१८ आषाढ़ 2 जुलाई 15
😶 “ यज्ञ महिमा ” 🌞
🔥🔥 ओउम् ऋतं शंसन्त ऋजु दीध्याना दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीरा: । 🔥🔥
🍃🍂 विप्रं पदमग्ङिरसो दधाना यज्ञस्य धाम प्रथमं मनन्त ।। 🍂🍃
ऋ० १० ।६७ ।२ ;अथर्व० २० । ९१ । २
शब्दार्थ :- सत्य ही कहने वाले अकुटिल ध्यान करने वाले प्रज्ञा वाले दिव के,द्यौ के वीर पुत्र और जो ज्ञानमय या व्यापक पद को धारण किये हुए हैं ऐसे अग्ङिरस लोग यज्ञ के परम मुख्य स्थान को जानते हैं ।
विनय :- ‘यज्ञ-यज्ञ’ सब कहते हैं , पर यज्ञ के मूलतत्व को जानने वाले कोई विरले ही होते हैं । हम तो इतना जानते है कि जगत्-हित के लिए स्वार्थत्याग के कार्य करना यज्ञ है । इतना ठीक भी है ,पर यज्ञ के प्रथम रूप से हम बहुत दूर हैं । यदि हमें कहीं वह रूप दीख जाए तब तो हम देख लें कि यज्ञ ही हमारा प्राण है, हमारा जीवन है; यज्ञ तो हमारे एक-एक श्वास में होना चाहिए। इस यज्ञ के 'प्रथम धाम ’ (मुख्य स्थान ) को जो साक्षात् देख लेते हैं वे अंगिरस् कहलाते है ;क्योंकि ऐसे लोग इस जगत्-शरीर के अङ्गों के रस होते हैं । ये वे महात्मा पुरुष होते हैं जो संसार को ठीक रास्ते पर ले-जाते हुए संसार के प्राणरूप होते हैं । इन अग्ङिरसों को बार-बार प्रणाम हैं ।
पर हमें तो यह जानना चाहिए कि ये 'अग्ङिरस्’ महात्मा कैसे बनते हैं? इनके लक्षण क्या हैं ? इनके चार लक्षण हैं -
(१) ये सत्य ही बोलते हैं ,ये सत्य का ही वर्णन करते हैं।
(२)केवल इनकी वाणी में ही सत्य नहीं होता किन्तु इनके ध्यान व विचार में भी कुटिलता नहीं आने पाती ;इनके विचार में-मनमें-भी असत्यता नहीं आती (अतएव) इनकी बुध्दि इतनी सच्ची और प्रकाशपूर्ण होती है कि इन्हें समष्टि- बुध्दि-रूप जो 'द्यौ’ है उसके पुत्र कहना चाहिए
(३)ये वीर पुत्र होते हैं ,क्योंकि संसार सदा अज्ञान-शत्रु पर विजय पाने के लिय अग्रसर रहता है ,
(४) और ये 'द्यौ के पुत्र’ अपने में 'विप्रपद’ को,ज्ञानमय व्यापक पद को धारण किये होते हैं-भगवान् को, एक ज्ञानमय व्यापक रूप को, अपने में धारण किये फिरते हैं
हे यज्ञकर्मो द्वारा ऊँचे चढ़ने की इच्छा रखनेवाले और यत्न करने वाले भाइयो! अग्ङिरसों के इन चार लक्षणों को अपने में रमाते चलो, रमाते हुए चढ़ते चलो।
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ओउम् का झंडा🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
…………..उंचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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