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व्यक्ति जोश में कभी भी कुछ भी बोल देता है और बाद में पछताता है, कि मैंने किस को क्या बोल दिया ?
बाद में पश्चाताप न करना पड़े , इसलिए वाणी पर संयम रखें । सोच समझकर बोलें , किसी के बारे में कुछ भी बोलें, तो प्रमाणों से परीक्षा करके बोलें । नापतोल कर बोलें, मीठी भाषा बोलें, सभ्यता पूर्ण भाषा बोलें , कठोर भाषा बोलने पर अथवा गलत विवरण बोलने पर यदि अपना विवरण वापस भी लेना पड़े , तो उसमें कष्ट न हो, इस तरह से बहुत सोच विचार कर बोलना चाहिए ।
क्योंकि लोग आपकी भाषा से ही आपके मन को पहचानेंगे , आपके व्यक्तित्व को पहचानेंगे, आपकी भावनाओं को पहचानेंगे ।
अनेक बार व्यक्ति कहता है , नहीं नहीं , मेरा यह अभिप्राय नहीं था ।
तो जो अभिप्राय था वही शब्द बोलने चाहिएँ थे न !!!
क्योंकि आपके मन के अभिप्राय को आपके शब्दों से ही तो पहचाना जाएगा! मन में अभिप्राय कुछ और हो तथा आपके शब्द कुछ और हों, तो लोग कैसे पहचानेंगे , आप के मन की बात?
शब्दों से ही आपके विचारों की अभिव्यक्ति होती है।
इसलिए बोलने में सदा सावधान रहें। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
आत्माएं सब अनादि हैं। सब की आयु एक समान है। शरीर की आयु के कारण हम किसी को छोटा बड़ा मान लेते हैं ।
परंतु एक जन्म में प्राप्त किए गुण , दूसरे जन्म में साथ चलते हैं । यदि कोई पिछले जन्म का 80 वर्ष का वृद्ध व्यक्ति अनेक गुण साथ लेकर मरा , तो इस जन्म में 10/15 वर्ष की आयु में उसमें वे गुण विशेष दिखाई देंगे ।
तब कोई सोचे कि मैं तो 40 वर्ष का हूं मैं इस 15 वर्ष के बच्चे से क्यों सीखूं? तो यह उसका सोचना गलत है ।
इस शरीर में वह बच्चा भले ही 15 वर्ष का है परंतु उसमें जो गुण हैं, वे तो उसने पिछले जन्म में 80 वर्ष की आयु तक सीखे थे। इसलिए आयु से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ेगा, बल्कि गुणों से लाभ लेना चाहिए । गुण सीख कर अपनी उन्नति करनी चाहिए ।
जीवन में सभी लोग अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मात्रा में सफल होते हैं । परंतु कुछ लोग विशेष ऊंची सफलताएं भी प्राप्त करते हैं । आप भी यदि कोई ऐसी ऊंची सफलता प्राप्त करना चाहते हों, तो कर सकते हैं । बस मन में वही एक लक्ष्य हो , तीव्र इच्छा हो, पूरा बल लगाएं , मन में लक्ष्य प्राप्ति का एक पागलपन सा हो , तो फिर सफलता में कोई बाधा नहीं है।
प्रत्येक व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है । वह अपनी इच्छा से , अपनी बुद्धि से, अपने संस्कारों से सारे काम करता है , चाहे वे गलत हों या सही हों । उसको जो सही लगता है वह व्यक्ति उसी काम को करता है , जैसे रावण और दुर्योधन का उदाहरण आप सब जानते हैं ।
फिर जब ईश्वर सबको मन में सुझाव देता है कि बुरे काम मत करो , अच्छे काम करो । बुरे काम करते समय ईश्वर मन में भय शंका लज्जा उत्पन्न करता है । और अच्छे काम करते समय उत्साह आनंद निर्भयता उत्पन्न करता है। बस यहीं तक ईश्वर की सीमा है । इसके बाद व्यक्ति स्वतंत्र है वह ईश्वर का सुझाव माने , या ना माने ।
जो नहीं मानता और बुरे काम करता ही रहता है, तब ईश्वर उसके कर्मानुसार उसे दंड देता है , और उसकी बुद्धि कम कर देता है । उसे चिंता तनाव आदि उत्पन्न कर देता है । ऐसा करने से उसकी बुद्धि का पेच ढीला हो जाता है । और फिर उतनी ही उन्नति कर पाता है जितना उसकी बुद्धि काम करती है ।
