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नमस्ते जी
“नमस्ते” शब्द संस्कृत भाषा का है। इसमें दो पद हैं – नम:+ते । इसका अर्थ है कि ‘आपका मान करता हूँ।’ संस्कृत व्याकरण के नियमानुसार “नम:” पद अव्यय (विकाररहित) है। इसके रूप में कोई विकार=परिवर्तन नहीं होता, लिङ्ग और विभक्ति का इस पर कुछ प्रभाव नहीं। नमस्ते का साधारण अर्थ सत्कार=मान होता है। आदरसूचक शब्दों में “नमस्ते” शब्द का प्रयोग ही उचित तथा उत्तम है, क्योंकि जब दो सज्जन मिलते है तब उन दोनों का भाव एक-दूसरे का मान करने का होता है। ऐसे अवसर पर मानसूचक शब्द ही उचित है।
नमस्ते शब्द वेदोक्त है। वेदादि सत्य शास्त्रों और आर्य इतिहास (रामायण, महाभारत आदि) में ‘नमस्ते’ शब्द का ही प्रयोग सर्वत्र पाया जाता है। पुराणों आदि में भी नमस्ते namaste शब्द का ही प्रयोग पाया जाता है। सब शास्त्रों में ईश्वरोक्त होने के कारण वेद का ही परम प्रमाण है, अत: हम परम प्रमाण वेद से ही मन्त्रांश नीचे देते है :-
नमस्ते
परमेश्वर के लिए
दिव्य देव नमस्ते अस्तु॥ – अथर्व० 2/2/1
हे प्रकाशस्वरूप देव प्रभो! आपको नमस्ते होवे।
नमस्ते भगवन्नस्तु ॥ – यजु० ३६/२१
हे ऐश्वर्यसम्पन्न ईश्वर ! आपको हमारा नमस्ते होवे।
नमस्ते अधिवाकाय ॥ – अथर्व० 6/13/2
उपदेशक और अध्यापक के लिए नमस्ते हो।
देवी (स्त्री) के लिए
नमोsस्तु देवी ॥ – अथर्व० 1/13/4
हे देवी ! माननीया महनीया माता आदि देवी ! तेरे लिए नमस्ते हो।
सभी को नमस्ते जी
आर्य नरेंद्र कौशिक
नरवाना (आर्यवर्त्त)
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