नमस्ते जी
पृथिवी,जल,अग्नि और वायु के लक्षणों को महर्षि कणाद के द्वारा संलग्न सूत्रों के माध्यम से जानकर अब हम क्रमानुसार आकाश द्रव्य को जानने समझने का प्रयास करेंगे।
*निष्क्रमणं प्रवेशनमित्याकाशस्य लिङ्गम् ।। २० ।। ( २ - १ )*
अर्थात निष्क्रमण और प्रवेशन यह दोनों आकाशसिद्धि में लिङ्ग है।
स्पर्शवाले द्रव्यका भीतर बाहर निकलने का नाम *निष्क्रमण* तथा बाहर से भीतर जाने का नाम *प्रवेशन* है, अर्थात जो जो द्रव्य स्पर्श गुण से युक्त हो उनका निष्क्रमण तथा वहिर्गमन यह दोनों और प्रवेशन तथा अन्तर्गमन यह दोनों पर्याय्य शब्द है, जिस में हो वह आकाशसिद्धि में लिङ्ग है।
*यत्रधुमस्त्त्र वन्हि:* अर्थात जंहा धूम है वंहा अग्नि है, अर्थात जिस प्रकार अग्निसिद्धि में धूम लिङ्ग है इसीप्रकार *यत्र स्पर्शवतो द्रव्यस्यनिष्क्रमणंप्रवेशनञ्चतत्राकाश*
अर्थात जंहा स्पर्शवाले द्रव्य का निष्क्रमण तथा प्रवेशन है,वंहा आकाश है, इसी प्रकार आकाशसिद्धि में स्पर्शवाले द्रव्य का निष्क्रमण और प्रवेशन भी लिङ्ग है।
तात्पर्य यह है कि जैसे अग्नि के विना धूम नही होसक्ता वैसे ही आकाश के बिना निष्क्रमण तथा प्रवेशन नही होसक्ता वह उसकी सिद्धि में लिङ्ग होना उचित है; अतः अग्निसिद्धि में धूम की भांति निष्क्रमण तथा प्रवेशन यह दोनों भी *आकाशसिद्धि* में लिङ्ग है।
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