तब वह उल्टे सीधे काम करके दंड भोगता है । और बहुत बाद में उसे समझ में आता है कि मुझे अच्छे काम करने चाहिएँ , बुरे नहीं । इस प्रकार से ईश्वर उसका भी सुधार करता है। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
आपस में अनेक प्रकार के व्यवहार होते रहते हैं । कभी आप किसी पर गुस्सा करते हैं , कभी कोई दूसरा आप पर गुस्सा करता है ।
जैसीभी परिस्थिति हो, जब कोई दूसरा आपके साथ दुर्व्यवहार करे , तो उसकी प्रतिक्रिया करने से पहले , कुछ उसकी परिस्थिति को भी समझ लेना चाहिए ।
अनेक बार आप उसकी परिस्थिति समझकर, उसकी मजबूरी जानकर, आप उस पर गुस्सा नहीं करेंगे । और एक नया अपराध करने से बच जाएंगे ।
इसलिए कभी भी जल्दबाजी ना करें । शांति से सोच-समझकर काम करें। आप जीवन में प्रसन्न और आनंदित रहेंगे। यदि बिना सोचे समझे काम करेंगे, तो बाद में पछताएंगे। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
यज्ञ बहुत ही पवित्र उत्तम कर्म है । यज्ञ से बड़े-बड़े लाभ होते हैं । प्रदूषण का निवारण , स्वास्थ्य की रक्षा, रोगों से बचाव , शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का बढ़ना , ईश्वर की भक्ति , आध्यात्मिक उन्नति , काम क्रोध लोभ आदि दोषों का घटना, इत्यादि अनेक लाभ होते हैं।
जो लोग यज्ञ करके फिर अपने सांसारिक कार्यों को आरंभ करते हैं , उन कार्यों में सफलता मिलती है। क्योंकि उनके पीछे इस यज्ञ नामक उत्तम कर्म का प्रभाव साथ में जुड़ा होता है ।
इसलिए प्रतिदिन अपने घर में अथवा कार्यालय में यथासंभव यज्ञ का अनुष्ठान अवश्य करें । उसके बाद ही अन्य सांसारिक कार्य आरंभ करें। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
ऋग्वेद के अनुसार जो अनाज खेतों मे पैदा होता है, उसका बंटवारा तो देखिए…
1- जमीन से चार अंगुल भूमि का,
2- गेहूं के बाली के नीचे का पशुओं का,
3- पहली फसल की पहली बाली अग्नि की,
4- बाली से गेहूं अलग करने पर मूठ्ठी भर दाना पंछियो का,
5- गेहूं का आटा बनाने पर मुट्ठी भर आटा चीटियों का,
6- चुटकी भर गुथा आटा मछलियों का,
7- फिर उस आटे की पहली रोटी गौमाता की,
8- पहली थाली घर के बुज़ुर्ग़ो की
9- फिर हमारी थाली,
10- आखिरी रोटी कुत्ते की,
ये हमें सिखाती है, हमारी संस्कृति और…
मुझे गर्व है कि मैं इस संस्कृति का हिस्सा हूँ ।
🙏🙏🙏
जो व्यक्ति यज्ञ नहीं करता अर्थात शुभ कर्मों का आचरण नहीं करता , तो वह कुछ ना कुछ तो करेगा, खाली तो सारा दिन कोई बैठ नहीं सकता।
यदि शुभ कर्म नहीं करेगा। तो अशुभ कर्म करेगा। यदि अशुभ कर्म करेगा, तो सदा दुखी, खिन्न, परेशान, और भयभीत भी रहेगा
ही। यदि अशुभ कर्म करेगा तो समाज में उसकी प्रतिष्ठा भी नष्ट हो जाएगी, उसका प्रभाव समाप्त हो जाएगा लोग उसे अच्छी दृष्टि से नहीं देखेंगे। मूर्ख और दुष्ट व्यक्ति के रूप में देखेंगे । इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह सदा अच्छे ही काम करता रहे तथा जिस से समाज में परिवार में उसका उत्तम प्रभाव बना रहे। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
भारतीय परंपरा में करोड़ों व्यक्ति स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा रखते हैं । परंतु वे जानते नहीं हैं कि स्वर्ग है क्या ?
