नमस्ते जी
कल के सूत्र से हमने जानने -समझने का प्रयास किया कि, वायु अदृष्ट लिङ्गी है और उनका गुण स्पर्श लिङ्ग भी अदृष्ट है। तो यंहा प्रश्न यह होता है कि यदि वायु का ज्ञान होने में दृष्ट-लिङ्ग नही है,तो उसका अनुमान कैसे होता है ?
उपरोक्त आशंका का समाधान करते हुए महर्षि ने सूत्र के माध्यम से समाधान किया कि :-
*सामान्योतो दृष्टाच्चाविशेष:।। १६ ।। ( २ - १ )*
अर्थात सामान्योतोदृष्ट अनुमान द्वारा अविशेष: अर्थात सामान्यरूप से वायु की सिद्धि होती है।
अनुमिति के साधन को अनुमान कहते है अर्थात किसी वस्तु के व्याप्त गुणों के कारण गुणी द्रव्य का अनुमान करना।
अनुमान और लिङ्ग यह दोनों पर्याय शब्द है, *दृष्ट* तथा *सामान्योतोदृष्ट* से अनुमान का प्रकार जानना चाहिए, जिस अनुमान से लिङ्ग - लिङ्गी के प्रत्यक्षपूर्वक व्याप्तिरूप सम्बन्ध का प्रत्यक्ष होता है उसका नाम *दृष्ट* और तथा जिस में लिङ्ग के प्रत्यक्ष होने पर भी लिङ्गी के प्रत्यक्ष न होने से, उक्त सम्बन्ध का सामान्यरूप से ज्ञान होता है, उसका नाम *सामान्योतोदृष्ट* है।
जैसे पाकशाला में धूम-अग्नि की व्याप्ति का प्रत्यक्ष होने से अग्नि के अनुमान में धूम *दृष्ट* है और ज्ञानादि गुणों के प्रत्यक्ष होने पर भी उनके लिङ्गी आत्मा का प्रत्यक्ष नही होता, इसलिए यह सामान्य नियम देखाजाता है,कि प्रत्येक गुण, गुणी के आश्रित रहता है; गुणी को छोड़कर नही।
जब हम चलते फिरते, उठते बैठते हम त्वगिन्द्रिय से स्पर्श का अनुभव करते है तब उस स्पर्श गुण के साथ उसका आश्रयद्रव्य अवश्य होना चाहिए। उसके आश्रय द्रव्य के रूप में पृथिवी,जल, अग्नि द्रव्य उपस्थित नहीं, तब उस स्पर्शगुण के आश्रयभूत जिस गुणी अर्थात द्रव्य का अनुमान होता है, वह *वायु* है।
इसी प्रकार जब वस्त्र,पत्ते शाखा आदि में स्पन्दन आदि क्रियाओं में कोई आघातकारी निर्मित्त पार्थिव आदि नही दिखता, तो भी स्पन्दन आदि क्रियाएं होती है; तो उन कम्पन आदि क्रियाओं का प्रवर्तक अर्थात निर्मित होना ही चाहिए, और वह निर्मित्त वायु ही है। इसलिए सामान्योतोदृष्ट भी वायु की सिद्धि में सामान्य हेतु है।
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