Sunday, November 1, 2015

नमस्ते बहनों व भाइयों ! आज मैं सत्य और धर्म व ईश्वर के बारे में फैली हुई विभिन्न धारणाओं व मान्यताओं...

नमस्ते बहनों व भाइयों !
आज मैं सत्य और धर्म व ईश्वर के बारे में फैली हुई विभिन्न धारणाओं व मान्यताओं के बारे में आपसे कुछ निवेदन कर रहा हूँ।
सत्य कहना किसी को नीचा दिखाना कतई नहीं हो सकता। रही बात धर्म की , तो मेरे मित्रों धर्म तो एक ही होता है। जैसे परमपिता परमात्मा एक, सत्य एक, प्रकाश एक।
यदि ये सब एक से अधिक होंने लग जायें तो सारी व्यवस्था ही बिगड जाये।
जैसे मैने कहा दूध सफेद रंग का होता है - सत्य
आप ने कहा दूध गुलाबी रंग का होता है- सत्य
विजय ने कहा पीले रंग का होता है- सत्य
तीन व्यक्तियों नें तीन अलग अलग बात कही- एक ने गाय का ताजा निकला दूध देखकर मान लिया दूध सफेद है, दूसरे ने रूहअफ्जा मिला हुआ देखकर मान लिया गुलाबी है, तीसरे ने हल्दी मिला दूध देखकर मान लिया पीला है।
अब क्या ये तीनों बात सत्य हैं?
जबकि तीनों नें अपनी आँखों से देखकर जाना कि वो सत्य मान रहे हैं। क्या सत्य यही है???????
संसार में भी ईश्वर और धर्म के बारे में सारे मतावलंबी ऐसा ही मानकर अपने अपने मत को सत्य और दूसरे के मत को असत्य मानकर लड रहे हैं, कुछ सेक्युलर सोच वाले कहते हैं कि सब अपनी अपनी मान्यताओं के अनुरुप ठीक हैं। परन्तु क्या यह ठीक है?????
नही….
यह कदापि ठीक नहीं है, और इसी उलझन व सत्य को ठीक से न जान पाने के कारण ही संसार में सब विवाद हो रहे हैं।
फिर इसका समाधान क्या?????
इसका समाधान है कि हम सत्य को ठीक से जानें….
जो ज्ञान हमारे अंत:करण में है, अर्थात जो हमने पढा है या देखा है वह सृष्टिक्रम के अनुकूल हो अर्थात वैज्ञानिक कसोटी पर कसा हो, सत्य कहलाता है।
पुराणों का ईश्वर सत्य नहीं हो सकता, कुरान वाला अल्लाह सत्य नहीं हो सकता, बाइबिल वाला गोड भी सत्य नहीं हो सकता, क्योंकि इन सबमें ईश्वर एकदेशीय है।
कोई कहता है ईश्वर ब्रह्मलोक में रहता है, कोई कहता है हिमालय पर रहता है, कोई कहता है क्षीरसागर में रहता है, कोई कहता है तीसरे आसमान पर रहता है और कोई कहता है कि सातवे आसमान पर रहता है।
यदि हम इन सब को सत्य मानें भी तो कैसे????? और क्यों???? हमें ईश्वर ने बुद्धि दी है , विवेक दिया है।
सत्य की कसोटी है वैज्ञानिक तर्क व सृष्टिक्रम…..
यदि हम ईश्वर को एक स्थान पर माने तो बाकी स्थानों पर ईश्वर का अभाव हो जायेगा …
तो फिर वहाँ सृष्टि कैसे चलेगी?
जो कहो कि ईश्वर ने अपने प्रतिनिधि छोड रखे हैं …देवता या गण या फरिश्ते आदि।
तो ये देवता तो दान व भक्ति की रिश्वत लेकर भक्त के दोषों को माफ कर देते हैं. किये हुए पापकर्म के फल को पुण्य फल में बदल देते हैं।
फिर तो ईश्वर की न्यायव्यवस्था ही चौपट हो जायेगी ???
अर्थात यह सत्य नहीं हो सकता।
ईश्वर तो स्वयं सब जगह रहकर सबके कर्मों को देखता हुआ सबको यथावत फल दे रहा है। सारा संसार परमात्मा के नियम से ही चल रहा है, पृथ्वी सूर्य के चारो ओर निर्धारित परिधि में घूम रही है, सारे सूर्य , चन्द्रमा और नक्षत्र आदि अपने अपने स्थान पर स्थित होकर निर्धारित पथ पर ही गति कर रहे हैं , कोई किसी से टकराता नहीं है।यह सब उस एक ईश्वर की ही व्यवस्था है जो पूर्ण है।
इसलिए हम सब तर्क की वैज्ञानिक कसोटी पर जांचकर यह कह सकते हैं कि ईश्वर एक, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान , सर्वव्यापक , न्यायकारी , दयालू चेतन सत्ता है। वह हमेशा वर्तमान है, वह हम सब के अन्दर और बाहर समान रूप से विद्यमान है।
और ये ही बात वेद कहता है।
“वेद ही सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है।” परमेश्वर ने मनुष्य को जीवन जीने के लिये जो भी ज्ञान व विज्ञान चाहिए वो सब वेद के माध्यम से हमें सृष्टि के आरंभ से ही दे रखा है।
इसलिए हम सब मुहम्मद साहब, ईसामसीह , राम या कृष्ण को ईश्वर न मानकर अपने पूर्वज ही मानें और जिसने इन सबको भी उत्पन्न किया, जो इन सबसे पहले भी विद्यमान था, और जो हमेशा रहेगा केवल उसे ही ईश्वर मानकर उसकी ठीक विधि से उपासना करें तो मानव मात्र का कल्याण होगा। विश्व बन्धुत्व की भावना हम सबके अन्दर जागृत होगी और अज्ञानता के कारण धर्म और काल्पनिक ईश्वरों के नाम पर हो रहे सारे झगडे समाप्त होकर विश्व में शान्ति , सदभाव व प्रेम का सुन्दर वातावरण बन जायेगा ।
अन्त में मै सभी से ये ही करबद्ध प्रार्थना करता हूँ कि हम सब सत्य की ओर लोटें…..
वेद की ओर लौटें……
आपका मित्र ,
सुनील आर्य
सम्पर्क सूत्र :९२१२७२११४१


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