“जैसे यहां अच्छे भोग फल मिठाइयां खाना पीना नाच गाना बैंड बाजा धन संपत्ति आदि पृथ्वी पर प्राप्त होती है, बस ऐसा ही स्वर्ग में होता है । और वह स्वर्ग कहीं आसमान है, जो कि मरने के बाद मिलता है ।” इस प्रकार से भारतीय लोगों की मान्यता है ।
यह मानता ठीक नहीं है। वेदो और ऋषियों के अनुसार , यह तो ठीक है कि स्वर्ग में सारे सुख मिलते हैं , और वे मरने के बाद मिलते हैं । परंतु वे सब सुख यहीं इसी पृथ्वी पर ही हैं , आपके हमारे घरों में ही मिलते हैं। आसमान में कोई ऐसा अलग स्थान नहीं है, जहां ऐसा स्वर्ग हो ।
और यदि वहां पर भी ऐसा ही राग रंग हो, तो जैसे लोग यहां भोग कर करके रोगी दुखी और परेशान हो जाते हैं , ऐसे ही उस आसमान वाले स्वर्ग में भी रोगी दुखी और परेशान हो जाएंगे । फिर यहां से उस स्वर्ग में क्या विशेष अंतर हुआ? कुछ नहीं ।
इसलिए स्वर्ग भी यहीं है , नरक भी यहीं है। सब कुछ यहीं है। हां , मोक्ष इन दोनों से अलग है, वहां कोई दुख नहीं होता , क्योंकि वहां भौतिक सुख दुख भोगने का साधन शरीर नहीं होता। ईश्वर की शक्तियों से ईश्वर का आनन्द भोगने को मिलता है। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
कुछ लोगों को अभिमान में जीने का शौक होता है । वे दूसरों को हमेशा छोटा ही समझते हैं ।
या तो कोई वस्तु दूर से देखी जाए तब वह छोटी दिखती है । जैसे सडक पर बस आ रही है , और आप आधा किलोमीटर दूर से बस को देखें , तो वह बहुत छोटी दिखाई देगी ।
या फिर व्यक्ति अपने अभिमान में चूर होकर जब दूसरों को देखता है तब दूसरे लोग , कितने ही गुणवान क्यों ना हों, वे उसे छोटे ही दिखते हैं ।
तो वस्तुएं तो ठीक है दूरी से छोटी दिखती हैं वह तो भौतिक विज्ञान का नियम है ।
परंतु कम से कम दूसरे गुणवान व्यक्तियों को तो छोटा करके नहीं देखना चाहिए । उनके गुणों को यथावत स्वीकार करना चाहिए । यदि उनमें गुण आप से कम हैं, तो कम मानें। और यदि अधिक हैं तो अधिक मानें।
अपने अभिमान के कारण दूसरों को बडा होते हुए भी, छोटा समझें, यह उचित नहीं है। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
संसार में कुछ अच्छे लोग भी हैं और कुछ दुष्ट भी हैं। अच्छे लोगों को सदा प्रोत्साहन देना चाहिए, उनका उत्साह बढ़ाना चाहिए , ताकि संसार में अच्छाई का प्रचार अधिक हो ।
मूर्ख और दुष्ट लोगों से बचकर रहना चाहिए। उनको समर्थन सहयोग प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए। अन्यथा संसार में बुराई और दुष्टता का प्रचार बढ़ेगा ।
तो प्रत्येक व्यक्ति का परीक्षण करें , बुद्धिमत्ता और प्रमाणों से परीक्षण करें । व्यवहार के परीक्षण से सब का पता चल जाता है , कि कौन कितना ईमानदार सज्जन है अथवा मूर्ख और दुष्ट है । इस प्रकार परीक्षा करके यथायोग्य व्यवहार करें। अच्छे लोगों को प्रोत्साहन दें , दुष्टों को नहीं। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
कोई भी संसार के कार्य करने हों, तो सबसे पहले शरीर स्वस्थ होना चाहिए। सावधानी रखें । अपनी दिनचर्या टाइम टेबल ठीक बनाएं । रात को जल्दी सोना, सुबह जल्दी उठना, थोड़ा व्यायाम करना, ईश्वर का ध्यान करना, यज्ञ करना , वैदिक ग्रंथों का स्वाध्याय करना , आर्य विद्वानों का सत्संग करना, व्यवहार में न्याय पूर्वक लेन देन करना , सत्य का आचरण करना इत्यादि शुभ कर्मों के करने से आपका शरीर मन बुद्धि इंद्रियाँ आदि सब प्रसन्न रहेंगे, तभी आपका जीवन सुखमय होगा ।
