व्यक्ति 5 इंद्रियों से सुख भोगता है । आज तो चारों ओर ऐसा ही वातावरण बना हुआ है।
लोगों को धर्म कर्म में सेवा परोपकार में ईश्वर में मोक्ष प्राप्ति आदि में कोई खास रुचि नहीं है । इंद्रियों के रूप, रस, गन्ध आदि विषयों का सुख लेने में खूब रुचि है ।
और उनमें से एक मुख्य विषय रस है, जो रसना इंद्रिय से खाने पीने आदि से सुख मिलता है।
यह बहुत आसानी से मिल जाता है , और इसका सुख लेने में प्रायः लोग बुरा भी नहीं मानते । इसलिए बेखटके लोग खाने पीने का सुख लेते रहते हैं।
फिर चाहे परिणाम, कुछ भी क्यों न हो। रोगी हों, चाहे दीर्घरोगी हों, बस रसना आदि इंद्रियों से रस आदि विषयों का सुख जरूर लेना है। मन, इंद्रियों पर संयम तो है नहीं, और कोई माता पिता आदि सिखाते भी नहीं। क्योंकि उनका स्वयं का संयम नहीं है।
तो वेदादि शास्त्र कहते हैं, *भोजन को दवाई के समान खाना चाहिए , अन्यथा भविष्य में दवाइयां भोजन के समान खानी पड़ेंगी* अर्थात भोजन का सुख न लेवें, बल्कि स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भोजन करें। - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
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