Tuesday, August 28, 2018

*◙ बाईबल में यीशु की एक भविष्यवाणी की समीक्षा* *बेकग्राउन्ड / भूमिका:* बाईबल के पुराने करार (Old...

*◙ बाईबल में यीशु की एक भविष्यवाणी की समीक्षा*

*बेकग्राउन्ड / भूमिका:*

बाईबल के पुराने करार (Old Testament) में Jonah नामक एक पुस्तक सम्मिलित है, जिसमें *योना (Jonah)* नामक एक पयगम्बर / नबी / प्रोफेट की कहानी है. उसमें लिखा है कि एक दिन योना एक जलयान में यात्रा कर रहे थे. मार्ग में तूफान आने पर नाविकों ने योना को समुद्र में फेंक दिया. तब प्रभु के आदेश पर एक बडा मच्छ योना को निगल जाता है. योना *तीन दिन और तीन रात तक* उस मच्छ के पेट में पडा रहता है. योना मच्छ के पेट में अपने प्रभु परमेश्वर से प्रार्थना करता है और अन्त में प्रभु परमेश्वर के आदेश पर वह मच्छ पयगम्बर योना को समुद्र के तट पर उगल देता है. (Jonah 1:1-17)

*यीशु की एक भविष्यवाणी:*

कहा जाता है कि यीशु की मृत्यु के पश्चात उनके शव को एक कब्र में रखा गया था, जहाँ से वे कुछ समय पश्चात पुनर्जीवित होकर गायब हो गए थे. इस सम्बन्ध में स्वयं यीशु के वचनों (Mathew 12:39-40) को ईसाईयों द्वारा एक भविष्यवाणी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. यीशु कहते है कि “यह पीढी दुष्ट है; अपने प्रभु के प्रति निष्ठावान नहीं है. यह पीढी चिन्ह (sign) मांग रही है, परंतु इसे नबी योना के चिन्ह के अतिरिक्त अन्य कोई चिन्ह नहीं दिया जाएगा. यीशु आगे कहता है, “For just as Jonah was three days and three nights in the belly of the sea monster, so for *three days and three nights* the Son of Man will be in the heart of the earth” अर्थात् “जैसे योना *तीन दिन और तीन रात* तक उस समुद्री जीव के पेट में रहा था, उसी प्रकार मानव-पुत्र भी *तीन दिन और तीन रात* तक भूमि के भीतर रहेगा”. (Mathew 12:40)

इस सम्बन्ध में बाईबल के इन वचनों और घटनाक्रम पर ध्यान देना अत्यन्त जरूरी है:

* …सुबह में नौ बजे यीशु को क्रूस पर चढाया गया. (Mark 15:25)

* …दोपहर होने पर समस्त देश में अन्धकार छा गया, और यह अन्धकार तीन बजे तक रहा. (Mark 15:33)

* …लगभग तीन बजे यीशु ने उच्च स्वर में कहा, “Eloi, Eloi, lema sabachthani?” अर्थात् “My God, my God, why have you forsaken me?” अर्थात् “मेरे प्रभु, मेरे प्रभु, तुने मुझे क्यों छोड दिया?” (Mark 15:34) और अंत में यीशु ने प्राण त्याग दिया. (Mark 15:37)

* …अब संध्या हो गई थी, यह “विश्राम दिन” (Sabbath/शनिवार) के “पूर्वतैयारी का दिन” (शुक्रवार) था. (Mark 15:42)

* …पिलात (Pilate) ने यूसुफ को यीशु का शव दे दिया. यूसुफ ने मलमल के कपडे में यीशु के शव को लपेटकर चट्टान में खुदी हुई कबर में उसको रख दिया और कबर के द्वार पर एक भारी पत्थर लुढका कर लगा दिया. (Mark 15:45-46)

* …विश्राम दिन समाप्त होने पर मरियम मगदलीनी, जेम्स की माता मरियम, और सलोमी ने सुगन्धित द्रव्य मोल लिए ताकि वे जाकर यीशु के शरीर पर लगा सके. (Mark 16:1)

* …सप्ताह के पहले दिन (अर्थात् रविवार को) सवेरे सवेरे जब सूर्य उदय ही हुआ था तब वे कबर के पास गई. (Mark 16:2)

* …पर कबर पर पहुंचकर देखा कि कबर के द्वार से पत्थर हटा हुआ था (Mark 16:4)

* …कबर के भीतर प्रवेश करने पर पाया कि सफेद वस्त्र पहने हुए एक युवक दाहिनी ओर बैठा था. (Mark 16:5)

* …पर उस युवक ने उन स्त्रीयों से कहा, आश्चर्यचकित मत हो, तुम यीशु को ढूंढ रही हो. वह जीवित हो उठे है; वह यहाँ नहीं है… (Mark 16:6)

* …सप्ताह के पहले दिन (अर्थात् रविवार को) प्रातःकाल जी उठने पर यीशु ने सर्वप्रथम मरियम मगदलीनी को दर्शन दिया… (Mark 16:9)