खान पान भोजन आदि में भी सावधानी रखना , शुद्ध शाकाहारी और सात्विक भोजन करना, समय-समय पर शरीर का परीक्षण कराते रहना । यदि कोई रोग निकले तो तत्काल चिकित्सा कराना, जिससे आपका जीवन सुखमय हो और आप लंबी आयु को प्राप्त करें। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
आज के भागदौड़ भरे जीवन में व्यक्ति इतना व्यस्त हो गया है उसे यह पता ही नहीं कि मैं कहां जा रहा हूं , कहां जाना चाहिए , क्या करना चाहिए? क्या मुख्य है , क्या गौण है , जीवन में किस कार्य की कितनी उपयोगिता है , उसमें कितनी शक्ति और कितना समय लगाना चाहिए , कुछ पता नहीं ।
पहले लोग जीवन को थोड़ा समझ कर जीते थे। साथ में बैठते थे , सुख दुख की बातें करते थे , एक दूसरे का सहयोग और सेवा करते थे , मिलकर जीवन का आनंद मनाते थे ।
अब तो सब कुछ मशीनी जीवन बनकर रह गया है। पुरानी बातें तो समाप्त सी हो गई ।
सारा दिन यूं ही चिंता और तनाव में बीत जाता है , दो मिनट हँसने को भी याद नहीं रहता। बस ऐसा लगता है कि मशीन की तरह जी रहे हैं , जीवन को जीवन की तरह नहीं जी रहे। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
आज के वातावरण में , जहां चारों और भोगवाद की आंधी चल रही है , व्यक्ति स्वार्थ में डूबकर सिर्फ भोगों को ही लक्ष्य बनाए बैठा है ।
ऐसे वातावरण में अपने आप को बुराई से पाप से बचा लेना कोई छोटी बात नहीं है । अपना जीवन पवित्र रख लेना , बहुत बड़ा काम है ।
और यह ईश्वर की कृपा और सहायता के बिना संभव नहीं है ।
इसके लिए प्रतिदिन सुबह और शाम दोनों समय ईश्वर की उपासना करें । वैदिक यज्ञ करें , वैदिक ग्रंथों का स्वाध्याय करें , आर्य विद्वानों का सत्संग करें, मन को पवित्र रखें , गंदी फिल्मों और उपन्यासों से बचें , गलत रास्ता दिखाने वाले मित्रों से बचें । तब तो संभव है कि आप अपना जीवन पवित्रता से जी लें, और बुराइयों से बचे रहें। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
संसार में प्रत्येक व्यक्ति की कोई न कोई समस्या होती ही है । और व्यक्ति प्रायः अपनी समस्याओं से परेशान रहता है । समाधान ढूंढने की कोशिश भी करता है , अनेक बार समाधान मिल भी जाते हैं। और जब व्यक्ति उस समाधान को स्वीकार कर लेता है तो उसकी समस्याएं हल हो जाती हैं। जीवन आसान हो जाता है, दुख दूर हो जाते हैं , सुख शांति बढ़ने लगती है ।
फिर भी उसे ऐसा लगता है कि कुछ समस्याएं रह गई हैं , जिनका समाधान उसे खोजने पर भी नहीं मिल पाया ।
वास्तव में समाधान तो मिलता है , परंतु अनेक बार ऐसा होता है व्यक्ति उस समाधान को स्वीकार करना नहीं चाहता । क्योंकि उसे स्वीकार करने में कष्ट होता है । वह अपने मिथ्या विचारों को , मिथ्या आग्रहों को , मिथ्या संस्कारों को छोड़ना नहीं चाहता।
इसका मूल कारण अविद्या है । तो जब तक अविद्या रहती है, व्यक्ति अपनी समस्याओं को नहीं सुलझा पाता । और सुलझ जाएं तो उन्हें स्वीकार नहीं करता । इसलिए वह दुखी रहता है ।
