आज के भागदौड़ भरे जीवन में व्यक्ति इतना व्यस्त हो गया है उसे यह पता ही नहीं कि मैं कहां जा रहा हूं , कहां जाना चाहिए , क्या करना चाहिए? क्या मुख्य है , क्या गौण है , जीवन में किस कार्य की कितनी उपयोगिता है , उसमें कितनी शक्ति और कितना समय लगाना चाहिए , कुछ पता नहीं ।
पहले लोग जीवन को थोड़ा समझ कर जीते थे। साथ में बैठते थे , सुख दुख की बातें करते थे , एक दूसरे का सहयोग और सेवा करते थे , मिलकर जीवन का आनंद मनाते थे ।
अब तो सब कुछ मशीनी जीवन बनकर रह गया है। पुरानी बातें तो समाप्त सी हो गई ।
सारा दिन यूं ही चिंता और तनाव में बीत जाता है , दो मिनट हँसने को भी याद नहीं रहता। बस ऐसा लगता है कि मशीन की तरह जी रहे हैं , जीवन को जीवन की तरह नहीं जी रहे। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
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