श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार भक्त कौन है?
जो किसी भी जीव से द्वेष नहीं करता ।
जो सबके साथ मित्रता का व्यवहार करता है ।
जो बिना भेद-भाव से दुःखी जीवोंपर सदा दया करता है ।
जो परमात्मा के सिवा किसी भी वस्तु में ‘मेरापन’ नहीं रखता ।
जो ‘मैं पन’ को त्याग देता है ।
जो सुख-दुःख दोनों में परमात्मा को ही समान भाव से देखता है ।
जो अपना बुरा करनेवाले के लिये भी परमात्मा से भला चाहता है ।
जो लाभ-हानि, जय-पराजय, सफलता-असफलता में सदा सन्तुष्ट रहता है ।
जो अपने मन को परमात्मा में लगाये रहता है ।
जो अपने मन और इन्द्रिय को जीते हुए है ।
जो परमात्मा में दृढ़ निश्चय रखता है ।
जो अपने मन और बुद्धि को परमात्मा के अर्पण कर देता है ।
जो किसी के भी उद्वेग का कारण नहीं बनता ।
जो किसी से भी उद्वेग को प्राप्त नहीं होता ।
जो सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति में कोई आनन्द नहीं मानता ।
जो दूसरे की उन्नति देखकर नहीं जलता ।
जो निर्भय रहता है ।
जो किसी भी अवस्था में उद्विग्न नहीं होता ।
जो किसी भी वस्तु की आकांक्षा नहीं करता ।
जो बाहर-भीतर से सदा पवित्र रहता है ।
जो परमात्मा की भक्ति करने और दोषों का त्याग करने में चतुर है ।
जो पक्षपात रहित रहता है ।
जो किसी समय भी व्यथित नहीं होता ।
जो सारे कर्मो का आरम्भ परमात्मा की लीला से ही होते है, ऐसा मानता है ।
जो भोगों को पाकर हर्षित नहीं होता ।
जो भोगों को जाते हुए जानकर दुःखी नहीं होता ।
जो भोगों के नाश हो जानेपर शोक नहीं करता ।
जो अप्राप्त या नष्ट हुए भोगों को फिर से पाने के लिये इच्छा नहीं करता ।
जो शुभ या अशुभ कर्मो का फल नहीं चाहता ।
जो शत्रु-मित्र में समान भाव रखता है ।
जो मान-अपमान को एक-सा समझता है ।
जो सर्दी-गर्मी में सम रहता है ।
जो सुख-दुःख को समान समझता है ।
जो किसी भी वस्तु में आसक्ति नहीं रखता ।
जो निन्दा-स्तुति को समान समझता है ।
जो परमात्मा की चर्चा के सिवा दूसरी बात ही नहीं करता ।
जो परमात्मा के प्रेम से मस्त हुआ किसी भी परिस्थिति में सन्तुष्ट रहता है ।
जो घर-द्वार से ममता नहीं रखता ।
जो परमात्मा में अपनी बुद्धि स्थिर कर देता है ।
जो इस भागवत-धर्मरूपी अमृत का सदा सेवन करता है ।
जो परमात्मा में पूर्ण श्रद्धा-सम्पन्न है ।
जो केवल परमात्मा के ही परायण रहता है ।
from Tumblr http://ift.tt/1WTeMDo
via IFTTT
No comments:
Post a Comment