॥ सामवेद ॥
[ ] ॥ ओ३म् ॥ अग्निमिन्धानो मनसा धियं सचेत मर्त्यः । अग्निमिन्धे विवस्वभिः ॥
[ ] ॥सामवेद । पूर्वार्चिक: । आग्नेयकाण्डम् ।प्रथमोSध्याय: । प्रथमप्रपाठकस्य प्रथमोSर्ध: । द्वितीया दशति: । मन्त्र ९ ॥
[ ] अर्थ :- हे प्रभु ! आप अपने भक्तों को अग्रगामी बनाते है ! आपके द्वारा प्रदत्त ज्ञानप्रकाश से , अपने ह्रदय को प्रदीप्त करते हुए , मन के द्वारा मनन चिंतन करके ज्ञानपूर्वक कर्मों का सेवन करें हम समस्त मानवजाती । अपने भक्तो को प्रगति पथ पर लेचलनेवाले प्रभु ! ज्ञानियों के सत्संग के द्वारा आप हमारे ह्रदय को अपने द्वारा प्रदत्त ज्ञानप्रकाशसे हमारे हृदय को प्रदीप्त कीजिए ।
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