व्यक्ति जोश में कभी भी कुछ भी बोल देता है और बाद में पछताता है, कि मैंने किस को क्या बोल दिया ?
बाद में पश्चाताप न करना पड़े , इसलिए वाणी पर संयम रखें । सोच समझकर बोलें , किसी के बारे में कुछ भी बोलें, तो प्रमाणों से परीक्षा करके बोलें । नापतोल कर बोलें, मीठी भाषा बोलें, सभ्यता पूर्ण भाषा बोलें , कठोर भाषा बोलने पर अथवा गलत विवरण बोलने पर यदि अपना विवरण वापस भी लेना पड़े , तो उसमें कष्ट न हो, इस तरह से बहुत सोच विचार कर बोलना चाहिए ।
क्योंकि लोग आपकी भाषा से ही आपके मन को पहचानेंगे , आपके व्यक्तित्व को पहचानेंगे, आपकी भावनाओं को पहचानेंगे ।
अनेक बार व्यक्ति कहता है , नहीं नहीं , मेरा यह अभिप्राय नहीं था ।
तो जो अभिप्राय था वही शब्द बोलने चाहिएँ थे न !!!
क्योंकि आपके मन के अभिप्राय को आपके शब्दों से ही तो पहचाना जाएगा! मन में अभिप्राय कुछ और हो तथा आपके शब्द कुछ और हों, तो लोग कैसे पहचानेंगे , आप के मन की बात?
शब्दों से ही आपके विचारों की अभिव्यक्ति होती है।
इसलिए बोलने में सदा सावधान रहें। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।
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