ओउम्
भूपेश आर्य~8954572491
प्रश्न१. क्या श्रीराम,श्रीक्रष्ण,हनुमान आदि ईश्वर हैं?
उत्तर- ये ईश्वर नहीं हो सकते इनमें से किसी ने संसार नहीं बनाया।जब ये आये संसार मौजूद था।
इन्होंने तो अपने मां बाप,भाई बहन,ताऊ चाचा को भी नहीं बनाया।क्या ये संसार का पालन करने वाले हैं?
ये संसार का पालन क्या करते ,म्रत्यु इनको खा गयी शेष को खा जायेगी।कर्मों का फल ये क्या देंगे इन्हे ही अपने कर्मों के फल भोगने पडे ,राम को वनवास मिला,श्रीक्रष्ण जेल में पैदा हुए।शेष सब अपने कर्मों से भयभीत होकर सत्य का आमना करने का साहस नहीं जुटा पा रहे।
प्रश्न२.स्रष्टा क्रर्ता है भी या नहीं? ईश्वर के पक्ष में युक्तियां दीजिये।ईश्वर कर्मफलदाता भी है यह कैसे सिद्ध करोगे?
उत्तर-
१.प्रत्येक बनी वस्तु का बनाने वाला होना चाहिए।
दीवार का बनाने वाला राज प्रत्यक्ष है,स्रष्टि का बनाने वाला ईश्वर केवल दिखता नहीं है।
२.सूर्य समय पर उदय होता है।आज से एक हजार साल बाद सूर्योदय,चन्द्रोदय,ज्वार भाटा,कब होंगे,मजे से बताया जा सकता है क्योंकि संसार एक नियम में बंधा चल रहा हैं।h2o से पानी बनता है,गन्धक का तेजाब नहीं।साइंस के समस्त फार्मूले इसी आधार पर स्थित है क्योंकि प्रक्रति में नियम है।जहां जहां कोई नियम होता है वहां वहां उस नियम का नियामक या नियन्ता अवश्य होना चाहिए।नियम नियन्ता के बिना नहीं चलते।
३. आदि स्रष्टि में परमाणु मौजूद थे।उन परमाणुओं को प्रथम गति देने वाला कोई चाहिये।परमाणु स्वयं जड हैं,स्वयं गति नहीं दे सकते।
४.फल पेट भरने के लिए ,दूध बच्चे का पोषण करने के लिए,वनों में बिखरी औषधियां मानव के रोग निवारण के लिए,बच्चे के जन्म के साथ माता के स्तनों में दूध आना,ये समस्त बातें यह सिद्ध करने के लिए काफी है कि स्रष्टि का कोई उद्देश्य है यह अटकल पच्चु नहीं है।
इसके पीछे कोई ज्ञानवान सत्ता चाहिए।जड प्रक्रति लक्ष्य निर्धारित नहीं कर सकती।
५.आदमी के नाक,कान,मुख कितने सलोके से बने हैं,तितलियों के पंखों में मखमली रंग भरे हैं,फूलों में क्या सुगन्ध भरी है,उदय व अस्त होते सूरज का द्रश्य मानव का मन मोह लेता है।प्रत्येक रचना में एक अनूठापन है।
ये अनूठापन रचनाकार के अस्तित्व को सिद्ध करता है।
६.जन्मजात बच्चों के ग्रुपों में अलग थलग रखकर तजुर्बे किये गये।बीस बीस
बरस के हो जाने पर भी कोई भी भाषा वे न बोल सकते थे।क्योंकि मानव भाषा तो नकल से सीखता है।भाषा बना नहीं सकती।जैसा मां बोलती है वह भी बोलता है।वातावरण की भाषा बोलता है।आदि स्रष्टि में जब भाषा बोलने वाला मानव था ही नहीं तब मानव ने किस भाषा की नकल की थी।उसे वाणी जिसने दी उसका नाम ईश्वर है।आदि स्रष्टि में भाषा ईश्वर देता है।
७.संसार में आज ज्ञान है।ज्ञान का ऐसा स्रोत होना चाहिए जहां से रिसकर ये ज्ञान हम तक पहुंचा हो ।
आदि स्रष्टि में तो भाषा भी नहीं थी,ज्ञान ही कहां से आता।यदि ज्ञान आत्मा है तो भाषा उसका शरीर है।ज्ञान, बिना भाषा के,रह नहीं सकता।
जिसने भाषा दी उसी ने ज्ञान दिया।ज्ञान के उस आदि स्रोत का नाम ईश्वर है।
८.अष्टांग योग के द्वारा लाखों योगियों ने उस स्रष्टिकर्ता को प्रत्यक्ष किया है।
ईश्वर कर्म फलदाता है:-
एक बच्चा जन्म से अन्धा पैदा होता है,दूसरा सनेत्र।एक लंगडा दूसरा सही साबुत।एक पागल,दूसरा कुशाग्र बुद्धि।कोई लखपति के घर में पैदा हो गया,कोई कंगाल के घर में।कौन चाहता है कि मैं अंधा लंगडा,लूला पैदा होता या कंगाल के घर में जन्म लेता? परन्तु ऐसा होता है।
मानव पाप कर्मों के करने के पश्चात् कभी उनका फल भोगना नहीं चाहता परन्तु वह शक्तिशाली न्यायधीश ईश्वर उसे सजा भोगने के लिए अन्धे,लंगडे,लूले कलेवरों में जन्म देता है।अमीरों और गरीबों के घर में जन्म देता है।
मनुष्य के किये गये अच्छे बुरे कर्म स्वयं जड होने के कारण फल नहीं दे सकते।
स्रष्टिकर्ता ईश्वर निराकार है या साकार ? सिद्ध करो।
उत्तर:-
१.ईसाई,मुसलमान,पारसी,सिख,पौराणिक,आर्यसमाजी यह सब मानते हैं कि ईश्वर आंखों से दिखाई नहीं देता,यानि निराकार तो है ही।इतने से ही सिद्ध हो गया।
२.प्रकाश की गति १८६००० मील प्रति सेकिंड है।यदि हम दियासलाई की एक तिल्ली जलायें तो एक सैकिंड बाद उसका प्रकाश १८६००० मील तक फैल जायेगा।सूर्य हमसे इतना दूर है कि वहां का प्रकाश लगभग नौ मिनट में पहुंचता है।हमारी प्रथ्वी का घेरा २५००० मील का है।
यह सूर्य इतना बडा है कि हमारी प्रथ्वी जैसी १३ लाख प्रथ्वियां इसमें समा जाएं।परन्तु हमारा यह सूर्य कुछ बडा नहीं है।ज्येष्ठा नक्षत्र का व्यास हमारे सूर्य के व्यास से ४५० गुणा है।
यानि हमारे सूर्य जैसे नौ करोड सूर्य एक ज्येष्ठा नक्षत्र में समा जायेंगे।
हमारी आकाश गंगा के पास दूसरी आकाश गंगा में एक अन्य नक्षत्र है “एसडोराडस” ।
एक लाख छियासी हजार मील प्रति सैकिंड की गति से भागता हुआ प्
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