Sunday, November 22, 2015

कामी कीड़ा नरक का, युग-युग होत विध्वंस।। मनुष्य जाति को सबसे श्रेष्ठ कहा जाता है क्यूंकि इसी शरीर में...

कामी कीड़ा नरक का, युग-युग होत विध्वंस।।
मनुष्य जाति को सबसे श्रेष्ठ कहा जाता है क्यूंकि इसी शरीर में वो साधन हैं जिनका सहारा लेकर जीव संसार को भोगकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इसलिए इस देह को बुद्धिमानो ने पवित्र बताया।
आईये विचार करते हैं:-
किसी वस्तु की पवित्रता उसके उपयोग पर निर्भर है, यदि विष उपयोगी है तो रोगी के लिए वह भी पवित्र है; अन्यथा अमृत भी विष समान अपवित्र है।
यथा:–शरीर जब तक उपयोग,उपभोग योग्य रहता है तब तक लोग इसे चाहते हैं,आसक्त रहते हैं और साथ देते हैं। परन्तु जब उसमे सामर्थ्य नही रहता तो वह जीवात्मा भी साथ छोडकर चला जाता है जिसका जीवन भर इसी देह ने साथ दिया था।
कोई भी तो बुढ़ापे में ढीली नसों वाले झुके हुए शरीर को देखकर कोई आसक्त नहीं होता बल्कि उनकी उसी देह से उत्पन्न सन्तान उन्हें हेय दृष्टी से देखती है। क्या इस देह को कभी युवावस्था में किसी ने नही चाहा होगा। जरुर… पर अंतर इतना है कि अब इस शरीर का वो रूप सामने आ गया जो वास्तविक है और बहुत ऐसी चीजो से भरा है जिनके निकट से भी गुजरना किसी को गंवारा नही होता।
भला इसी में है कि हम इस देह को बस उपयोग योग्य साधन समझकर प्रयोग करें संसार हित और अध्यात्म के लिए; किसी के शरीर में इतना आसक्त न हों कि तात्विक विवेक ही लोप हो जाये।
असल में हम अपनी प्रेम या प्रेमिका को भी रुग्ण हालत में देख लें तो सारा प्रेम रफूचक्कर हो जाता है; उबकाई आने लगती है।
भला इसी में है कि हम सतर्क रहकर स्वयं को जांचते रहें; वासना थोडा बहाए तो भी लिप्त न हो; बस साथी बनकर साथ निभाते चलें।। ॐ।।


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