सत्यार्थप्रकाश में विशेष भावनाएँ -
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[ लेखक - श्री पण्डित भगवद्दत्त जी रिसर्च-स्कोलर, सन्दर्भ ग्रन्थ - सत्यार्थप्रकाश, ‘सम्पादक की भूमिका’, पृष्ठ १४, संस्करण २०२६ वि०, प्रस्तुति - भावेश मेरजा, २ अक्टूबर २०१५]
“ऋषि दयानन्द सरस्वती प्राचीन ऋषि-मुनियों के उत्कृष्टतम प्रतिनिधि थे । उन्होंने भारत को एक धक्का दिया था । सोई हुई आर्य जाति को पकड़ कर हिलोरे दे-देकर जगाया था । इस काम में ऐसा समर्थ पुरुष गत पांच सहस्र वर्ष में इस भारत-भूमि पर नहीं जन्मा । उनके इस अनुपम ग्रन्थ (सत्यार्थप्रकाश) में निम्नलिखित सात बातेँ सर्वोपरि चमक रखती हैं -
(१) संस्कृत भाषा भारत की राजभाषा होनी चाहिए । आर्यसमाज के सब सदस्य संस्कृत-विद्या-युक्त हों ।
(२) सम्पूर्ण भारत और उसके साथ संसारभर में वेदमत फैले, और वर्णाश्रम-मर्यादा की स्थापना हो ।
(३) भारत में सम्पूर्ण राजपुरुष स-अंग वेद के ज्ञाता हों । देशभक्ति की कसौटी यही है ।
(४) आर्ष ग्रन्थों का साम्राज्य भूमंडल में स्थापित होवे ।
(५) वेद से उतरकर भगवान् मनु का शासन सब संसार में प्रवृत्त हो ।
(६) मूर्तिपूजा आदि कर्म हटें और पंच महायज्ञों तथा अन्य यज्ञों का प्रसार सर्वत्र हो ।
(७) संसार में सत्य-वक्ता उत्पन्न हों । असत्य बोलने वालों का सर्वथा अमान्य हो ।”
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