नमस्ते जी
हमने वायु की सिद्धि के पश्चात यह जानने का प्रयास किया कि, वायु को वायु संज्ञा से जाना जाता है उनमें क्या प्रमाण है, तो यंहा वेद् स्वतः प्रमाण के स्वरूप में ऋषि कणाद ने कहा कि वेद् ईश्वर की वाणी है और ईश्वर ने ही सृष्टि की उत्पत्ति काल में ही पदार्थो के नाम का तथा उनके गुण, कर्म स्वभाव का संकेत वेद रूपी ज्ञान से हम सब मनुष्यों के लिए दिया है।
जैसा कि *स दाधार पृथिवी द्यामुतेमाम्…ऋग्वेद ८। ४ । १७* परमेश्वर पृथिवी आदि सब लोगों पालन करता है इत्यादीं मंत्रों से जो भूमि आदि की पृथिवी आदि संज्ञा, *सुसमीद्धाय सोचिषेधृतं तीव्रं जूहोतन…यजुर्वेद ३। २* प्रज्वलित अग्नि में हवि प्रदान करें, इत्यादि मंत्रों से अग्निहोत्रादि इष्टकर्मो का विधान तथा *गांमाहि ँ सी: यजुर्वेद १३। ४३* गौ आदि पशुओं की हिंसा न करें इत्यादि गौ आदि पशु हिंसारूप अनिष्ट कर्मों का निषेध वेदों में किया है वह उनके ईश्वरोक्त होने में प्रमाण है।
भाव यह है कि *नहिदृशस्यग् र्वेदादि लक्षण शास्त्रस्य सर्वज्ञ गुणान्वितस्य सर्वज्ञादयन्त: सम्भवोअस्ति*
अतीत, अनागत तथा वर्तमान अर्थों के प्रतिपादक ऋग्वेदादि चारों वेदों की उत्पत्ति किसी सर्वज्ञ के बिना नही होसक्ति इसलिए भूतादि अर्थों के प्रतिपादनपूर्वक संज्ञा कर्मादि का विधान वेदों के ईश्वरोक्त होने में प्रमाण है।
लोक में यह देखा जाता है,कि व्यक्ति जिस पदार्थ का प्रत्यक्ष अथवा प्रत्यक्षसदृश निश्चयात्मक अनुभव करता है, उसीका नामकरण करता है। वायु आदि हमारे दृष्टिगोचर नही है, जिनका हम नामकरण करते। अतः वेद में हमसे विशेष अर्थात ईश्वर ने ऐसे पदार्थो का नामकरण किया है। इसी प्रकार वैदिक ग्रन्थों में साक्षात्कृतधर्मा ऋषियों ने नामकरण किया है।
*ऋग्वेद १०। ८२। ३ में …यो देवानां नामधा…* अर्थात जो समस्त ब्रह्मांड का रचयिता और सबको जाननेवाला ईश्वर दिव्यगुणों वाले वायु आदि का नाम रखनेवाला है….
मनुसमृत्ति, प्रत्येक आस्तिक दर्शनों के ऋषियों ने पूर्ण विश्वास के साथ एक स्वर में वेद को परम प्रमाण स्वीकार किया है।
सृष्टि की रचना और वेदों के प्रतिपादन में भी पुर्णतः औचित्य प्रतीत होता है।
यदि किसी मनुष्य द्वारा वेद की रचना होती तो सृष्टि में स्थित प्रकृति और वेद ज्ञान का पुर्णतः सामंज्जस्य नही होता।
क्योंकि कोई भी मनुष्य अपने जीवन में बनी बनाई विद्या में भी एक दो अधिक तो चार से पांच विषय मे ज्ञाता हो सकता है, किन्तु उन विषयों में भी पुर्णतः ज्ञाता हो उनका कोई निश्चिन्त नही होता।
हम जो भी आविष्कार को देखतें है तो उन आविष्कारों के नियत और सीमित विषय ही हुए है, किन्तु ब्रह्माण्ड में तो अनगिनत विषय है, जिसका पुर्णतः ज्ञान को जानना मनुष्य की बुद्धि से परे है।
अतः हमें यही जानना चाहिए की वेदों के द्वारा दिया गया ज्ञान परमपिता परमेश्वर ने हम मनुष्यो के कल्याण हेतु ही दिया है।
जिसका हम सब आज्ञाकारी बने।
from Tumblr https://ift.tt/2MVTlY0
via IFTTT
No comments:
Post a Comment