Monday, November 30, 2015

कैसा कठोर अनुशासन चाहते थे ऋषि दयानन्द जी आर्यसमाज में...

कैसा कठोर अनुशासन चाहते थे ऋषि दयानन्द जी आर्यसमाज में ?
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यह जानने के लिए मुरादाबाद के श्री दुर्गाचरण जी एवं श्री श्यामसुन्दरदास जी साहु को जोधपुर से 3 जून 1883 को लिखा गया उनका निम्नलिखित पत्र द्रष्टव्य है । 

[सन्दर्भ ग्रन्थः ‘ऋषि दयानन्द सरस्वती के पत्र और विज्ञापन’, पृष्ठ 426-427, पत्र 455, द्वितीय संस्करण, 1955 ई०, सम्पादक श्री पण्डित भगवद्दत्त जी, प्रस्तुति - भावेश मेरजा]

मूल पत्रः
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श्रीयुत प्रधान दुर्गाचरण आदि तथा श्रीयुत श्यामसुन्दर जी,

आनन्दित रहो ।

कार्ड आपका आया, समाचार विदित हुआ । जो प्रधान और पुस्तकाध्यक्ष जो कि आर्यसमाजों के उद्देशों के विघ्न थे, पृथक् कर दिये गये । बहुत अच्छी बात हुई । अब आपका समाज उन्नतिशील होगा । और यही बात 'देशहितैषी’ और 'भारत सुदशा प्रवर्त्तक’ तथा मेरठ और लाहौर के समाज के पत्रों में छपवा दीजिये । और आगे को कोई समाज के उद्देशों से विरुद्ध आचरण, भाषण करे, उसको एक-दो बार समझा दीजिए । और न समझे तो इसी प्रकार पृथक् करते रहिये । और अब वैदिक यन्त्रालय में आपके समाज के 100 रु० लगे हैं । और 10 रु० के पुस्तक वैदिक यन्त्रालय से मंगवा लीजिये । अथवा 110 रु० ही के पुस्तक मंगवा लीजिये । और सब सभासदों से मेरा आशीर्वाद कह दीजियेगा ।

मि० ज्ये० शु० 1 सं० 1940 बुधवार, जोधपुर । 

हस्ताक्षर
दयानन्द सरस्वती


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