यीशु स्वयं यहूदी थे, और यहूदी परम्परा के अनुसार “विश्राम दिन” (Sabbath) कहते है शनिवार को. विश्राम दिन से पूर्व तैयारी का दिन अर्थात् शुक्रवार, और सप्ताह का पहला दिन अर्थात् रविवार. यहूदी और ईसाई परम्परा के अनुसार परमेश्वर यहोवा ने रविवार से शुक्रवार तक छ: दिनों में सृष्टि की रचना की और सप्ताह के सातवें / अन्तिम दिन (शनिवार को) थक कर विश्राम किया. प्रारम्भ में ईसाई लोग भी शनिवार को “विश्राम दिन” (Sabbath) मनाकर पूजा-अर्चना करते थे, पर कालान्तर में यहूदीयों से अलग अस्तित्व के रूप में, और विशेषकर यीशु के कबर में से जी उठने (resurrection) के कारण सप्ताह का पहला दिन रविवार प्रार्थना-आराधना के लिए विशेष महत्वपूर्ण हो गया. (देखें Acts 20:7, 1 Corinthians 16:2, आदि)

अब इस पूरे घटनाक्रम पर पुन: दृष्टिपात कर विचार कीजीए…

(1) विश्राम दिन के पूर्वतैयारी के दिन (अर्थात् शुक्रवार के दिन) दोपहर तीन बजे के पश्चात यीशु ने प्राण त्याग दिए और उसी दिन सन्ध्या के पश्चात शव को कब्र में रखा गया.

(2) दुसरा दिन (अर्थात् शनिवार) “विश्राम दिन” होने से कुछ नहीं हुआ.

(3) अगले दिन अर्थात् रविवार को जब सूर्य अभी उदय ही हुआ था और महिलायें कबर पर पहुंची उससे पहले यीशु कबर में नहीं थे, अर्थात् पुनर्जीवित हो उठे थे !!

संक्षेप में कहा जाए तो यीशु शुक्रवार की रात्री से लेकर अधिकतम रविवार की प्रातःकाल तक कब्र में रहे. “अधिकतम” शब्द इस लिए कि शनिवार के दिन तो कबर पर पहरा लगा दिया गया था. विश्राम/ शनिवार के दिन महापुरोहितों और फरीसियों ने पिलात के पास जाते है और कहते है, “Sir, we remember what that impostor said while he was still alive, ‘After three days I will rise again’.” अर्थात् “हमें याद है कि जब वह ढोंगी (यीशु) जीवित था तब उसने कहा था, ‘तीन दिन के पश्चात में मैं पुन:जीवित हो उठुंगा’.” अत: आज्ञा दिजिए कि तीन दिन तक कबर पर पहरा दिया जाए, कहीं ऐसा न हो कि उसके चेलें उसके सव को चुरा ले जाए और लोगों से कहने लगें, ‘वह मृतकों में से जीवित हो उठा है’. यदि ऐसा हुआ तो यह अन्तिम धोखा पहले धोखे से भी बुरा होगा. और इस तरह उन लोगों ने कबर के मुंह पर मुहर (seal) लगाकर वहाँ पहरेदारों को बिठा दिया और कबर को सुरक्षित कर दि गई थी. (देखें Mathew 27:62-65).

इस तरह शुक्रवार की रात्री से लेकर रविवार की सुबह तक कुल मिलाकर होते है – दो रात्री और एक दिन. (1) शुक्रवार की रात्री (2) शनिवार का दिन, और (3) शनिवार की रात्री, जिनका योग होगा लगभग छ्त्तीस घण्टे !!

अब कहाँ गई योना (Jonah) की तरह *तीन दिन और तीन रात* (अर्थात् बहत्तर घण्टे, छ्त्तीस का दो गुना) तक भूमि के भीतर रहने की भविष्यवाणी? अब कोई ईसाई / मसीही भाई/बहन कुछ मेथेमेटिकल कसरत करके इस पहेली को सुलझा देंगे तब हमारी जिज्ञासा शांत होगी. यदि योना के तीन दिन और तीन रात तक मच्छ के पेट में रहने की Mathew 12:40 वाली अविश्वसनीय और अन्धविश्वासपूर्ण बकवास वास्तव में स्वयं यीशु ने कही थी (अर्थात यीशु की मृत्यु के सालों बाद सुसमाचार/Gospel लिखने वाले लेखक ने ये शब्द बलात् यीशु के मुख में नहीं डाले थे) तो इससे हास्यास्पद और दुर्भाग्यपूर्ण बात और कोई नहीं हो सकती!! और यदि योना वाली घटना वास्तव में घटी थी और यीशु ने भी उसे सत्य मानकर “तीन दिन और तीन रात तक” भूमि के भीतर रहने की भविष्यवाणी की थी तो स्पष्ट है कि वह भविष्यवाणी सही सिद्ध नहीं हुई थी!!


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