आप भी जाने आखिर किसने अहिंसा के नाम पर नपुंसकता और कायरता का प्रचार किया…
वर्तमान में अहिंसा शब्द सुनते ही क्यों कायरता का ग्रहण होता है ? क्या किसी ने अहिंसा के नाम पर सच मेें कायरता का प्रचार किया ? क्या वो सम्राट् अशोक या महात्मा बुध्द या महावीर स्वामी थे या फिर कोई अन्य महात्मा ???
आईए आज इसी को जान्ने का प्रयास करते हैं…
महर्षि दयानन्द सरस्वती अपने अमर क्रान्तिकारी ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में अहिंसा का अर्थ वैर भाव का त्याग लिखते हैं जो यथार्थ भी है |
और सम्राट अशोक ने भी यही कर अहिंसा का परिचय दिया | वो स्वयं सामर्थ्यवान थे अतः उन्होंने स्वेच्छा से वैर भाव का त्याग किया ताकि सब सुख पूर्वक रह सके |
अब हम महात्मा बुध्द और महावीर स्वामी के समय कि दो घटनाओ पर प्रकाश डालते हैं जिससे ये पता चलता है कि बुध्द और महावीर भी अहिंसा के पक्षधर थे न कि कायरता के…
मगध नरेश ‘अजात शत्रु’ जो कि गौतम बुध्द का शिष्य था एंव वैशाली नरेश 'चेटक’ जो महावीर स्वामी का शिष्य था | उन दोनो में घनघोर युध्द हुआ था, जो कि १० दिनों तक चला था और जिसमें कई हजार योध्दा मारे गये थे | आश्चर्य तो यह था कि दोनों ही महापुरूष अपने-अपने राजा शिष्यों के यहाँ पर उस समय मौजूद थे |
इसी प्रकार
ऐसा ही एक और युध्द उज्जयनी नरेश 'चंडप्रद्योत’ और सिंधु-सौवीर अधिपति 'उदयनी’ के बीच हुआ था | जबकि ये दोनों तो अहिंसा के प्रबलतम समर्थक महावीर स्वामी के ही शिष्य थे | युध्द के दौरान उनका विहार भी उन्हीं क्षेत्रों में था |
उपर्युक्त दोनों घटनाओं से पता चलता है कि महात्मा बुध्द और महावीर स्वामी दोनों ही अहिंसा के समर्थक तो थे परन्तु स्वाभिमान को दांव पर लगाकर नहीं |
अभी भी हम उस निर्णय तक नहीं पहुचे कि आखिर अहिंसा को कायरता का चौला किसने पहनाया | किसने ये षड्यन्त्र रचा ?
थोड़ा और खोजा जाए तो पता चलता है कि जिस समय भारत परतन्त्रता कि बेड़ियो में जकड़ा हुआ था और लाखो लोग उसे स्वतन्त्र कराने के लिए अपना बलिदान देने को तैयार थे और दे भी रहे थे तब एक और व्यक्ति थे जो अहिंसा की बड़ी-बड़ी बातों द्वारा समाज में कायरता का संचार कर रहा थे | और वो थे बापू गाँधी | जी हाँ आपने सही पढ़ा बापू गाँधी |
बापू गाँधी जिस प्रकार हिन्दू विरोधी थे और मुस्लिम समर्थक थे (पिछले लेख में हमने प्रमाण रखे थे) उनते ही ईसाई प्रेमी भी थे |
मित्रों जिस समय ईसाई देश अस्त्र शस्त्र सम्पन्न होने को प्रयत्नशील थे उस समय हमारे गाँधी जी बाईबल का प्रचार कर रहे थे और अहिंसा के नाम पर भारतीयो में कायरता और नपुंसकता का संचार कर रहे थे |
गाँधी जी की अहिंसा का अर्थ था “यदि कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो |” वास्तव में गाँधी जी का ये आदर्श वाक्य किसी भारतीय ग्रन्थ का नहीं अपितु बाईबल का था | देखो मत्ती ५:३९…
“किन्तु मैं तुझ से कहता हूँ कि किसी बुरे व्यक्ति का भी विरोध मत कर | बल्कि यदि कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी उसकी तरफ़ कर दे ||”
अब आप जान गये होगें कि आखिर अहिंसा के नाम पर भारत में किस प्रकार कायरता का संचार किया गया और आज भी ये गाँधी वादी सेक्युलर लोग समय समय पर इसी अहिंसा के तहत जहाँ एक और कायरता फैलाते है वहीं दूसरी और अपराधियों के साथ खड़े हो मानव अधिकारो की दुहाई देते हैं, कैण्डल मार्च निकालते हैं और प्रदर्शन करते हैं |
हे आर्य-खालसा-हिन्दूओं !
पुनः वेदों की ओर लोटो | सुनो वेद तुमसे क्या कहता हैं…
“उठो वीरो !
कमर कस लो, झण्डे (धर्म या राष्ट्र ध्वज) हाथों में पकड़ लो | जो भुजंग हैं, लम्पट हैं, देशद्रोही हैं, दुष्ट हैं उनको परास्त करके देवत्व विजय व असुरत्व की पराजय करो |” (अथर्व• ११|१०|१)
इति ओ३म्…!
जय आर्य ! जय आर्यावर्त !!
पाखण्ड खण्डण… वैदिक मण्डण… रिटर्न…..
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