्रोटीन होते हैं जिससे लीवर की कार्यक्षमता को बढ़ने में मदद मिलती है, यह एग्जिमा रोग को भी ठीक करने में सहायक है और इसी के साथ यह अन्य बीमारियों से भी शरीर को बचाए रखता है..!

बालों का गिरना कम करे..
अगर आपके बालों की ग्रोथ रूक गई है और कुछ दिनों से अधिक गिरने लगे हैं तो इस तेल में बना हुआ खाना खाये, इस तेल में फेरुलिक एसिड और ईस्‍टर्स होते हैं जो कि बालों की ग्रोथ के लिये जरूरी होते हैं, इसके अलावा इसमें विटामिन ई, ओमेगा 3 और ओमेगा 6 होते हैं जो बाजार में उपलब्ध तेलों में या तो है ही नहीं और यदि है भी तो बहुत मँहगे, ओमेगा 3 और 6 बालों को असमय सफेद होने से बचाते हैं और उन्‍हें स्‍वस्‍थ बनाए रखते हैं..!

सबसे अधिक किफायती-
उपयोग और खाना पकाते समय खर्च के आधार पर यह अन्य तेल की तुलना में कम जलता है और धुँआ भी बहुत ही कम देता है, एक बार उपयोग से आप को इसकी कीमत अथवा वेल्यू का स्वयं ही अंदाजा हो जायेगा..!

इसलिए अपने और परिवार के स्वास्थ्य, विशेषकर बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य की बेहतरीन देखभाल के लिए राइस ब्रेन ऑयल का ही प्रयोग करें..!

डॉ० कुलवीर बैनीवाल
☎09254222201📞


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