*।। ओ३म् ।।*
*स्वाध्याये नित्ययुक्तः स्यात् (६)*
*भग प्रणेतुर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवा ददन्नः।*
*भग प्र नो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्निवन्तः स्याम।।*
-यजु:०३४। ३६
*व्याख्यान-* हे भगवन्! परमैश्वर्यवन्! *“भग”* ऐश्वर्य के दाता संसार वा परमार्थ में आप ही हो तथा *“भग प्रणेतः”* आपके ही स्वाधीन सकल ऐश्वर्य है, अन्य किसी के अधीन नहीं, आप जिसको चाहो उसको ऐश्वर्य देओ सो आप कृपा से हम लोगों का दारिद्र्य छेदन करके हमको परमैश्वर्यवाला करें, क्योंकि ऐश्वर्य के प्रेरक आप ही हो । हे *“सत्यराधः”* भगवन् सत्यैश्वर्य की सिद्धि करनेवाले आप ही हो, सो आप *“इमाम् भगम् नः ददत्”* नित्य ऐश्वर्य हमको दीजिए- *जो मोक्ष कहाता है* उस सत्य
ऐश्वर्य का दाता आपसे भिन्न कोई भी नहीं है। हे सत्यभग! पूर्ण ऐश्वर्य, सर्वोत्तम बुद्धि हमको आप दीजिए, जिससे हम लोग आपके गुणों का ग्रहण, आपकी आज्ञा का अनुष्ठान और ज्ञान-इनको यथावत् प्राप्त हों। हमको सत्यबुद्धि, सत्यकर्म और सत्यगुणों को *“उदव”* (उद्गमय प्रापय) प्राप्त कर, जिससे हम लोग सूक्ष्म से भी सूक्ष्म पदार्थों को यथावत् जानें *“भग प्र नो जनय”* हे सर्वैश्वर्योत्पादक! हमारे लिए ऐश्वर्य को अच्छे प्रकार से उत्पन्न कर। *“गोभिः अश्वैः”* सर्वोत्तम गाय, घोड़े और मनुष्य-इनसे सहित अनुत्तम ( जिससे उत्तम और कुछ नहीं,सर्वोत्तम) ऐश्वर्य हमको सदा के लिए दीजिए। हे सर्वशक्तिमन् ! आपके कृपाकटाक्ष से हम लोग सब दिन *“नृभिः नृवन्तः प्र स्याम”* उत्तम-उत्तम पुरुष, स्त्री, सन्तान और भृत्यवाले हों। आपसे हमारी अधिक (विशेष) यही प्रार्थना है कि कोई मनुष्य हममें दुष्ट और मूर्ख न रहे तथा न उत्पन्न हो, जिससे हम लोगों की सर्वत्र सत्कीर्ति हो और निन्दा कभी न हो।
*ध्यातव्य-* मन्त्रार्थ को अधिक स्पष्ट करने के लिए कोष्ठक मे जो शब्द दिए गए हैं वे महर्षि दयानंद जी के नहीं हैं ।
(श्रावण सप्तमी कृ. २०७५)
महर्षि दयानंद सरस्वतीकृत
*आर्याभिविनय* से
*राजीव*
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