नमस्ते जी
*तस्मादागमिकम्।। १७ ।। ( २ -१ )*
तस्मात् । आगमिकम् ।।
अर्थात ( तस्मात् ) उक्त अनुमान से स्पर्श के आश्रयभूत जिस द्रव्य की सिद्धि होती है ( आगमिकम् ) वह द्रव्य वायुसंज्ञा वेद प्रमाण सिद्ध है।।
यद्यपि बताए गए अनुमान से केवल स्पर्श के आश्रयभूत द्रव्य की सिद्धि होती है वायु संज्ञा की नहीं तथापि उसकी वायुसंज्ञा में वेद प्रमाण है जिसे ऋग्वेद, यजुर्वेद, तैत्तिरीय सहिंता आदि में अनेक प्रमाण उपस्थित है जैसा कि *प्राणाद्वायुराजायत*…. यजु० में प्रतिपादिन किया हुआ है की परमात्मा की प्राणशक्ति से वायु की उत्पत्ति होती है। *वायवायाहि …* ऋग्. *इषे त्वोर्जेत्वा वायवस्थ.. यजु०*
वायु बहुत शीघ्र गति वाली देवता है। वायुश्च सर्ववर्णो अयं सर्वगन्धवह: शुचि:
अर्थात यह वायु सभी वर्णों वाला, सम्पूर्ण गन्धों को बहाने वाला और पवित्र है। और *वायु* यह अन्वर्थक अर्थात भाव के अनुकूल व सार्थक अर्थात जो उपयुक्त नाम जो अपना अर्थ स्वयं प्रकट करता है।
*वाति गच्छतिति इति वायु:* अर्थात जो गति करती है, वह वायु कहाती है।
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