कुछ लोगों को अभिमान में जीने का शौक होता है । वे दूसरों को हमेशा छोटा ही समझते हैं ।
या तो कोई वस्तु दूर से देखी जाए तब वह छोटी दिखती है । जैसे सडक पर बस आ रही है , और आप आधा किलोमीटर दूर से बस को देखें , तो वह बहुत छोटी दिखाई देगी ।
या फिर व्यक्ति अपने अभिमान में चूर होकर जब दूसरों को देखता है तब दूसरे लोग , कितने ही गुणवान क्यों ना हों, वे उसे छोटे ही दिखते हैं ।
तो वस्तुएं तो ठीक है दूरी से छोटी दिखती हैं वह तो भौतिक विज्ञान का नियम है ।
परंतु कम से कम दूसरे गुणवान व्यक्तियों को तो छोटा करके नहीं देखना चाहिए । उनके गुणों को यथावत स्वीकार करना चाहिए । यदि उनमें गुण आप से कम हैं, तो कम मानें। और यदि अधिक हैं तो अधिक मानें।
अपने अभिमान के कारण दूसरों को बडा होते हुए भी, छोटा समझें, यह उचित नहीं है। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
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