/ मूलभूत लेख / मनुष्य किन घटकों से बना है ?
(शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा)
१. मनुष्य देह के घटक कौन से हैं ? एक प्रस्तावना
इस लेख में हमने मनुष्य देह की रचना और उसके
विविध सूक्ष्म देहों का विवरण दिया है । आधुनिक विज्ञान ने
मनुष्य के स्थूल शरीर का कुछ गहराई तक अध्ययन
किया है; किंतु मनुष्य के अस्तित्व के अन्य अंगों के संदर्भ में
आधुनिक विज्ञान की समझ आज भी
अत्यंत सीमित है । उदा. मनुष्य के मन एवं बुद्धि के
संदर्भ में ज्ञान अब भी उनके स्थूल अंगों तक
सीमित है । इसकी तुलना में
अध्यात्मशास्त्र ने मनुष्य के संपूर्ण अस्तित्व का विस्तृतरूप से
अध्ययन किया है ।
२. अध्यात्मशास्त्र के अनुसार मनुष्य किन घटकों से बना
है ?
जीवित मनुष्य आगे दिए अनुसार विविध देहों से बना है
।
१. स्थूल शरीर अथवा स्थूलदेह
२. चेतना (ऊर्जा) अथवा प्राणदेह
३. मन अथवा मनोदेह
४. बुद्धि अथवा कारणदेह
५. सूक्ष्म अहं अथवा महाकारण देह
६. आत्मा अथवा हम सभी में विद्यमान
ईश्वरीय तत्त्व
आगे के भागों में हम हम इन विविध देहों का विस्तृत विवरण
प्रस्तुत करेंगे ।
३. स्थूलदेह
आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से यह देह सर्वाधिक
परिचित है । यह देह अस्थि-ढांचा, स्नायु, ऊतक, अवयव, रक्त,
पंच ज्ञानेंद्रिय आदि से बनी है ।
४. चेतनामय अथवा प्राणदेह
यह देह प्राणदेह के नाम से परिचित है । इस देह द्वारा स्थूल
तथा मनोदेह के सभी कार्यों के लिए आवश्यक
चेतनाशक्ति की (ऊर्जा की) आपूर्ति
की जाती है । यह चेतनाशक्ति अथवा
प्राण पांच प्रकार के होते हैं :
प्राण : श्वास के लिए आवश्यक ऊर्जा
उदान : उच्छवास तथा बोलने के लिए आवश्यक ऊर्जा
समान : जठर एवं आंतों के कार्य के लिए आवश्यक ऊर्जा
व्यान : शरीर की ऐच्छिक तथा अनैच्छिक
गतिविधियों के लिए आवश्यक ऊर्जा
अपान : मल-मूत्र विसर्जन, वीर्यपतन, प्रसव आदि
के लिए आवश्यक ऊर्जा
मृत्यु के समय यह ऊर्जा पुनश्च ब्रह्मांड में विलीन
होती है और साथ ही सूक्ष्मदेह
की यात्रामें गति प्रदान करने में सहायक
होती है । .
५. मनोदेह अथवा मन
मनोदेह अथवा मन हमारी संवेदनाएं, भावनाएं और
इच्छाआें का स्थान है । इस पर हमारे वर्तमान तथा पूर्वजन्म के
अनंत संस्कार होते हैं । इसके तीन भाग हैं :
बाह्य (चेतन) मन : मन के इस भाग में
हमारी वे संवेदनाएं तथा विचार होते हैं, जिनका
हमें भान रहता है ।
अंतर्मन (अवचेतन मन) : इसमें वे संस्कार होते हैं,
जिन्हें हमें इस जन्म में प्रारब्ध के रूप में भोगकर पूरा
करना आवश्यक है । अंतर्मन के विचार
किसी बाह्य संवेदना के कारण, तो
कभी-कभी बिना किसी
कारण भी बाह्यमन में समय-समय पर
उभरते हैं । उदा. कभी-कभी
किसी के मन में अचानक ही
बचपन की किसी संदिग्ध घटना के
विषय में निरर्थक एवं असम्बंधित विचार उभर आते हैं ।
सुप्त (अचेतन) मन : मन के इस भाग के संदर्भ में
हम पूर्णतः अनभिज्ञ होते हैं । इसमें हमारे संचित से
संबंधित सर्व संस्कार होते हैं ।
अंतर्मन तथा सुप्त मन , दोनों मिलकर चित्त बनता है ।
कभी-कभी मनोदेह के एक भाग को हम
वासनादेह भी कहते हैं । मन के इस भाग में
हमारी सर्व वासनाएं संस्कारूप में होती हैं
।
कृपया संदर्भ के लिए पढें, लेख : ‘हम जो कुछ करते हैं, उसका
क्या कारण है ?’ साथ ही मन की
कार्यकारी रचना समझने के लिए इसी
शीर्षक का ‘इ-ट्यूटोरियल (उप शैक्षणिक वर्ग)’ पढें ।
मनोदेह से सम्बंधित स्थूल अवयव मस्तिष्क है ।
६. बुद्धि
कारणदेह अथवा बुद्धि का कार्य है – निर्णय प्रक्रिया एवं
तर्कक्षमता ।
बुद्धि से सम्बंधित स्थूल अवयव मस्तिष्क है ।
७. सूक्ष्म अहं
सूक्ष्म अहं अथवा महाकारण देह मनुष्य की
अज्ञानता का अंतिम शेष भाग (अवशेष) है । मैं ईश्वर से अलग
