Saturday, November 28, 2015

नमस्ते मित्रों ! महर्षि पातंजलि ने योग के आठ अंग बताये हैं। यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार...

नमस्ते मित्रों !
महर्षि पातंजलि ने योग के आठ अंग बताये हैं।
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रत्याहार
धारणा
ध्यान
समाधि
ये आठ उस सीढी के पायदान हैं जिन पर चढकर हम परमानन्द अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं।
मित्रों ! सीढी एक एक पायदान करके ही चढी जाती है, कोई भी व्यक्ति एकदम सीढी के चौथे, पांचवें या अन्तिम पायदान पर नहीं चढ सकता ।
परन्तु आजके समय में कुछ गुरुघंटाल बल्कि अधिकतर ऐसे हैं हमारे समाज में जो कहते हैं हम सीधे ही तुम्हें ध्यान व समाधि लगवाकर ईश्वर का साक्षात्कार करा देंगे ।
जरा गंभीरता से विचार कीजिये , यदि ऐसा हो सकता तो क्या हमारे पूर्वज जितने भी ऋषि , महर्षि हुए हैं उन सबने महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग को ही एकमात्र साधन माना है और उसी पर चलकर मोक्ष या मुक्ति या परमात्मा की प्राप्ति की है।
मेरे प्रिय मित्रों ! हम सबको उस सर्वज्ञ परमेश्वर ने बुद्धि दी है, और साथ में यह आज्ञा भी दी है कि हे मनुष्यों ! तुम प्रत्येक कार्य बुद्धि पूर्वक विचारकर ही करो। परमेश्वर को जानने के लिये बुद्धि पूर्वक विचार कर सदकर्म करते हुए अष्टांग योग का पालन करके ही हम उसका साक्षात्कार कर सकते हैं।
परमात्मा को पाने का कोई शार्टकट ( छोटा रास्ता ) होता नहीं, है नहीं और हो सकता नहीं।
हमें उसे प्राप्त करने के लिये उस अष्टांग योग रुपी सीढी पर चढना ही होगा। आज मैं उस सीढी के प्रथम पायदान अर्थात “यम” के बारे में आप सबसे निवेदन कर रहा हूँ।
यदि हम परमात्मा प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, या मै कहूँ कि हम एक अच्छा मनुष्य बनना चाहते हैं तो हमें यम को अपने जीवन में द़ृढता से धारण करना ही चाहिए
। यम के भी पाँच पद हैं।
१) अहिंसा
२) सत्य
३) अस्तेय
४) ब्रह्मचर्य
५) अपरिग्रह
इन पाँच यमों को ठीक से न समझ पाने या आधे अधूरे समझकर धारण करने से हमारे राष्ट्र की बहुत हानि हुई है। चक्रवर्ती सम्राट अशोक जिसने अहिंसा के सिद्धांत को ठीक से न समझकर बौद्ध भिक्षुक बनकर राष्ट्र को असुरक्षित छोड दिया। हमें प्रत्येक सिद्धांत को ठीक से समझकर ही उसका पालन करना चाहिए ।
पहला यम है अहिंसा
अहिंसा अर्थात हिंसा न करना। परन्तु यह पूर्ण परिभाषा नहीं। इसमें एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात छूट गई।जो श्रीकृष्ण व श्रीराम जी ने नहीं छोडी थी और उन्होंने हजारों ,लाखों लोगों का वध किया व कराया था, परन्तु हम उन्हे आज भी अहिंसक ही कहते हैं और भगवान का दर्जा देते हैं।
और वह महत्वपूर्ण बात जो महात्मा बुद्ध , गाँधी व अन्य अहिंसा के पुजारियों नें छोड दी और जिसके कारण इस राष्ट्र में महमूद गजनवी जैसे लुटेरों नें जी भरकर इस राष्ट्र का धन वैभव व हमारी नारियों की अस्मिताओ को जी भरकर लूटा। वह शब्द था “अकारण”
अर्थात अकारण किसी भी जीव को मन, वचन व कर्म से हानि न पहुँचाना अहिंसा कहलाता है। परन्तु यदि कारण विद्यमान हो तो लाखों लोगों या कहूँ दुष्टों को मार डालना भी अहिंसा ही ही कहलाती है, जैसे श्रीराम जी नें अपनी पत्नी को वापस पानें के लिये दुष्ट रावण के घर में घुसकर उसका कुलसहित संहार किया था,
जैसे श्रीकृष्ण जी नें पांडवों का अधिकार दिलाने व धर्म की स्थापना के लिये महाभारत के युद्ध में लाखों लोगों का संहार कराया परन्तु फिर भी हम उन्हे हिंसक नहीं कहते। यही अहिंसा की ठीक परिभाषा है।और हमें भी श्रीराम व श्रीकृष्ण जी जैसा अहिंसक बनना चाहिए न कि चुपचाप सबकुछ सहते हुए गाँधीवादी बन जाना।
दूसरा यम है सत्य।
सत्य अर्थात जो ज्ञान हमारे अंतःकरण मे है और जो विज्ञान व सृष्टिक्रम की कसौटी पर कसा हो वैसा ही कहना सत्य कहलाता है।
तीसरा यम है अस्तेय
अस्तेय अर्थात किसी की वस्तु को उसके बिना पूछे न लेना, अर्थात चोरी न करना ।

चौथा यम है ब्रह्मचर्य
अर्थात पूर्ण पुरुषार्थ करके वीर्य रक्षण करना ।
और पांचवा यम है अपरिग्रह
यह भी बहुत महत्व पूर्ण है अर्थात आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह न करना। जितनी आवश्यकता हो केवल उतनी वस्तुएँ ही खरीदनी चाहिए । बाकि धन को समाज व राष्ट्र हित के लिये ही खर्च करें।
आज पाँच यमों को मैने सरलता से समझाने का प्रयास किया है, आशा है हम सभी इन यमों को समझकर दृढ़ता से अपने जीवन में अपनायेंगे तो हमारा जीवन कुंदन की तरह चमकने लगेगा। व हम अपने परिवार ,समाज व राष्ट्र की सच्ची सेवा करने वाले नागरिक बन जायेंगे ।
यम के पश्चात नियम, आसन, प्राणायाम , धारणा, ध्यान व समाधि के बारे में ऐसे ही सरलता से समझाने का मेरा प्रयास रहेगा।
ओ३म् शान्ति: शान्ति: शान्ति:
आपका मित्र ,
सुनील आर्य ।
सम्पर्क सूत्र :९२१२७२११४१


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