तो अपनी अविद्या से युद्ध करें । उसे दूर करें । सत्य समाधान को स्वीकार करें तथा जीवन को आनंद से जीएँ। - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
जीवन में बहुत सारे कार्य करने पड़ते हैं । अपने भी,घर के भी, बाहर के भी, नौकरी व्यापार के भी, समाज सेवा के भी , और भी अनेक कार्य होते हैं । इन सब कार्यों को संपन्न करने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है । यदि शरीर में मन में आत्मा में बल हो तो व्यक्ति सब कार्यों को आसानी से पूरा कर लेता है ।
यदि शरीर में शक्ति कम हो मन में उत्साह कम हो आत्मा में कोई बल ना हो कोई जोश ना हो , तो उसे कार्यों को संपन्न करने में कठिनाई होती है । इसलिए अपने शरीर मन आत्मा सब को बलवान बनाएं। इसके लिए प्रतिदिन व्यायाम करें , अपनी दिनचर्या ठीक रखें, सात्विक शाकाहारी भोजन खाएं , ईश्वर का ध्यान करें, प्रतिदिन यज्ञ करें , इस प्रकार से शक्ति प्राप्त करें और जीवन को आनंद से जिएं। - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
*“ वैदिक नववर्ष, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् 2075 (18 मार्च, 2018)” की आप सभी को अग्रिम शुभकामनाएँ।*
इसी दिन 1960853119 वर्ष पूर्व इस पृथिवी के तिब्बत - हिमालय क्षेत्र में युवावस्था में मनुष्यों की उत्पत्ति हुई, इस कारण यह मानव उत्पत्ति संवत् है।
मनुष्योत्पत्ति के दिन ही अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नामक चार महर्षियों ने ब्रह्माण्ड में अनेक प्रकार के Vibrations के रूप में व्याप्त वैदिक ऋचाओं (मंत्रों) को अपने योग बल से ग्रहण करके सृष्टि के रचयिता निराकार सर्वज्ञ ब्रह्म रूप चेतन तत्व की प्रेरणा से उनका अर्थ भी जाना, जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के रूप में सृष्टि में विख्यात हुआ। इन्हीं चार ऋषियों ने महर्षि ब्रह्मा (आद्य) को सर्वप्रथम चारों वेदों का ज्ञान दिया। इस कारण यह वेद संवत् भी है।
यह संवत् संसार के सभी धार्मिक पवित्र मानवों के लिए है-
*चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :*
*1.:-इसी दिन आज से तथा सृष्टि संवत 1,96,08,53,119 वर्ष पुर्व सूर्योदय के साथ ईश्वर ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।
*2:-प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है। वाल्मीकीय रामायण के अनुसार इसी दिन वेद-वेदांग-विज्ञान के महान् ज्ञाता मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम ने आततायी महाबली रावण का वध किया। ध्यातव्य है कि श्रीराम व रावण का अन्तिम युद्ध चैत्र की अमावस्या को प्रारम्भ हुआ और दो दिन चला। प्रचलित दशहरे (विजयादशमी) का रावण वध से कोई सम्बन्ध नहीं है।
महाभारत के अनुसार इसी दिन धर्मराज युधिष्ठिर की अधर्म की प्रतिमूर्ति दुर्योधन पर विजय हुई। दुर्योधन की मृत्यु के समय योगेश्वर महामानव भगवान् श्रीकृष्ण जी ने कहा था- ‘प्राप्तं कलियुगं विद्धि’, इस कारण यह दिन किसी भी युग का प्रारम्भिक दिन भी होने से युग संवत् भी है। युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ था इसलिए यह युधिष्ठिर संवत है ।