हूं, यह भावना ही अज्ञानता है ।
८. आत्मा
आत्मा हमारे भीतर का ईश्वरीय तत्त्व है
और हमारा वास्तविक स्वरूप है । सूक्ष्मदेह का यह मुख्य घटक
है, जो कि परमेश्वरीय तत्त्व का अंश है । इस अंश
के गुण हैं – सत, चित्त और आनंद (शाश्वत सुख) । आत्मा पर
जीवन के किसी सुख-दुःख का प्रभाव
नहीं पडता और वह निरंतर आनंदावस्था में
रहती है । वह जीवन के सुख-दुःखों
की ओर साक्षीभाव से (तटस्थता से)
देखती है। आत्मा तीन मूल सूक्ष्म-घटकों
के परे है; तथापि हमारा शेष अस्तित्व स्थूलदेह एवं मनोदेह से बना
होता है ।
९. सूक्ष्मदेह
हमारे अस्तित्व का जो भाग मृत्यु के समय हमारे स्थूल
शरीर को छोड जाता है, उसे सूक्ष्मदेह कहते हैं ।
इसके घटक हैं – मनोदेह, कारणदेह अथवा बुद्धि, महाकारण देह
अथवा सूक्ष्म अहं और आत्मा । मृत्यु के समय केवल
स्थूलदेह पीछे रह जाती है । प्राणशक्ति
पुनश्च ब्रह्मांड में विलीन हो जाती है ।
सूक्ष्मदेह के कुछ अंग निम्नानुसार हैं ।
सूक्ष्म ज्ञानेंद्रिय : सूक्ष्म ज्ञानेंद्रिय अर्थात हमारे
पंचज्ञानेंद्रियों का वह सूक्ष्म भाग जिसके द्वारा हमें
सूक्ष्म विश्व का बोध होता है । उदा. कोई उत्तेजक न
होते हुए भी हम चमेली के
फूल जैसी सूक्ष्म सुगंध अनुभव कर सकते
हैं । यह भी संभव है कि एक
ही कक्ष में किसी एक को इस
सूक्ष्म सुगंध की अनुभूति हो और अन्य
किसी को न हो । इसका विस्तृत विवरण दिया है
। हमारा यह लेख भी पढें –
छठवीं ज्ञानेंद्रिय क्या है ?
सूक्ष्म कर्मेंद्रिय : सूक्ष्म कर्मेंद्रिय अर्थात , हमारे
हाथ , जिह्वा ( जीभ ) इ . स्थूल कर्मेंद्रियों का
सूक्ष्म भाग । सर्व क्रियाआें का प्रारंभ सूक्ष्म
कर्मेंद्रियों में होता है और तदुपरांत ये क्रियाएं स्थूल स्तर
पर व्यक्ति की स्थूल कर्मेंद्रियों द्वारा
की जाती हैं ।
१०. अज्ञान (अविद्या)
आत्मा के अतिरिक्त हमारे अस्तित्व के सभी अंग माया
का ही भाग हैं । इसे अज्ञान अथवा अविद्या कहते
हैं, जिसका शब्दशः अर्थ है (सत्य) ज्ञान का अभाव । अविद्या
अथवा अज्ञान शब्द का उगम इस तथ्य से है कि हम अपने
अस्तित्व को केवल स्थूल शरीर, मन एवं बुद्धि तक
ही सीमित समझते हैं । हमारा तादात्म्य
हमारे सत्य स्वरूप (आत्मा अथवा स्वयंमें विद्यमान
ईश्वरीय तत्त्व) के साथ नहीं होता ।
अज्ञान (अविद्या) ही दुःख का मूल कारण है ।
मनुष्य धनसंपत्ति, अपना घर, परिवार, नगर, देश आदि के प्रति
आसक्त होता है । किसी व्यक्ति से अथवा वस्तु से
आसक्ति जितनी अधिक होती है,
उतनी ही इस आसक्ति से दुःख निर्मिति
की संभावना अधिक होती है । एक आदर्श
समाज सेवक अथवा संतके भी क्रमशः समाज तथा
भक्तों के प्रति आसक्त होने की संभावना
रहती है । मनुष्य की सबसे अधिक
आसक्ति स्वयं के प्रति अर्थात अपने ही
शरीर एवं मन के प्रति होती है । अल्पसा
कष्ट अथवा रोग मनुष्य को दुःखी कर सकता है ।
इसलिए मनुष्य को स्वयं से धीर-धीरे
अनासक्त होकर अपने जीवन में आनेवाले दुःख तथा
व्याधियों को स्वीकार करना चाहिए, इस आंतरिक बोध के
साथ कि जीवन में सुख-दुःख प्रमुखतः हमारे प्रारब्ध
के कारण ही हैं (हमारे ही पिछले कर्मों
का फल हैं ।) आत्मा से तादात्म्य होने पर ही हम
शाश्वत (चिरस्थायी) आनंद प्राप्त कर सकते हैं ।
आत्मा और अविद्या मिलकर जीवात्मा बनती
है । जीवित मनुष्य में अविद्या के कुल
बीस घटक होते हैं – स्थूल शरीर,
पंचसूक्ष्म ज्ञानेंद्रिय, पंचसूक्ष्म कर्मेंद्रिय, पंचप्राण,
बाह्यमन, अंतर्मन, बुद्धि और अहं । सूक्ष्म देह के घटकों का
कार्य निरंतर होता है, जीवात्मा का ध्यान आत्मा
की अपेक्षा इन घटकों की ओर आकर्षित
होता है; अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान की अपेक्षा
अविद्या की ओर जाता है ।
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