Wednesday, November 4, 2015

१९ कार्तिक 4 नवंबर 2015 😶 “ हृदय मन्दिर में देवों का ही राज्य ! ” 🌞 🔥🔥...

१९ कार्तिक 4 नवंबर 2015

😶 “ हृदय मन्दिर में देवों का ही राज्य ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् अव यत्स्वे सधस्थे देवानां दुर्मतीरीक्षे। 🔥🔥
🍃🍂 राजत्रप द्विष: सेध मीढ्वो अप स्त्रिध: सेध ।। 🍂🍃

ऋ० ८ । ७९। ९

ऋषि:- कृत्नर्भार्गव: ।। देवता- सोम: ।। छन्द:- निचृदनुष्टुप् ।।

शब्दार्थ- सच्चे राजन्! सोम! तुम जब स्वे अपने इस सहस्थान में देवों की दुर्मतियों को, विपरीत भावों को देखे तो हे सिंचन करनेवाले! तुम द्वेषों को दूर कर दो और हिंसावृत्तियों को दूर कर दो।

विनय:- हे सच्चे राजन्! सोम!
यह हृदय तुम्हारा सधस्थ है, सहस्थान हे। तुम परमपदस्थ होते हुए भी इस हृदय में मेरे साथ में आ बैठे हो, अतः जब तुम कभी अपने इस सधस्थ में देवों की दुर्मतियाँ देखो, जब तुम यह देखो कि इस हृदय में देवों की सुमतियों की जगह दुर्मतियाँ प्रकट हो रही हैं, दिव्य वृत्तियों का विपरीत भाव हो रहा है तो तुम इस दुरवस्था को हटाने के लिए, हे मीढ्व:, हे अमृत के सिंचन करनेवाले! मेरे सब द्वेषों को दूर कर दो, मेरे सब हिंसनों को हटा दो, अपना प्रेमरस प्रवाहित करके मेरे द्वेषभावों को बाहर बहा दो।
हे सोम!
तुम्हारे अमृत-सिंचन के होते हुए ये द्वेष आदि कैसे रह सकते हैं? सचमुच ये द्वेष व हिंसा के भाव ही जिनके कारण मेरे हृदय से देवों का राज्य हट जाता है, देवों की सुमतियाँ उठ जाती है।


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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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