3:-समस्त भारतीयों के लिए यह दिन इस कारण महनीय है क्योंकि इसी भारत भूमि पर मनुष्य, वेद, भगवान् श्रीराम, धर्मराज युधिष्ठिर सभी उत्पन्न हुए तथा इसी का सम्बन्ध सम्राट् विक्रमादित्य से भी है, जिनके नाम से इस दिन को विक्रम संवत् का प्रारम्भ भी मानते हैं। यह 2075 वां वि.सं. है। सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।
*4:-विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
5:-143 वर्ष पूर्व स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन को आर्य समाज की स्थापना दिवस के रूप में चुना।*आर्य समाज वेद प्रचार का महान कार्य करने वाला संगठन है।
*वैदिक नववर्ष का प्राकृतिक महत्व :*
*1.* वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
*2.* फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
*वैदिक नववर्ष कैसे मनाएँ :*
*1.* हम परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें।
*2.* आपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजें।
*3 .* इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों में हवन यज्ञ करे और वेद आदि शास्त्रो के स्वधयाय का संकल्प ले।
*4.* *घरों एवं धार्मिक स्थलों में हवन यज्ञ के प्रोग्राम का आयोजन जरूर करें ।*
*5.* इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें।
*आप सभी से विनम्र निवेदन है कि “वैदिक नववर्ष” हर्षोउल्लास के साथ मनाने के लिए “ज्यादा से ज्यादा सज्जनों को प्रेरित” करें।*
धन्यवाद
🚩नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं🚩
कोई पशु पक्षी प्राणी कुत्ता सूअर हाथी भेड़िया शेर आदि पढ़ लिख कर के डॉक्टर नहीं बनता, इंजीनियर नहीं बनता, वकील नहीं बनता, वैज्ञानिक नहीं बनता ।
यह सब प्राणी जैसे जन्मे थे जीवन भर वैसे ही रहते हैं । उनको जीवन जीने के लिए जितना ज्ञान आवश्यक है उतना ईश्वर इन को जन्म से ही सिखा कर भेजता है ।
इसलिए इनके ना कोई स्कूल होते हैं ना अध्यापक।
कहीं-कहीं मनुष्य , कुत्ते अधिक प्राणियों को थोड़ी बहुत ट्रेनिंग दे देते हैं जिससे वे चोरों को पकड़वाने में सहायता करते हैं । परंतु ऐसे प्राणियों की प्रगति भी बहुत सीमित होती है बहुत अधिक नहीं ।
परंतु मनुष्य एक ऐसा प्राणी है , जो जन्म से तो बहुत कम जानता है, पिछले जन्म से थोड़े ही संस्कार लेकर आता है, फिर भी यदि इस जन्म में उसे अच्छी शिक्षा अच्छे अध्यापक अच्छा विद्यालय अच्छी सुविधाएं मिल जाएं, तो वह बहुत उन्नति कर सकता है । अपने लिए भी समाज के लिए देश के लिए सबके लिए । बहुत से लोग अनेक क्षेत्रों में उन्नति करते भी हैं । इसलिए हमको अपने मनुष्य जीवन का मूल्य समझते हुए जीवन में पर्याप्त उन्नति करनी चाहिए । वास्तविक उन्नति का तात्पर्य दुखों से छूटना और ईश्वरीय आनंद की प्राप्ति करना है।- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
मनुष्य का यह मनोविज्ञान है कि वह आँख से देखकर 80% बातें सीखता है और कान से सुनकर 20%.
तो आपको अपने माता-पिता के साथ व्यवहार करते हुए, आपके बच्चे आंख से देखते हैं । और वे उसमें से 80% बातें सीखते जाते हैं , कि हमारे माता पिता , हमारे दादा दादी के साथ क्या व्यवहार करते हैं?
यही घटना कुछ वर्षों के बाद आपके साथ होने वाली है । अर्थात जो आपने अपने माता-पिता के साथ किया , अच्छा या बुरा, जो भी । वही अब आपके बच्चे , आपके बुढ़ापे में आपके साथ करेंगे। क्योंकि उन्होंने आपको अपनी आंख से देखकर सीखा है, जो आपने अपने बडों के साथ किया ।
इसलिए यदि आप अपना बुढ़ापा सुरक्षित करना चाहते हैं , सुखदायक बनाना चाहते हैं , तो अच्छा यही होगा , कि अपने माता-पिता की ठीक प्रकार से सेवा करें । तब आपके बच्चे भी आपके बुढ़ापे में आपकी सेवा कर देंगे ।
अन्यथा जो स्थिति आप आज देख रहे हैं , उसे सब जानते हैं , उसकी व्याख्या करना की आवश्यकता नहीं है। - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
व्यक्ति 5 इंद्रियों से सुख भोगता है । आज तो चारों ओर ऐसा ही वातावरण बना हुआ है।
लोगों को धर्म कर्म में सेवा परोपकार में ईश्वर में मोक्ष प्राप्ति आदि में कोई खास रुचि नहीं है । इंद्रियों के रूप, रस, गन्ध आदि विषयों का सुख लेने में खूब रुचि है ।
और उनमें से एक मुख्य विषय रस है, जो रसना इंद्रिय से खाने पीने आदि से सुख मिलता है।
यह बहुत आसानी से मिल जाता है , और इसका सुख लेने में प्रायः लोग बुरा भी नहीं मानते । इसलिए बेखटके लोग खाने पीने का सुख लेते रहते हैं।
फिर चाहे परिणाम, कुछ भी क्यों न हो। रोगी हों, चाहे दीर्घरोगी हों, बस रसना आदि इंद्रियों से रस आदि विषयों का सुख जरूर लेना है। मन, इंद्रियों पर संयम तो है नहीं, और कोई माता पिता आदि सिखाते भी नहीं। क्योंकि उनका स्वयं का संयम नहीं है।
तो वेदादि शास्त्र कहते हैं, *भोजन को दवाई के समान खाना चाहिए , अन्यथा भविष्य में दवाइयां भोजन के समान खानी पड़ेंगी* अर्थात भोजन का सुख न लेवें, बल्कि स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भोजन करें। - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिस पर झूठे आरोप ना लगाए जाते हों। और तो और , ईश्वर में एक भी दोष नहीं है एक भी कमी नहीं है वह कभी किसी पर अन्याय नहीं करता, दयालु है उपकारी है और बिना कुछ फीस लिए सबका न्याय करता है बदले में कुछ चाहता भी नहीं है , फिर भी ऐसे सर्वगुणसंपन्न सर्वशक्तिमान ईश्वर को भी लोग नहीं छोड़ते । अपनी अविद्या और स्वार्थ के कारण ईश्वर पर भी भरपेट दोष लगाते हैं , झूठे आरोप लगाते हैं। फिर आप और हम तो क्या चीज हैं, ? हम तो सर्वशक्तिमान नहीं हैं, सर्वगुण संपन्न नहीं हैं , जाने अनजाने हम से तो कभी कहीं गलतियां हो भी सकती हैं । ऐसी स्थिति में यदि कोई आप हम पर आरोप लगाए , तो क्या आश्चर्य की बात है ? कुछ नहीं ।
इसलिए लोग यदि आप पर झूठे आरोप लगाए निंदा चुगली करें तो घबराना नहीं , चिंता नहीं करना, और अपने मन को शांत रखना । इसके लिए 2 सूत्र हैं । पहला , *कोई बात नहीं* . दूसरा, *ईश्वर न्याय करेगा* .
अपने मन को शांत रखने के लिए ये 2 सूत्र अपने मन में बोलिए और मस्त रहिए । यह संसार ऐसे ही चलता है ऐसे ही चलेगा। इसकी परवाह न करें। - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।